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ब्रिटेन की पेट्रोलियम कंपनी केयर्न एनर्जी पीएलसी के साथ एक टैक्स विवाद में भारत सरकार को झटका लगा है।
ब्रिटेन की पेट्रोलियम कंपनी केयर्न एनर्जी पीएलसी के साथ एक टैक्स विवाद में भारत सरकार को झटका लगा है। इस मामले में फ्रांस की एक अदालत ने पैरिस में भारत सरकार की संपत्तियों को फ्रीज करने का आदेश दिया है। कुछ ही महीने पहले केयर्न ने इसी तरह से अमेरिका में एयर इंडिया की संपत्ति पर दावा किया था। वह इन कदमों से पिछले साल एक अंतरराष्ट्रीय अदालत के आदेश के मुताबिक भारत सरकार पर बकाए के भुगतान का दबाव बना रही है।
असल में, 2007 में वोडाफोन ने भारतीय टेलिकॉम कंपनी हचिसन-एस्सार में हचिसन की 67 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी। कुछ साल बाद इस सौदे पर ब्रिटिश कंपनी से 20 हजार करोड़ का टैक्स मांगा गया। वोडाफोन ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया और केस जीत गई। इसके बाद सरकार ने 2012 में पिछली तारीख से टैक्स लगाने का कानून बना दिया, जिससे सुप्रीम कोर्ट का फैसला बेमानी हो गया। वोडाफोन ने तब भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन अदालत में चुनौती दी। सितंबर, 2020 के आखिर में वोडाफोन वहां भी केस जीत गई। केयर्न एनर्जी की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। वह 2007 में अपनी भारतीय इकाई केयर्न इंडिया का आईपीओ लेकर आई। एक साल पहले उसने केयर्न इंडिया के साथ कई अन्य भारतीय इकाइयों को मिलाया था।
इसके सात साल बाद टैक्स डिपार्टमेंट ने कहा कि कई इकाइयों को मिलाने से आपको कैपिटल गेन हुआ। इसलिए उस पर टैक्स चुकाना होगा। इसमें भी पिछली तारीख से टैक्स वसूलने वाले कानून का इस्तेमाल किया गया। केयर्न ने भी इस फैसले को अदालत में चुनौती दी। इस बीच टैक्स डिपार्टमेंट ने 10 हजार करोड़ से अधिक बकाये की एवज में केयर्न इंडिया के 10 फीसदी शेयर बेच दिए। यह काम एनडीए सरकार के कार्यकाल में हुआ। पिछले साल के अंत में नीदरलैंड्स में हेग के आर्बिट्रेशन कोर्ट ने भारत सरकार से ब्याज सहित यह रकम केयर्न को चुकाने का निर्देश दिया। केयर्न और वोडाफोन, दोनों ही मामलों में आर्बिट्रेशन कोर्ट ने कहा कि द्विपक्षीय समझौतों को तोड़कर भारत का कंपनियों पर टैक्स लगाना गलत है।
इन दोनों ही मामलों में सरकार ने अपील की है। केयर्न एनर्जी के मामले में हालिया फैसले का एक असर यह हो सकता है कि जो भी देश न्यूयॉर्क आर्बिट्रेशन कन्वेंशन के सदस्य हैं, वे कंपनी को अपने हितों की रक्षा करने की इजाजत देंगे। इससे भारत सरकार की और फजीहत होगी। दूसरे देशों में उसकी और संपत्तियों के फ्रीज होने की सूरत बन सकती है। दूसरी बात यह है कि ऐसे मामलों से विदेशी निवेशकों के बीच देश की छवि खराब होती है। यूं भी एनडीए 2014 में टैक्स टेररिज्म खत्म करने के वादे के साथ सत्ता में आई थी। इसलिए अच्छा यही होगा कि सरकार को आपसी बातचीत से इस मसले को सुलझा ले। इसका संकेत गुरुवार को वित्त मंत्रालय ने दिया भी। उसने कहा कि वह देश के कानून के मुताबिक केयर्न एनर्जी के साथ विवाद सुलझाने को तैयार है।
Triveni
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