सम्पादकीय

अध्यापन के नुक्ते

Gulabi
1 Sep 2021 4:39 AM GMT
अध्यापन के नुक्ते
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हर वर्ष की तरह इस बार भी अध्यापक दिवस मनाया जा रहा है

डा. वरिंदर भाटिया.

यदि कोई टॉपिक बच्चों की समझ में न आ रहा हो तो उसको उदाहरण के माध्यम से बच्चों को समझाना या दिखाना चाहिए, जैसे किसी कहानी के माध्यम से, कोई चित्र, मानचित्र, वास्तविक उदाहरण, प्रायोगिक उदाहरण का प्रयोग करना चाहिए जिससे बच्चों में करके सीखने की रुचि जागृति हो सके। व्याख्यान यानी लेक्चर कौशल बड़ी कक्षा के लिए उपयोगी होता है…

हर वर्ष की तरह इस बार भी अध्यापक दिवस मनाया जा रहा है। अध्यापन सबसे गरिमा युक्त काम है। किसी भी विद्या के सिखाने की प्रक्रिया को अध्यापन कहते हैं। यह विद्या भाषा, साहित्य, विज्ञान, गणित या कुछ भी हो सकती है। अध्यापन स्कूल में भी हो सकता है, घर में भी और किसी संस्थान में भी। अध्यापन-कार्य की प्रक्रिया का विधिवत अध्ययन शिक्षणशास्त्र कहलाता है। इसमें अध्यापन की शैली या नीतियों का अध्ययन किया जाता है। शिक्षक अध्यापन कार्य करता है तो वह इस बात का ध्यान रखता है कि सीखने वाले को अधिक से अधिक समझ में आए। शिक्षा एक सजीव गतिशील प्रक्रिया है। इसमें अध्यापक और शिक्षार्थी के मध्य अंत:क्रिया होती रहती है और संपूर्ण अंत:क्रिया किसी लक्ष्य की ओर उन्मुख होती है। शिक्षक और शिक्षार्थी शिक्षाशास्त्र के आधार पर एक-दूसरे के व्यक्तित्व से लाभान्वित और प्रभावित होते रहते हैं और यह प्रभाव किसी विशिष्ट दिशा की ओर स्पष्ट रूप से अभिमुख होता है। बदलते समय के साथ संपूर्ण शिक्षा-चक्र भी गतिशील है। उसकी गति किस दिशा में हो रही है, कौन प्रभावित हो रहा है, इस दिशा का लक्ष्य निर्धारण अध्यापक ही करता है। प्रत्येक अध्यापक की हार्दिक इच्छा होती है कि उसका शिक्षण प्रभावपूर्ण हो। इसके लिए अध्यापक को कई बातों को जानकर उन्हें व्यवहार में लाना पड़ता है। पाठ्यवस्तु का आरंभ कहां से किया जाए, किस प्रकार किया जाए, छात्र इसमें रुचि कैसे लेते रहें, अर्जित ज्ञान को छात्रों के लिए उपयोगी कैसे बनाया जाए, आदि। शिक्षाशास्त्रियों ने अध्यापकों के लिए इन आवश्यक बातों पर विचार करके अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है, जैसे कि क्रिया द्वारा सीखने का सिद्धांत है। इसे हम समझें कि छात्र स्वभावत: ही क्रियाशील होते हैं। निष्क्रिय बैठे रहना उनकी प्रकृति के विपरीत है। उन्हें अपने हाथ, पैर व अन्य इंद्रियों को प्रयोग में लाने में अत्यंत आनंद की प्राप्ति होती है। स्वयं करने की क्रिया द्वारा छात्र सीखता है। इस प्रकार से प्राप्त किया हुआ ज्ञान अथवा अनुभव उसके व्यक्तित्व का स्थायी अंग बन कर रह जाता है। अत: अध्यापक का अध्यापन इस प्रकार होना चाहिए जिससे छात्र को 'स्वयं करने द्वारा सीखनेÓ के अधिकाधिक अवसर मिलें। इसके बाद जीवन से संबद्धता का सिद्धांत है अपने जीवन से संबंधित वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करना छात्रों की स्वाभाविक रुचि होती है।
अत: पाठ्यवस्तु में जीवन से संबंधित तथ्यों को ही शामिल करना चाहिए अर्थात वास्तविक जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से लिए गए तथ्यों को ही शामिल करना चाहिए। यदि अध्यापक काल्पनिक अथवा जीवन से असंबंधित तथ्यों को ही पढ़ाना चाहेगा तो छात्रों की रुचि उससे हट जाएगी। जब तक छात्रों को पाठ का हेतु अथवा उद्देश्य पूर्णतया ज्ञात नहीं होता है, वे उसमें पूर्ण ध्यान नहीं दे सकते। केवल पाठ का उद्देश्य जान लेने से भी काम नहीं चलता। यदि पाठ का उद्देश्य छात्रों की रुचि को प्रेरणा देने वाला हुआ तो उनका पूरा ध्यान उस पाठ को सीखने में लगता है। संपूर्ण पाठ्यवस्तु छात्र के सम्मुख एक साथ नहीं प्रस्तुत की जा सकती। उसे उचित खंडों, अन्वितियों अथवा इकाइयों में विभक्त किया जाना चाहिए। अन्वितियां ऐसी हों जैसी कि सीढिय़ां होती हैं। इन्हें जैसे-जैसे छात्र पार करता जाए, वह उन्नति करता जाए। बालक किसी पाठ्यवस्तु अथवा ज्ञान को अपने मस्तिष्क में ठोस प्रकार से तभी जमा कर सकता है जब बार-बार उसकी आवृत्ति कराई जाए। पाठ्यवस्तु यानी कि सब्जेक्ट को इस प्रकार प्रस्तुत करना चाहिए कि उसके सरल भागों का ज्ञान पहले करवाया जाए तथा धीरे-धीरे कठिन भागों को प्रस्तुत किया जाए। किसी सिद्धांत की विशेष बातों को पहले रखे, फिर उनका सामान्यीकरण करना चाहिए। गणित, विज्ञान, व्याकरण, छंद व अलंकारशास्त्र की शिक्षा देते समय इसी क्रम को अपनाना चाहिए। अनुभव से तर्क की ओर चलो। ज्ञानेन्द्रियों द्वारा छात्र यह तो जान लेता है कि अमुक वस्तु कैसी है, किन्तु वह यह नहीं जानता कि वह ऐसी क्यों है। यदि एक पेड़ का ज्ञान प्रदान करना है तो पहले उसका सम्पूर्ण चित्र प्रस्तुत किया जाएगा तथा बाद में उसकी जड़ों, पत्तियों, फलों आदि का परिचय अलग-अलग करवाया जाएगा। इस सूत्र के अंतर्गत अस्पष्ट एवं अनियमित ज्ञान को स्पष्ट एवं नियमित करना होता है।
छात्र अपनी संवेदनाओं द्वारा अनेक अस्पष्ट एवं अनियमित वस्तुओं की जानकारी करता है, परंतु शिक्षक को चाहिए कि वह उसे स्पष्ट करे। किसी भी टॉपिक को पढ़ाने से पहले प्रस्तावना बनानी चाहिए जिससे बच्चे उस टॉपिक को अपने पूर्वज्ञान से जोड़ सकें। कक्षा कक्ष में छात्रों के बैठने के तरीके से लेकर कक्षा में छात्रों में अनुशासन तथा छात्रों की शिक्षण प्रक्रिया में रुचि बनी रहे, इन सबका प्रबंध करना कक्षा कक्ष प्रबंधन कौशल के अंतर्गत आता है। शिक्षण प्रक्रिया के दौरान श्यामपट्ट यानी कि ब्लैक बोर्ड का सही तरीके से प्रयोग करना ही श्यामपट्ट कौशल के अंतर्गत आता है। छोटी कक्षा के लिए श्यामपट्ट कौशल अति आवश्यक होता है। जैसे श्यामपट्ट पर जो भी लिखना स्वच्छ, स्पष्ट व सीधी लाइन में लिखना चाहिए। अक्षरों का आकार कक्षा के अनुरूप हो, चित्र आदि बनाते समय अलग-अलग रंग के चॉक का प्रयोग करना। श्यामपट्ट पर लिखते समय सीधी रेखा में लिखना चाहिए। श्यामपट्ट कार्य करते समय विषय के अनुसार सचित्र वर्णन करना चाहिए। छात्रों का ध्यान टॉपिक में बना रहे, इसके लिए अध्यापक को अपने शरीर का संचालन, अपने हाव-भाव में परिवर्तन, हाथों का संकेत, स्वर में उतार-चढ़ाव, छात्र-शिक्षक की अंत:क्रिया में परिवर्तन आदि टॉपिक के अनुसार करना चाहिए, जिससे शिक्षक-छात्र अनुक्रिया सही ढंग से हो सके। उद्देश्य विहीन शिक्षण नहीं होना चाहिए। यदि कोई टॉपिक बच्चों की समझ में न आ रहा हो तो उसको उदाहरण के माध्यम से बच्चों को समझाना या दिखाना चाहिए, जैसे किसी कहानी के माध्यम से, कोई चित्र, मानचित्र, वास्तविक उदाहरण, प्रायोगिक उदाहरण का प्रयोग करना चाहिए जिससे बच्चों में करके सीखने की रुचि जागृति हो सके। व्याख्यान यानी लेक्चर कौशल बड़ी कक्षा के लिए उपयोगी होती है।

व्याख्यान पूर्वज्ञान से संबंधित, रुचिपूर्ण व उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए। आज अध्ययन एवं अध्यापन के डिजिटल स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई है। कक्षा में आमने-सामने के संप्रेषण का स्थान इंटरनेट, मोबाइल, लैपटॉप आदि पर आभासी कक्षाओं ने ले ली है। जूम, सिसको वेब एक्स, गूगल क्लासरूम, टीसीएस आयन डिजिटल क्लासरूम आदि ने लोकप्रियता के आधार पर शिक्षा जगत में अपना-अपना स्थान बनाना प्रारंभ कर दिया है। साथ ही तकनीक का असमय फेल होना जैसे इंटरनेट की स्पीड, कनेक्टिविटी की समस्या, लॉकडाउन के समय में कोई साथ उपस्थित होकर सिखाने एवं बताने वाला नहीं होने से भी ऑनलाइन ट्यूटोरियल की सहायता से ही सीखने की मजबूरी, घर में जो साधन है उन्हीं की सहायता से लेक्चर तैयार करना, उसे रिकॉर्ड करना, नोट्स बनाना, उनकी डिजिटल कॉपी तैयार करना, स्टडी मैटीरियल खोजना एवं पाठ्यक्रम के अनुरूप उसे विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड करना, छात्र-छात्राओं से संवाद करना आदि अनेकों नई प्रकार की चुनौतियां शिक्षा समुदाय के समक्ष हैं, किंतु फिर भी इच्छाशक्ति, अतिरिक्त समय एवं प्रयासों के द्वारा हमारे शिक्षक इसे कर रहे हैं। पाठ्यक्रम पूरे हो रहे हैं, छात्र-छात्राएं नए माध्यम से शिक्षण पद्धति द्वारा शिक्षा प्राप्त करने हेतु अपने को ढाल रहे हैं, यह शुभ संकेत है। कठिन हालात में भी देश का दायित्व निभाने वाले अध्यापकों को अध्यापक दिवस पर असीमित शुभकामनाएं देना चाहूंगा।

डा. वरिंदर भाटिया, कालेज प्रिंसीपल

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