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तमिलनाडु की द्रमुक सरकार मेडिकल
तमिलनाडु की द्रमुक सरकार मेडिकल, डेंटल आदि के लिए होने वाली अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा नीट (नेशनल एंट्रेस कम एलिजिबिलिटी टेस्ट) के विवाद में इस तरह उलझ गई है कि उसका इससे बाहर निकलना मुश्किल है। द्रमुक ने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि सत्ता में आने पर वह नीट को खत्म कर देगी।
लेकिन द्रमुक के सत्ता में आने के करीब चार महीने बाद भी जब नीट खत्म नहीं हुआ, तो निराश छात्रों ने पिछले सप्ताह इसकी परीक्षा दी। लेकिन राज्य के तीन छात्रों ने परीक्षा देने के बाद फेल हो जाने की आशंका से आत्महत्या कर ली। द्रमुक को इस समस्या का समाधान नहीं सूझ रहा था।
चूंकि मुख्य विपक्षी दल अन्नाद्रमुक लगातार उसकी विफलताएं गिना रहा है, ऐसे में, मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार को इस समस्या के लिए जिम्मेदार ठहराया। मुख्यमंत्री ने नीट विवाद के अध्ययन के लिए एक कमेटी गठित की, और उसकी रिपोर्ट के आधार पर पिछले सप्ताह विधानसभा में नीट के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें कहा गया है कि छात्रों को बारहवीं के अंकों के आधार पर दाखिला दिया जाएगा।
केंद्र सरकार नीट के समर्थन में है, तमिलनाडु में भाजपा भी इसका समर्थन करती है, जबकि द्रविड़ पार्टियां सामाजिक न्याय के आधार पर इसका विरोध करती हैं। नीट का यह विवाद सर्वोच्च न्यायालय में है। जब तक उसका फैसला आता है, तब तक तमिलनाडु में इस पर भ्रम बना रहेगा और द्रमुक को भी विपक्ष का विरोध झेलना पड़ेगा।
एमके स्टालिन के सत्ता में करीब चार महीने हो चुके हैं, लेकिन प्रशासनिक मोर्चे पर उन्हें अपनी नेतृत्व क्षमता अभी साबित करनी है। द्रमुक के अब तक के कामकाज के आधार पर कहा जा सकता है कि वह केंद्र से लड़ेगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ राजनीतिक टकराव का रास्ता चुनेगा।
इस बीच स्टालिन सरकार ने न सिर्फ बजट पेश किया है, बल्कि नौकरशाही की महत्वपूर्ण जगहों पर वह अपने लोगों को ले आई है। शीर्ष 350 आईएएस अधिकारियों की अदला-बदली की गई है। मुख्यमंत्री ने कुछ जिलों में स्थानीय निकायों के चुनावों की भी घोषणा की।
उन्हें आशंका थी कि अन्नाद्रमुक इन चुनावों में अपनी ताकत झोंकेगा। जयललिता के न रहने के बावजूद अन्नाद्रमुक का मजबूत वोट बैंक है। द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच तीन लाख वोटों का ही फर्क है और 234 सदस्यीय विधानसभा में अन्नाद्रमुक के 77 विधायक हैं।
इस बीच केंद्र ने भी खुफिया ब्यूरो के एक पूर्व अधिकारी आर एन रवि को तमिलनाडु का नया राज्यपाल बनाने का आश्चर्यजनक फैसला किया। केंद्र सरकार के इस कदम ने स्टालिन सरकार को असहज कर दिया। द्रमुक की सहयोगी पार्टियों ने बयान जारी कर खुफिया ब्यूरो के पूर्व अधिकारी को राज्यपाल बनाए जाने के फैसले की आलोचना शुरू कर दी। अचानक ऐसा बयान क्यों?
क्या उन्होंने नए राज्यपाल की आलोचना इसलिए की, क्योंकि द्रमुक ने उन्हें ऐसा करने को कहा था? वस्तुस्थिति यह है कि द्रमुक के सत्ता में आने के बाद राज्य को और अधिक स्वायत्तता देने की मांग जोर पकड़ने लगी है। इसके अलावा राज्य में अतिवादियों के साथ-साथ पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई की सक्रियता बढ़ने की भी खबर है, जो हिंदू-विरोधी भावनाएं भड़काने के अभियान में लगी हैं।
तमिलनाडु और केरल के अतिवादियों की टेलीफोन वार्ताओं से इलाके में आईएसआई के पैर पसारने के बारे में पता चला है। तमिलनाडु में भाजपा और नरेंद्र मोदी की बढ़ती स्वीकार्यता का पता इसी से चलता है कि यहां कमल निशान से चार विधायक चुने गए हैं। उतनी ही गौर करने वाली बात यह है कि स्टालिन ने अपनी द्रविड़ विचारधारा को थोड़ा उदार स्वरूप दिया है।
स्टालिन की पत्नी दुर्गा स्टालिन इलाहाबाद और वाराणसी के मंदिरों के अलावा नेपाल के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में लगातार जाती रहती हैं। द्रमुक ने अपने चुनावी घोषणापत्र में अयोध्या या द्वारका जाने वाले तीर्थयात्रियों को 25,000 रुपये देने की बात कही थी। राज्य में हिंदू भावनाओं के उभार को देखते हुए ही द्रमुक को घोषणापत्र में यह एलान करना पड़ा था। भाजपा का कहना है कि तमिलनाडु का मीडिया एकपक्षीय है।
इसीलिए भाजपा और अन्नाद्रमुक के नेता टीवी की प्राइम टाइम की बहसों में भाग नहीं लेते। टीवी पर चलने वाली ऐसी बहसें बेमतलब की होती हैं। चूंकि तमिलनाडु में हर राजनीतिक पार्टी का अपना टेलीविजन चैनल है, इसलिए भी राज्य के लोग एक दूसरे को निशाना बनाने वाली ऐसी राजनीतिक बहसों से ऊब चुके हैं।
द्रमुक बेशक भाजपा और एनडीए का विरोधी है, इसके बावजूद इसमें संदेह है कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में वह विपक्ष के गठबंधन में राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद का समर्थन करेगा। द्रमुक का मानना है कि कांग्रेस हाशिये पर आ गई है और उत्तर प्रदेश में आप उसकी जगह ले रही है। खासकर कांग्रेस पर शरद पवार की टिप्पणी के बाद द्रमुक कांग्रेस से सुरक्षित दूरी बनाकर चलना चाहेगा।
बल्कि तमिलनाडु में द्रमुक, पुडुचेरी में भाजपा समर्थित सरकार, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना में टीआरएस, कर्नाटक में भाजपा और केरल में माकपा की सरकारों को देखते हुए 'कांग्रेस मुक्त दक्षिण भारत' एक लोकप्रिय नारा बन गया है।
जहां तक तमिलनाडु की द्रमुक सरकार की बात है, तो अभी तक उसकी तमाम चुनावी घोषणाएं हवाई ही साबित हुई हैं। द्रमुक ने मंदिरों के आभूषण बेचकर वह धन सामाजिक कार्य में खर्च करने की बात कही थी, लेकिन हिंदूवादी समूहों और भाजपा ने उसका विरोध किया है।
इसके अलावा सरकार के इस फैसले का भी ब्राह्मणों ने विरोध किया है कि किसी भी जाति का व्यक्ति पुजारी हो सकता है। स्टालिन सरकार राज्य की और अधिक स्वायत्तता तथा सहकारी संघवाद की जिस आक्रामक तरीके से मांग कर रही है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस पर क्या प्रतिक्रिया करते हैं, यह देखना होगा।
क्या वह सख्ती दिखाएंगे या जुलाई, 2022 तक खामोश रहेंगे, क्योंकि तब राष्ट्रपति के चुनाव होंगे। चूंकि द्रमुक के राज्यसभा में 10 और लोकसभा में 23 सांसद हैं, ऐसे में, इस राजनीतिक दल की अनदेखी भी नहीं की जा सकती।
क्रेडिट बाय अमर उजाला
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