सम्पादकीय

तालिबानी हक नहीं मान्यता

Gulabi
29 Sep 2021 6:22 AM GMT
तालिबानी हक नहीं मान्यता
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अफगानिस्तान पर काबिज तालिबान ने संयुक्त राष्ट्र की मान्यता को अपना अधिकार माना है

दिव्यहिमाचल. अफगानिस्तान पर काबिज तालिबान ने संयुक्त राष्ट्र की मान्यता को अपना अधिकार माना है। उसके प्रवक्ता जबीहुल्लाह का दावा है कि दुनिया जल्द ही तालिबान की हुकूमत को मान्यता देगी। फिर संयुक्त राष्ट्र उनकी मान्यता से इंकार कैसे कर सकेगा? वैश्विक मान्यता हमारा अधिकार है। तालिबान ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुतारेस को पत्र लिख कर मान्यता देने का आग्रह भी किया है। यूएन महासभा का सत्र अभी जारी है। महासभा में अफगानिस्तान ही नहीं, म्यांमार के प्रतिनिधि को भी संबोधन-मंच नहीं दिया गया है। पुरानी अफगान सरकार के प्रतिनिधि को भी बोलने की अनुमति नहीं दी गई है। इसके बावजूद तालिबान मान्यता को अपना हक करार दे रहे हैं! पाकिस्तान और चीन सरीखे करीबी और कथित समर्थक देशों ने भी अभी तक तालिबानी अफगानिस्तान को औपचारिक मान्यता नहीं दी है। रूस भी इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान से कतराने लगा है। आतंकवाद से रूस भी डरा हुआ है। यूरोपीय देश तालिबानी हुकूमत को मान्यता नहीं देंगे। इटली के विदेश मंत्री ने स्पष्ट घोषणा की है कि तालिबानी देश को मान्यता देना 'असंभव' है। वहां की कैबिनेट में 17 कुख्यात और यूएन सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित आतंकियों को मंत्री बनाया गया है। विश्व इसे कैसे स्वीकार कर सकता है? यूरोपीय संसद में पाकिस्तान की भूमिका पर ही संदेह करते हुए कई सवाल उठाए गए हैं।

अमरीका और भारत के दायरे में 32 देश ऐसे हैं, जिन्होंने तालिबान को मान्यता देने के किसी भी प्रस्ताव को खारिज करना तय किया है। यूएन की स्थायी सदस्यता और मान्यता संबंधी बैठक नवंबर में होनी है। जो एजेंडा तय किया गया है, उसमें अफगानिस्तान की मान्यता का उल्लेख नहीं है। क्या इतने विरोध और सवालों के बावजूद यूएन तालिबानी हुकूमत को मान्यता दे सकता है? बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि यूएन के सदस्य-देश ही विमर्श के बाद मान्यता तय करते हैं। उसके नियम और शतंर्े हैं। तालिबान उन पर खरा नहीं उतरता। दरअसल तालिबान अब भी बर्बर, जल्लाद, हत्यारा, शैतान और हैवान है। यह उनकी फितरत और संस्कार हैं। हाल ही में कुछ शव क्रेन पर लटकाए गए, एक औरत को फासी दे दी गई, औरत और मर्दों को सरेआम कोड़े मारे जा रहे हैं। इनसानों के अंग भी काटे जा रहे हैं। तमाम क्रूरताओं को 'इस्लामी' करार दिया जा रहा है। पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला के भाई को प्रताड़नाएं दी गईं और फिर सिर काट कर मार दिया गया। कई दिनों तक लाश भी घरवालों को नहीं दी गई। अंतिम संस्कार के बिना लाश सड़ती रही। अब क्या हुआ होगा, हमें जानकारी नहीं, लेकिन ये तमाम चित्र टीवी चैनलों पर दिखाए गए हैं। हालांकि अब तालिबान प्रवक्ता औरतों के सम्मान की बात करने लगे हैं, लेकिन तालिबान में ही दूसरा पक्ष ऐसा है, जो औरत को 'आधी आबादी' ही नहीं मानता। अफगानिस्तान में हजारा समुदाय अल्पसंख्यक हैं।
वे घर छोड़ कर भागने को विवश हैं। उन्हें घर, खेत, संपदा छोड़ कर चले जाने को मजबूर किया जा रहा है। तालिबान लोकतांत्रिक, समावेशी और मानवाधिकारवादी कैसे हो सकते हैं? यदि ऐसा नहीं होगा, तो यूएन और विश्व का कोई भी संवेदनशील देश उन्हें मान्यता कैसे दे सकता है? तालिबान मान्यता के लिए तड़प रहा है, क्योंकि अफगानिस्तान के अरबों डॉलर जब्त हुए पड़े हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक, ऑसियान विकास बैंक और अन्य वैश्विक एजेंसियां भी तब तक फंड जारी नहीं करेंगी, जब तक यूएन से अधिकृत मान्यता नहीं मिल जाती। अफगानिस्तान में घोर मानवीय संकट के हालात हैं। भूख से बचने और कुछ भोजन का जुगाड़ करने के लिए बच्चे चोरी करने पर आमादा हैं। यह चित्र भी दुनिया के सामने आया है कि तालिबान लड़ाकों ने ऐसे ही दो किशोर बच्चों को रस्सियों से बांध रखा है। बुनियादी सवाल यह पूछा जा रहा है कि क्या अफगान जनता ने तालिबानी हुकूमत को मान्यता दे दी है? दरअसल मान्यता इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि कुछ देश अफगानियों की मानवीय मदद करना चाहते हैं, लिहाजा आर्थिक मदद भेजेंगे, तो वह किन हाथों में जाएगी? तालिबान तो इतने अमानवीय हैं कि कोई भूखा मरे या तड़प-तड़प कर जीता रहेे, उनका कोई सरोकार नहीं। दरअसल वे दुनिया से पैसा ऐंठना चाहते हैं, ताकि आतंकियों को जि़ंदा रख सकें और आतंकवादी जेहाद फैलाते रहें। कमोबेश तालिबान के ऐसे मंसूबे तो साकार नहीं होंगे, क्योंकि यूएन की मान्यता आसान नहीं है।
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