सम्पादकीय

शिक्षक दिवस विशेष: सम्मान जरूरी है

Rani Sahu
3 Sep 2021 6:50 PM GMT
शिक्षक दिवस विशेष: सम्मान जरूरी है
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कोरोना काल में अध्यापकों के योगदान को सराहते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति ने उनसे कहा, ‘आप केवल प्रशंसा के ही पात्र नहीं, बल्कि ज़्यादा वेतन के पात्र भी हैं

कोरोना काल में अध्यापकों के योगदान को सराहते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति ने उनसे कहा, 'आप केवल प्रशंसा के ही पात्र नहीं, बल्कि ज़्यादा वेतन के पात्र भी हैं। उधर जब न्यायधीशों, चिकित्सकों और अभियंताओं ने जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्कल से अध्यापकों के सबसे अधिक वेतन का कारण पूछा तो उन्होंने कहा, 'मैं आप लोगों की तुलना उन लोगों से कैसे कर सकती हूं, जिन्होंने आप लोगों को पढ़ाया है शिक्षा व शिक्षक के प्रति इस तरह का दृष्टिकोण ही शिक्षा के स्तर को शिखर पर ले जाता है। इधर अपने देश-प्रदेश में कोरोना काल में अध्यापक ऑनलाइन पढ़ाई भी करवाते रहे व कई जगहों पर कोरोना वॉरियर के रूप में भी अपनी सेवाएं देते रहे, परंतु समाज के कई लोग एक धारणा बना कर कहते रहे कि मास्टरों के तो कोरोना काल में मज़े हैं। वास्तव में यह धारणा जहां समाज की शिक्षक के प्रति कुंठित, अवांछनीय व दुराग्रह से ग्रसित सोच की बानगी है, वहीं यह आज के परिवेश में अध्यापक की घटती साख व मलिन होती छवि पर भी एक यक्ष प्रश्न है।

परंतु इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि जैसे हर नेता या हर व्यक्ति भ्रष्ट नहीं है, वैसे ही हर अध्यापक मनमौजीराम नहीं है। इस बात में संदेह नहीं कि वक्त के बहते दरिया के साथ शिक्षक की साख व रुतबे का क्षरण हुआ है। इस क्षरण के लिए जहां अध्यापक स्वयं जिम्मेदार है, वहीं लचर, सुस्त व गैर गंभीर व्यवस्था तंत्र भी कम जि़म्मेदार नहीं रहे हैं। तथापि आदर्श व कर्मठ अध्यापक आज भी मौजूद हैं जो चुपचाप अपने कत्र्तव्य का वहन कर रहे हैं। यह अलग बात है कि उनका रास्ता इनाम पाने के लिए सत्ता के गलियारों व कुर्सियों तक नहीं जाता। समाज व अभिभावकों को इस बात को भी समझना चाहिए कि यदि इन कर्मठ व जुझारू शिक्षकों को भी उलाहना भरी निगाहों से देखा जाएगा तो निश्चित है समाज उन्नति नहीं कर सकता। याद रहे जब राजा धनानंद ने चाणक्य को भिक्षा मांगने वाला साधारण ब्राह्मण कह कर ज़लील किया और अपने दरबार से खदेड़ दिया तो उसने कहा था, 'अध्यापक कभी साधारण नहीं होता।
निर्माण और विध्वंस उसकी गोद में खेलते हैं।Ó चाणक्य का यह कथन आवेश में कहा गया महज़ एक सियासी जुमला नहीं था, बल्कि उसने इसे सिद्ध कर दिखाया था। एक हकीर से बालक चंद्रगुप्त को शिक्षित कर उसने नंद वंश का नाश किया और बालक को राजगद्दी पर बिठा दिया था। नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफज़ई का कहना है, 'एक बच्चा, एक अध्यापक, एक पुस्तक, एक कलम पूरी दुनिया को बदल सकते हैं। मलाला के ये शब्द विद्यालय, शिक्षा और शिक्षक के महत्त्व को दर्शाते हैं। अध्यापक कुछ घंटों की पढ़ाई में पूरे जीवन का सबक देता है। अपने मां-बाप के साये से बाहर निकलने के बाद बच्चा एक ऐसी जगह जाता है जिसे हम ज्ञान का मंदिर या विद्यालय या पाठशाला या स्कूल कहते हैं। इस ज्ञान के मंदिर में शिक्षक ज्ञान की जोत जगाने व फैलाने का काम करता है। बेहतर मुल्क के लिए बेहतर तालीम का होना ज़रूरी है और बेहतर तालीम के लिए बेहतर शिक्षक ज़रूरी है।
चिकित्सक, अभियंता, नेता, अभिनेता, राजनेता, राजनीतिज्ञ, मंत्री, महामंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, वक्ता, प्रवक्ता, अधिवक्ता, अध्यापक, प्राध्यापक, व्यापारी, समाजसेवी, कोई भी हो, कितने ही बड़े पद पर आसीन हो, कितने ही महान हों, सभी के पीछे अध्यापक का ही हाथ होता है। इसलिए अध्यापक का सम्मान करना जरूरी है। साथ ही एक आदर्श अध्यापक के लिए भी वो क्षण सबसे सुखद होता है जब वो कक्षा से बाहर आकर खुद से कह पाता है कि आज उसने किसी छात्र को बेहतर बनने में मदद की। अच्छे अध्यापक का मां-बाप से भी ऊंचा दर्जा है।
जगदीश बाली
लेखक शिमला से हैं


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