सम्पादकीय

बेतुकी बातों को तूल

Subhi
17 July 2022 3:22 AM GMT
बेतुकी बातों को तूल
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एक नया रिवाज शुरू हो गया है ‘न्यू इंडिया’ में। यह रिवाज है बेकार चीजों पर खूब ध्यान देना और गंभीर चीजों को पूरी तरह अनदेखा करना। पिछले दिनों हमारा ध्यान टिका रहा यह तय करने में कि नए संसद भवन के शिखर पर जो अशोक स्तंभ लगने जा रहा है, उसके शेर अपने दांत क्यों दिखा रहे हैं।

तवलीन सिंह: एक नया रिवाज शुरू हो गया है 'न्यू इंडिया' में। यह रिवाज है बेकार चीजों पर खूब ध्यान देना और गंभीर चीजों को पूरी तरह अनदेखा करना। पिछले दिनों हमारा ध्यान टिका रहा यह तय करने में कि नए संसद भवन के शिखर पर जो अशोक स्तंभ लगने जा रहा है, उसके शेर अपने दांत क्यों दिखा रहे हैं।

मामला इतना गंभीर माना गया कि इस प्रतीक के शिल्पकारों को टीवी चर्चाओं में बुलाया गया। उनसे सवाल पूछे सांसदों और देश के जाने-माने पत्रकारों ने। सवाल इस तरह के थे: आपने राष्ट्रीय प्रतीक को बदलने का काम क्यों किया? सारनाथ में जो अशोक स्तंभ है उसको क्या आपने देखा नहीं? क्या आपने नहीं देखा कि उसमें जो शेर हैं, उनके चेहरे शांत हैं, दयालुता है उनके चेहरों पर, तो आपके शेरों के चेहरे इतने क्रोधित क्यों हैं?

शिल्पकारों ने अपनी सफाई में कहा कि उन्होंने अपनी तरफ से पूरी तरह उस प्राचीन अशोक स्तंभ की नकल की है, लेकिन चूंकि उनके स्तंभ को कहीं ज्यादा बड़ा बनाने का आदेश था, इसलिए शायद शेरों के दांत ज्यादा दिख रहे हैं। मैंने जब इस चर्चा को सुना तो हैरान रह गई। क्या इस पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस होनी भी चाहिए? क्या इससे जुड़ी उस दूसरी बहस की जरूरत भी है कि प्रधानमंत्री ने सिर्फ हिंदू पूजा की, इस प्रतीक का उद्घाटन करते समय?

मेरी नजरों में ये सवाल पूछने लायक नहीं हैं, खासकर जब संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट पिछले सप्ताह प्रकाशित हुई खाद्य सुरक्षा पर, जिसके मुताबिक भारत की आधी महिलाएं एनीमिया या रक्ताल्पता से पीड़ित हैं और इस देश के बच्चों का बुरा हाल है कुपोषण के कारण। सर्वेक्षण कहता है कि कोई बीस करोड़ भारतीय बच्चे कुपोषित हैं और इनमें से कुछ इतनी बुरी तरह कि उमर भर उनको इसका नुकसान झेलना पड़ता है।

क्या इस पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस नहीं होनी चाहिए? लेकिन फुर्सत कहां है गंभीर बातों पर बहस करने के लिए, जब उलझे रहते हैं उन चीजों में जिस पर बहस की जरूरत नहीं होनी चाहिए। उदाहरण है महुआ मोइत्रा की वह बात, जिसमें उन्होंने काली पूजा में गोश्त और शराब की बात कही। सनातन धर्म का मतलब यही है कि पूरा अधिकार है हर व्यक्ति को अपना इष्ट चुनने और उसकी पूजा अपने हिसाब से करने का।

रही बात काली की, तो यह बात पूरी तरह सच है कि देवी के लिए बलि होती थी बकरों की। रही शराब की बात, तो मैंने खुद भैरव के मंदिर देखे हैं जहां शराब चढ़ाई जाती और प्रसाद में मिलती है।

सवाल यह है कि क्या ऐसी चीजों में हम इतना उलझे रहते हैं कि असली मुद्दे भुला दिए जाते हैं? असली मुद्दा, बल्कि शायद सबसे असली मुद्दा है यह कि बेरोजगारी इतनी बढ़ गई है 'नए भारत' में कि बेरोजगार नौजवान आजकल सड़कों पर किसी न किसी मुद्दे को लेकर हिंसक होते हुए दिखते हैं।

हाल में अग्निपथ योजना को लेकर इतना क्रोधित हुए उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा के नौजवान कि ट्रेनें जलाई गर्इं और सरकारी इमारतों पर हमले हुए। सूची लंबी है उन हादसों की, जिनमें कुछ घंटों या कभी कई दिनों के लिए क्रोधित नौजवान हिंसक भीड़ों में दिखने लगते हैं। फिर गुस्सा ठंडा हो जाता है तब तक, जब कोई नया मुद्दा, कोई नई शिकायत, सामने आ जाती है। इस क्रोध, इस हिंसा का असली कारण है नौकरियों का गंभीर अभाव, लेकिन इसकी चर्चा हम करते नहीं हैं।

पिछले सप्ताह रिया चक्रवर्ती और सुशांत सिंह राजपूत के कुछ साथियों के खिलाफ नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने आरोप-पत्र पेश किया। आरोप उन पर है कि उन्होंने सुशांत सिंह के लिए ड्रग्स खरीदने का काम किया। बेशक किया होगा, लेकिन क्या इसी तरह की चीजों में एनसीबी का ध्यान अटका रहना चाहिए, जब हर दूसरे-तीसरे दिन खबर आती है कि पंजाब, गुजरात या कश्मीर में हजारों करोड़ रुपए की हेरोइन बरामद हुई है।

ऐसी खबरें आती हैं और अगले दिन गायब हो जाती हैं। सो, हम कभी जान नहीं पाते हैं कि कौन लोग पकड़े गए थे, उनको दंडित कब किया गया। लेकिन यह जरूर जान जाते हैं कि आर्यन खान को पिछले सप्ताह उसका पासपोर्ट वापस किया एक विशेष अदालत ने। पासपोर्ट जब्त होना नहीं चाहिए था, क्योंकि साबित हो गया है कि शाहरुख खान के बेटे ने कोई अपराध नहीं किया था। उन पर झूठा मुकदमा लगा कर एक पूरा महीना जेल में रखा गया था, न जाने क्यों।

ऐसा उनके साथ किया एनसीबी ने भारतीय जनता पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं के कहने पर, जो अब गायब हो गए हैं, सो शायद हम कभी नहीं जान पाएंगे कि उनके खिलाफ कार्रवाई की गई है या नहीं। इसी तरह का मामला है मोहम्मद जुबैर का, जिसको अभी तक जमानत नहीं मिली है, बावजूद सर्वोच्च अदालत के आदेश के, क्योंकि उनको कोई फंसाना या डराना चाह रहा है, ताकि जब उसकी रिहाई हो, वह फिर कभी झूठी खबरों का सच रोशन करने की हिम्मत न दिखाए।

ऐसा उसके साथ हो रहा है बदले की भावना के कारण। यह बात साबित हो जाती है सोशल मीडिया पर कुछ मिनट गुजारने के बाद। मोदीभक्त और भाजपा समर्थक खुल कर इन दिनों खुशियां मना रहे हैं जुबैर की गिरफ्तारी पर और उनको खूब गालियां देते हैं, जो उसको जमानत मिलने की दलील कर रहे हैं। भक्त मंडली की नजरों में जुबैर प्यादा बन गए हैं एक अंतरराष्ट्रीय साजिश का, जिसका मकसद है भारत को कमजोर करना।


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