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अफगानिस्तान के सबसे बड़े 'गद्दार' राष्ट्रपति रहे अशरफ गनी हैं
दिव्याहिमाचल।
अफगानिस्तान के सबसे बड़े 'गद्दार' राष्ट्रपति रहे अशरफ गनी हैं। वह काबुल छोड़ कर भाग चुके हैं और ओमान में बताए जा रहे हैं। इतिहास उनकी नालायकी, कायरता और देश-विरोधी शख्सियत की व्याख्या करेगा। गनी अफगानिस्तान के चुने हुए राष्ट्रपति थे। जनता और देश ने भरोसा जताया था, लिहाजा सुरक्षा, स्थिरता और शांति उनकी बुनियादी जिम्मेदारी थी। अफगान राष्ट्रपति, अंततः, 'भगोड़ा' साबित हुआ। बेशक अशरफ गनी बेहद विद्वान व्यक्ति रहे हैं। विश्व बैंक में सेवाएं दी हैं और अमरीकी विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर रहे हैं। तो फिर अफगानिस्तान क्यों आए थे? शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि अफगान सैनिकों और पुलिस बल ने अपने राष्ट्रपति और सरकार के लिए लड़ना मुनासिब नहीं समझा और तालिबानी आतंकी लड़ाकों के सामने आत्म-समर्पण करते रहे। तालिबान ने कुछ ही दिनों में कंधार, जलालाबाद, कुंदूज, मजार-ए-शरीफ और अंततः काबुल पर लगातार कब्जे करते हुए अफगानिस्तान की हुकूमत हथिया ली। यह इतना आसान नहीं था। अमरीका का आकलन भी 90 दिनों तक का था। अमरीका की सेना और वर्चस्ववादी दखल 20 साल से अधिक समय तक रहा।
उसने अफगान में 3 ट्रिलियन डॉलर फूंक दिए। तीन लाख से ज्यादा अफगान सेना को प्रशिक्षित किया। आधुनिक हथियार और उपकरण मुहैया कराए। उस सेना ने अचानक और अप्रत्याशित तौर पर आतंकियों के सामने घुटने क्यों टेक दिए? अमरीका सिर्फ 9/11 के भयानक आतंकी हमले के गुस्सैल प्रतिशोध में अफगानिस्तान गया था। अलकायदा का तत्कालीन सरगना ओसामा बिन लादेन वहीं छिपा था। अमरीका पर हमला लादेन की ही साजि़श और रणनीति थी। अलकायदा के आतंकी अड्डों को नेस्तनाबूद करना ही अमरीकी लक्ष्य था। वह प्रतिशोध 20 साल तक जारी रहा! मौजूदा टकराव के दौर में अमरीकी बॉम्बर से हवाई हमले किए गए।
दावे किए जाते रहे कि इतने आतंकी ढेर कर दिए गए, इतने घायल हुए हैं और तालिबानी आतंकी ठिकानों को 'मलबा' कर दिया गया है! अमरीकी वायुसेना 60-70 हजार तालिबान लड़ाकों का खात्मा नहीं कर सकी। 'भगोड़ा राष्ट्रपति' भी अमरीकी शरण में पहुंचने को है। हालांकि अमरीकी राष्ट्रपति जो.बाइडेन ने अफगान हालात के लिए गनी पर ही ठीकरा फोड़ा है। पेंटागन ने गनी की लोकेशन से इंकार किया है। क्या अफगानिस्तान को तालिबान हुकूमत को सौंपना भी अमरीकी रणनीति का हिस्सा था? अमरीका ने पाकिस्तान, अफगान और उज्बेकिस्तान को लेकर जिस 'क्वाड' का गठन किया था, उसके मकसद और मंसूबे अब साफ होने लगे हैं। अब अफगान तालिबान का है। चारों तरफ तालिबानी लड़ाके मौजूद हैं। दूतावासों वाला इलाका भी घेर रखा है। जो हुकूमत 20 साल पहले थी, उसी की विरासत अब सामने है। अफगान में भारत का बहुत कुछ दांव पर है। अफगानिस्तान 'घर' ही रहा है, क्योंकि प्राचीन भारत का ही हिस्सा था। तालिबान की मुल्ला उमर वाली हुकूमत के दौरान खंडहर हुए अफगानिस्तान को नए सिरे से बनाना, संवारना और विकसित करने के मद्देनजर भारत के 3 अरब डॉलर से अधिक वहां निवेश किए जा चुके हैं। करीब 400 परियोजनाएं भारत चलाता रहा है।
Gulabi
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