सम्पादकीय

खेती की बात: धान खरीद के कांटे लगने पर असमंजस

Gulabi
23 Sep 2021 6:24 AM GMT
खेती की बात: धान खरीद के कांटे लगने पर असमंजस
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खेती की बात

अमर उजाला पिछली 16 तारीख को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मेरी 20 साल पुरानी याचिका 'वी एम सिंह बनाम केंद्र एवं राज्य सरकार' को खारिज कर दिया, जिससे प्रदेश के किसानों की धान खरीद पर प्रश्नचिह्न लग गया है। याद रहे कि दिल्ली में एमएसपी के लिए चल रहे आंदोलन से 20 साल पहले पीलीभीत से एमएसपी का बड़ा आंदोलन उठा था, जिसमें रेलगाड़ी एवं लगभग 250 किलोमीटर का असम रोड पूरी तरह से बंद कर यातायात पूरी तरह से ठप कर दिया गया था।


इसी दबाव में मुख्यमंत्री भी बदले गए और धान खरीद पहली बार 26 अक्तूबर, 2000 को चालू हुई, जो मंडियां बनने के बाद से बंद पड़ी थीं। धान खरीद चालू हुई, पर आंदोलन खत्म होते ही खरीद बंद कर दी गई। इस पर मेरी याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नौ जनवरी, 2000 को आदेश दिया, जिसके अनुपालन में सरकार ने 16 नवंबर, 2000 को शासनादेश निकाला कि धान खरीद मंडियों में ही होगी और प्रशासन सुनिश्चित करे कि खरीद एमएसपी पर ही होगी।

1,605 धान खरीद केंद्र लगाने की घोषणा हुई। खरीद चालू हुई, पहली बार हो रही थी, इसलिए कोई मापदंड नहीं थे, प्रथम आवक प्रथम जावक। इन सबके बावजूद सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दिया कि उसने एमएसपी खरीद का लक्ष्य एक लाख मीट्रिक टन रखा है, जिस पर कोर्ट ने लताड़ लगाते हुए कहा कि 200 लाख मीट्रिक टन में से एक लाख मीट्रिक टन खरीदेंगे, तो बाकी एमएसपी से कम में बेचेंगे, ऐसे नहीं चलेगा।

कोर्ट ने प्रमुख सचिव और जिलाधिकारी पीलीभीत को कोर्ट में पेश होने का आदेश देते हुए कहा कि केंद्र सरकार से मदद मांगें और पंजाब की तर्ज पर एफसीआई द्वारा खरीद कराएं, जिससे हर किसान का धान एमएसपी पर खरीदा जाए। अगली पेशी पर पीलीभीत के जिलाधिकारी ने बताया कि सात करोड़ के बजट में उन्होंने 10 करोड़ का धान पीलीभीत में खरीदा है। खाद्य सचिव ने माना कि प्रदेश में धान एमएसपी से कम में बिक रहा है और सरकार ने खरीद का कोटा बढ़ाकर तीन लाख मीट्रिक टन कर दिया है, जिस पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा, कि दो फीसदी भी खरीद नहीं होगी, तो किसान तबाह हो जाएंगे।

इसके कुछ घंटों बाद ही सरकार ने शासनादेश निकाला और न्यायालय के सारे आदेश के अनुपालन की सलाह सभी खरीद एजेंसियों को दी, जिसमें स्पष्ट किया कि मानक के आधार पर जितना भी धान आता है, उसे खरीदना ही पड़ेगा और किसी को भी एमएसपी से कम पर बेचने पर मजबूर न होना पड़े। कोर्ट के आदेश और अधिकारियों की पैरवी के कारण सैकड़ों चावल मिल मालिकों के खिलाफ एमएसपी से कम पर खरीदने पर मुकदमे भी चले और कुछ मिलों का लाइसेंस भी रद्द हुआ।

20 फरवरी, 2001 को उच्च न्यायालय ने मुकदमों को समाप्त कर दिया। मुकदमा खत्म होते ही सरकार ने चावल मिल मालिकों के ऊपर लगे मुकदमों को वापस ले लिया। आजादी के 53 साल बाद उत्तर प्रदेश में धान खरीद पहली बार हुई, न्यायालय के आदेशों को लागू करने के लिए शासनादेश बने, जिससे खरीद का रास्ता खुला और जब अंतरिम आदेश हो गए, तो शासनादेश समाप्त होंगे, इसलिए मैंने तत्काल इस आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी।

अदालत ने सरकार की बातों को मानते हुए कहा कि 20 साल में हालात पूरी तरह बदल चुके हैं, धान खरीद में तब्दीली आई है, इसलिए इस याचिका को खारिज किया जाता है। बात फिर 2001 के आदेश पर पहुंच गई है। हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश, जिस पर शासनादेश टिके हैं, खत्म हो गए हैं, इसलिए राज्य में चुनाव को देखते हुए हो सकता है कि इस साल धान खरीद हो जाए, पर भविष्य में संदेह है।

हम पुराने आदेश और शासनादेश को फिर से लागू कराने का प्रयास करेंगे। पर राज्य सरकार को चाहिए कि इस मुद्दे को हमेशा के लिए सुलझाने के लिए एमएसपी पर धान खरीद या फसल खरीद का कानून बनाए, जिससे किसानों को लुटने से बचाया जा सके और एमएसपी आंदोलन भी कामयाब हो पाए।
क्रेडिट बाय अमर उजाला
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