सम्पादकीय

तालिबान का छलावा

Gulabi
19 Aug 2021 4:08 AM GMT
तालिबान का छलावा
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तालिबान के प्रवक्ताओं सुहैल शाहीन और जबीहुल्लाह मुजाहिद ने हुकूमत का उदार और समन्वयवादी चेहरा पेश करने की कोशिश की है।

दिव्याहिमाचल।

तालिबान नेताओं ने अफगानिस्तान के अवाम, खासकर औरतों, को आश्वस्त किया है कि वे साझा, समावेशी और मानवाधिकारवादी हुकूमत चलाएंगे। औरतों के हुकूक का सम्मान किया जाएगा। किसी के घर में घुसने या हथियार छीनने के कोई निर्देश नहीं हैं। सरकारी कर्मचारी और आम अवाम अपने काम पर लौटें। तालिबान ने कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को माफी दे दी है। हुकूमत किसी के खिलाफ नहीं है। अवाम रूटीन लाइफ शुरू करें। शरिया कानून के मुताबिक, महिलाएं सरकार में शामिल हों और साझा भूमिका निभाएं। वे पढ़े-लिखें, काम करें और आगे बढ़ें। कोई पाबंदी नहीं है। अफगान युवा हमारी संपत्ति हैं, वे यहां पले-बढ़े हैं, लिहाजा वे मुल्क छोड़ कर न जाएं। दरअसल किसी को डरने या खौफ खाने की ज़रूरत नहीं है। अफगानिस्तान में नई हुकूमत शक्ल अख्तियार कर रही है, लिहाजा उसे काम करने का मौका दिया जाए। हुकूमत की धार्मिक भावना को समझा जाए और उसी के मुताबिक देश और दुनिया उसे मान्यता दे। विदेशी दूतावास और संस्थान भी किसी के निशाने पर नहीं हैं। उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। भारत का नाम लिए बिना ही तालिबान ने आश्वासन दिया है कि यदि किसी के प्रोजेक्ट अधूरे हैं, तो वे उन्हें पूरा करें, क्योंकि यह अफगान अवाम के हित में होगा। कोई भी, किसी देश के खिलाफ अफगान सरज़मीं को इस्तेमाल नहीं कर सकेगा। तालिबान के प्रवक्ताओं सुहैल शाहीन और जबीहुल्लाह मुजाहिद ने हुकूमत का उदार और समन्वयवादी चेहरा पेश करने की कोशिश की है।
उन्होंने शैतानियत का जरा-सा भी संकेत नहीं दिया है और न ही सामूहिक तौर पर बर्बर वारदातें सार्वजनिक हो रही हैं। तालिबान ने लोकतंत्र की जुबां बोली है, हालांकि लोकतंत्र उनके संस्कारों और सोच में बिल्कुल भी नहीं है। वे मध्यकालीन कबीलाई जीवन-शैली को जानते हैं और उसी के मुताबिक सक्रिय रहे हैं। चीन, रूस, पाकिस्तान, तुर्की वगैरह देश तालिबान की जुबां और आश्वासनों पर भरोसा कर रहे हैं, क्योंकि उनके हितों का फोकस अफगानिस्तान के कई ट्रिलियन डॉलर के खनिज संसाधनों पर है, लिहाजा वे हालात को पहले की अपेक्षा बेहतर आंक रहे हैं। काबुल की सड़कों पर जो भगदड़, अफरातफरी मची है, लोग किसी भी तरह अफगानिस्तान छोड़ कर भागना चाहते हैं, गनी सरकार के दौरान मेयर रहीं एक राजनेत्री अपने परिवार समेत इंतज़ार कर रही हैं कि तालिबान आएं और उन सभी की हत्या कर दें, काबुल के बाहर बर्बरताओं की कुछ ख़बरें सामने आई हैं, ज्यादातर दूतावास बंद हो चुके हैं, तो बुनियादी सवाल यह है कि क्या रूस ऐसे हालात को बेहतर आंक सकता है? क्या तालिबान का नया चेहरा महज एक छलावा है? क्या भारत सरकार अब तालिबान हुकूमत के साथ संवाद करेगी या उन्हें आतंकी करार देगी? गौरतलब यह है कि काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद जेलों से करीब 2300 आतंकियों को रिहा किया गया है। उनमें अलकायदा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान आदि के आतंकी ज्यादातर थे
वे कहां गए हैं, कहां सक्रिय होंगे और अंततः आतंकवाद नहीं फैलाएंगे, तालिबान प्रवक्ताओं ने इन सवालों का जरा-सा भी संकेतात्मक जवाब नहीं दिया है। सरहदी इलाकों से ख़बरें आई हैं कि तालिबान आतंकियों ने कहा है कि अब पाकिस्तान की बारी है। खौफनाक सच यह है कि अमरीकी सैनिक तोप, टैंक, बख्तरबंद वाहन, बारूदी सुरंग से बचाने वाले वाहन आदि तमाम आधुनिक हथियार थोक में छोड़ गए हैं। तालिबान ने उन पर भी कब्जा पा लिया है, लिहाजा लड़ाके और उनके समर्थक जेहादी अब हथियार सम्पन्न होंगे। दरअसल इस बार तालिबान की जुबां ही बदली लग रही है, क्योंकि उसे संयुक्त राष्ट्र और महत्त्वपूर्ण देशों की एकबारगी मान्यता की दरकार है। तालिबान के पास आर्थिक संसाधन सीमित ही हैं। यदि बड़े देशों की आर्थिक पाबंदियां लगनी शुरू हो गईं, तो हुकूमत देश कैसे चला पाएगी? विश्व तालिबान के इस प्रपंचमयी छलावे को बखूबी जानता है, फिर भी अभी वे देश आकलन जरूर करेंगे, क्योंकि चीन के रूप में तालिबान के पास आर्थिक सहारा दिखाई देता है। भारत सरकार ने फिलहाल कोई राजनयिक निर्णय नहीं लिया है, लेकिन कैबिनेट की सुरक्षा संबंधी समिति की बैठकों में यह जरूर तय किया गया है कि सभी भारतीयों को अफगानिस्तान से वापस लाया जाएगा। ऐसे 1650 से ज्यादा भारतीय आवेदन कर चुके हैं कि उन्हें बचाया जाए।
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