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- टीचर्स डे विशेष:...
प्राचीन समय में जब गुरुकुल में रहकर शिक्षा अर्जित करने का चलन था तब गुरु-शिष्य परम्परा का मान सबसे अधिक था। गुरु दक्षिणा में अपना अंगूठा काटकर दे देने वाले एकलव्य जैसे शिष्य, गुरुजनों का गौरव थे। वहीं द्रोणाचार्य से लेकर ऋषि वशिष्ठ तक जैसे गुरु थे जिन्होंने अपने शिष्यों को अद्भुत ज्ञान के साथ ही जीवन जीने की कला भी सिखाई। भारत में गुरु शिष्य परम्परा का यह चलन पिछले कुछ सालों में बहुत तेजी से बदला है। अब शिक्षा देने और प्राप्त करने, दोनों ही स्तरों का व्यवसायीकरण यानी कमर्शियलाइजेशन ज्यादा हो गया है। लिहाजा न गुरु के प्रति पहले जैसा सम्मान ही बचा है, न ही शिष्यों के प्रति पहले जैसी जिम्मेदारी। टीचर्स पर कई तरह के बोझ हैं और बच्चों पर केवल अच्छे मार्क्स लाने का दबाव। इससे पढ़ाई-लिखाई का ज्यादातर प्रतिशत सीखने से ज्यादा सिर्फ पढ़ने तक सीमित रह गया है। इस शिक्षक दिवस जानिये कुछ तथ्य और अनुभव इसी बारे में।
क्रेडिट बाय अमर उजाला