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तालिबानी आफत: अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | भूपेंद्र सिंह| अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा न केवल इस देश, बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी है। अपनी हैवानियत के लिए कुख्यात तालिबान आनन-फानन अफगानिस्तान पर इसीलिए काबिज हो गए, क्योंकि एक तो अमेरिका ने अफगान सरकार को उसके हाल पर छोड़ दिया और दूसरे, अफगानिस्तान की सेना नाकारा साबित हुई। यह हैरान करता है कि तीन लाख की अफगानिस्तानी सेना ने करीब 80 हजार तालिबान जिहादियों के सामने घुटने टेक दिए। उसके शर्मनाक समर्पण ने यही बताया कि अमेरिकी प्रशासन के इन दावों में कोई दम नहीं था कि अफगान सेना अच्छी तरह प्रशिक्षित है और वह तालिबान का सामना करने में सक्षम है। चूंकि ज्यादातर जगहों पर इस सेना ने बिना लड़े हथियार डाल दिए इसलिए तालिबान देखते ही देखते काबुल में आ धमके। तालिबान के काबुल में घुसते ही अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और उनके साथी जिस तरह देश छोड़कर भाग गए, उससे यही पता चला कि वे हालात का सामना करने के लिए तनिक भी तैयार नहीं थे। संकट के समय चुपचाप देश से भागने वाले अशरफ गनी ने अपनी बची-खुची प्रतिष्ठा ही गंवाई। ऐसा लगता है कि वह और उनके साथियों की दिलचस्पी सत्ता की मलाई चखने में अधिक थी और इसीलिए वह अपनी सरकार और सेना में फैले उस भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगा सके, जिसने उन्हें खोखला कर दिया था। यदि अशरफ गनी का शासन-प्रशासन खोखला नहीं होता तो उसने इस तरह मैदान नहीं छोड़ा होता।
अब अफगानिस्तान का भविष्य तालिबान के हाथों में है, लेकिन वह बहुत भयावह नजर आ रहा है। तालिबान को समर्थन एवं संरक्षण देने वाले पाकिस्तान और उसके आका चीन को छोड़ दें तो सारी दुनिया यही मान रही है कि अब अफगानिस्तान मध्ययुगीन बर्बरता का शिकार बनेगा। भले ही तालिबान यह जताने की कोशिश कर रहा हो कि वह सुधर गया है, लेकिन इसके कहीं कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है, उससे यही लगता है कि यहां के लोगों की जिंदगी नरक बनने जा रही है। इसका प्रमाण हैं काबुल हवाईअड्डे के दिल दहलाने वाले दृश्य। हजारों लोग येन-केन-प्रकारेण देश से निकलने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। इन हालात के लिए सीधे तौर पर बाइडन प्रशासन जिम्मेदार है, जिसने बिना सोचे-समझे अपनी सेनाओं को वहां से निकालने का फैसला कर लिया। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद भारत को न केवल सतर्क हो जाना चाहिए, बल्कि उन आशंकाओं के निदान में जुट जाना चाहिए, जिनके तहत यह माना जा रहा है कि पाकिस्तान इस आतंकी समूह का इस्तेमाल भारतीय हितों के खिलाफ कर सकता है।