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बारिश से बदहाल चेन्नई की कहानी
राजधानी चेन्नई समेत तमिलनाडु के अन्य हिस्सों में लगातार हो रही बारिश ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। वर्ष 2015 की कुख्यात बाढ़ के बाद चेन्नई में यह सबसे भीषण बारिश है, जो अचानक नहीं, बल्कि धीरे-धीरे हो रही है। कोई भी समुदाय वर्षा से नफरत नहीं कर सकता। चेन्नई जैसी जगह में तो और नहीं, जहां गर्मी के दिनों में सबसे ज्यादा पानी की किल्लत होती है, लिहाजा यहां बारिश के आगमन का जश्न मनाना चाहिए।
पर पिछले कुछ वर्षों से ऐसा नहीं हो रहा, क्योंकि थोड़ी-सी बारिश में भी हम ज्यादातर जगहों पर जलजमाव देखते हैं, जिससे निचले इलाकों में रहने वालों का जीवन मुश्किल हो जाता है। आज हम बारिश के पानी द्वारा उन जमीनों पर अतिक्रमण की बात करते हैं, जो कभी जलाशयों या उनसे लगी हुई थीं। पानी के प्रवाह को अवरुद्ध करना ही मौजूदा समस्या का प्रमुख कारण है। तो क्या शहर के बीचोंबीच सभी ढांचों को तोड़कर नदियों का रास्ता साफ कर दिया जाए?
नहीं, ऐसा नहीं है। शहरी वास्तुकार वैकल्पिक व्यवस्था बनाने के लिए मार्गदर्शन कर रहे हैं। वे कहते हैं कि सिंगापुर हमारे लिए एक उदाहरण हो सकता है कि किस तरह नालियों और नहरों का जाल बिछाया जाए, जिससे कि मूसलाधार बारिश से हमारी सड़कें और मकान प्रभावित न हों। इस समय तमिलनाडु में बारिश का मुख्य कारण पूर्वोत्तर मानसून है। यह आमतौर पर अक्तूबर और दिसंबर के बीच आता है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने 26 अक्तूबर तक पूर्वोत्तर मानसून की शुरुआत की भविष्यवाणी की थी। हालांकि, दक्षिण-पश्चिम मानसून की देरी से वापसी के कारण इसमें लगभग एक सप्ताह की देरी हुई। गौरतलब है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून भारत के उत्तरी भागों में बारिश के लिए जिम्मेदार है। भारत में कुल वर्षा का 75 प्रतिशत दक्षिण-पूर्व मानसून के कारण होता है, जबकि शेष बारिश उत्तर-पश्चिमी मानसून के कारण।
दक्षिण-पश्चिम मानसून में गिरावट के दौरान दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर हवा के रुख में बदलाव पूर्वोत्तर मानसून का कारण है। वैसे भी मानसून को अप्रत्याशित व्यवहार के लिए जाना जाता है। चेन्नई स्थित क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र के उप निदेशक डॉ एस बालचंद्रन के मुताबिक, अक्तूबर और दिसंबर के बीच की अवधि बंगाल की खाड़ी में कम दबाव वाले क्षेत्रों के विकास और अरब सागर में दबाव के कारण उत्तर हिंद महासागर में चक्रवाती गठन के लिए चरम है।
इससे आसपास के क्षेत्रों में बारिश की तीव्रता और हवा की गति प्रभावित होती है। 'क्लाइमेट ट्रेंड्स' द्वारा तैयार एक जानकारी के अनुसार, तीन मौसमी घटनाएं एक साथ आने के कारण तमिलनाडु में भारी बारिश हो रही है। ये तीन घटनाएं हैं-ला नीना, हिंद महासागर द्विध्रुव और मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन, जो समुद्र के वातावरण से जुड़ी परिघटना है, और मौसम को प्रभावित करती है।
यह एक मौसमी घटना है, जो साप्ताहिक से लेकर मासिक स्तर पर उष्णकटिबंधीय मौसम में बड़े उतार-चढ़ाव का कारण बनती है। इसे भूमध्य रेखा के पास बारिश और बादलों के पूर्व की ओर गति के रूप में वर्णित किया जा सकता है। जबकि हिंद महासागर द्विध्रुव वास्तव में समुद्र की सतह के तापमान का एक अनियमित दोलन है, जिसमें पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र तुलनात्मक रूप से गर्म हो जाता है और फिर समुद्र के पूर्वी हिस्से की तुलना में ठंडा हो जाता है।
तापमान में अंतर के कारण नमी से भरी हवाएं चलती हैं, जो प्रायद्वीपीय भारत से होकर गुजरती हैं। ला नीना हमेशा मानसून के उत्तरार्ध के दौरान अच्छी पूर्वोत्तर मानसूनी बारिश से जुड़ा होता है। ला नीना की 85 प्रतिशत संभावना के साथ दिसंबर, 2021 से फरवरी, 2022 तक जारी रहने की उम्मीद है। जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख समस्या के रूप में उभर रहा है, नतीजतन अब तक हम जिस तरह से वर्षा देखते आए हैं, उसमें एक बड़ा बदलाव अवश्यंभावी है।
इस अनियमित बारिश ने सरकारों पर भविष्य में बाढ़ की समस्याओं को दूर करने के लिए पारंपरिक तरीकों के साथ आधुनिक हल तलाशने के लिए दबाव बनाया है। ग्रीनहाउस गैसों के कारण हिंद महासागर दुनिया के किसी भी अन्य महासागर की तुलना में तेजी से गर्म हो रहा है। हालांकि बंगाल की खाड़ी की तुलना में अरब सागर के गर्म होने की दर अधिक है। समुद्र के तापमान में एक या दो डिग्री की वृद्धि का बड़ा प्रभाव हो सकता है।
विगत एक अक्तूबर से नौ नवंबर तक 248.3 मिमी की सामान्य बारिश के मुकाबले 361 मिलीमीटर (मिमी) की वास्तविक बारिश के साथ तमिलनाडु में 45 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। खबर है कि चेन्नई में पांच टीमों सहित राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) की 13 टीमों को बचाव और राहत कार्यों के लिए तमिलनाडु और पुडुचेरी में तैनात किया गया है। इसके साथ ही बाढ़ राहत कार्यों में अतिरिक्त सहायता के लिए तीन टीमों को तैयार रखा गया है।
कई निचले इलाकों में बारिश का पानी जमा हो गया है और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। ईएमडी ने चेन्नई के पास कम दबाव का क्षेत्र बनने की भविष्यवाणी करते हुए कहा है कि यह दबाव दक्षिण-पश्चिम बंगाल की खाड़ी के ऊपर स्थित है, जो पश्चिम-उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ना जारी रखेगा तथा चेन्नई के आसपास उत्तर तमिलनाडु और पास के दक्षिण आंध्र प्रदेश के तटों को पार करेगा।
मौसम पर नजर रखने वाले सी. महेश कहते हैं, 'चेन्नई में बारिश और बाढ़ के दो मुख्य कारण हैं। एक जलवायु परिवर्तन और दूसरा जल निकायों और उनके निकास के रास्तों पर इमारतों का निर्माण। कुछ महीने पहले द्रमुक के सत्ता में आने के बाद एक अलग जलवायु परिवर्तन विभाग का गठन किया गया था। जलवायु परिवर्तन और अतिक्रमण, दोनों से निपटने तथा दीर्घकालिक हल खोजने के लिए इसे आपदा प्रबंधन विभाग के साथ मिलकर काम करना चाहिए।'
अमर उजाला
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