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पाकिस्तान (Pakistan) में इस वक्त जश्न का माहौल है, वहां की हुकूमत और खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) मिठाइयां बांट रही है, क्योंकि तालिबान (Taliban) ने अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्जा कर लिया है. उसे लगता है
संयम श्रीवास्तव। पाकिस्तान (Pakistan) में इस वक्त जश्न का माहौल है, वहां की हुकूमत और खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) मिठाइयां बांट रही है, क्योंकि तालिबान (Taliban) ने अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्जा कर लिया है. उसे लगता है कि उसकी पांचों उंगलियां घी में और सर कढ़ाई में है. लेकिन वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान की आम जनता के मन में खौफ का माहौल भरने लगा है. वहां का बुद्धिजीवी वर्ग पाकिस्तान के भविष्य को लेकर चिंतित है. क्योंकि उसे पता है कि तालिबान किसी भी तरह से पाकिस्तान और उसके लोगों के हित में नहीं है. आज नहीं तो कल यह आतंकवादी भस्मासुर पाकिस्तान को भी जलाकर भस्म कर देगा. तालिबान कैसे पाकिस्तान के लिए भस्मासुर इतिहास में भी बना है और आगे भी बन सकता है यह जानने के लिए आपको खुद इतिहास में चलना होगा.
90 के शुरुआती दौर में अफगानिस्तान में तालिबान धीरे-धीरे खड़ा होने लगा था. वहीं उसके पड़ोसी देश पाकिस्तान में 1993 में बेनजीर भुट्टो की सरकार बनी थी. बेनजीर भुट्टो की सरकार बनते ही उन्होंने अपने फायदे के लिए अफगानिस्तान की गुलबुद्दीन हिकमतयार सरकार को धीरे-धीरे किनारे लगाने का रास्ता ढूंढने लगीं. क्योंकि रूस के अफगानिस्तान से चले जाने के बाद पाकिस्तान की सरकार चाहती थी कि अफगानिस्तान की सरकार उसकी कठपुतली बन जाए और उसके इशारों पर काम करे. लेकिन गुलबुद्दीन की सरकार ऐसा नहीं कर रही थी. बेनजीर भुट्टो ने इस सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए वहां के तालिबान को और मजबूत किया. उन्होंने अपने सीमावर्ती इलाकों के मदरसों में पढ़ने वाले अफगानी नौजवानों को कट्टरपंथी विचारधारा की ओर झोंकना शुरू कर दिया.
धीरे-धीरे पाकिस्तान की शह पर तालिबान इतना मजबूत हो गया कि उसने बेनजीर भुट्टो को ही खत्म कर दिया. दिसंबर 2007 में जब बेनजीर भुट्टो की हत्या हुई, जिन्होंने तालिबान के गठन में मुख्य भूमिका निभाई थी तो खुलासा हुआ कि किस तरह से इस तालिबानी भस्मासुर ने अपने ही आकाओं को निशाना बनाया. इस तरह के कई किस्से हैं, जिन्होंने बताया है कि हिंसा और आतंकवाद उसी के दुश्मन बन जाते हैं जो उसे खड़ा करता है. इराक और सीरिया जैसे देश भी इसकी जीती जागती मिसाल हैं.
पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में मजबूत होता तालिबान
तालिबान केवल अफगानिस्तान पर ही कब्जा नहीं कर रहा है. बल्कि उसने पाकिस्तान की सीमावर्ती इलाकों पर भी चढ़ाई की है. अमेरिकी फौजों के जाने के साथ ही तालिबान ने अफगानिस्तान में तांडव करना शुरू कर दिया था. उसी दौरान उसने पाकिस्तान की सीमावर्ती इलाकों के अफगानी सेना की चौकियों पर भी हमले किए और उन पर कब्जा कर लिया. इस वजह से बलूचिस्तान के इलाकों में दहशत का माहौल है. हालांकि पाकिस्तान को इससे भी ज्यादा बड़ा खतरा तालिबानी सोच और उसकी कट्टरपंथी विचारधारा से है. पाकिस्तान भले ही एक इस्लामी देश है, लेकिन उसकी विचारधारा में या वहां के लोगों की सोच में उतना कट्टरवाद नहीं है कि वह महिलाओं को बुर्का न पहनने पर गोली मार दें. चोरी किए जाने पर हाथ काट दे और दोषियों को पत्थरों से मार-मार कर उनकी जान ले ले.
पाकिस्तान में आज महिलाएं पढ़ी-लिखी हैं. वह नौकरी करती हैं. अपने मनपसंद के कपड़े पहनती हैं. उन्हें बोलने लिखने की आजादी है. लेकिन बीते दिनों जिस तरह का माहौल पाकिस्तान में देखा गया है उससे डर बढ़ गया है. तालिबान के मजबूत होने के साथ-साथ पाकिस्तान में भी तालिबान जिंदाबाद के नारे लगने लगे हैं और वहां के कुछ संगठन और कुछ लोग जो कट्टरपंथी विचारधारा से ताल्लुक रखते हैं वे मजबूत होने लगे हैं. अगर यह जहर पूरे पाकिस्तान में धीरे-धीरे फैल गया तो उसकी स्थिति भी उसके पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान जैसी हो जाएगी, जहां आज केवल और केवल तबाही है.
वैश्विक स्तर पर फिर पाकिस्तान की किरकिरी होगी
पाकिस्तान को हमेशा से इस्लामिक आतंकवाद का गढ़ माना गया है. पहले यह इल्जाम केवल हिंदुस्तान लगाता था, लेकिन अब पूरी दुनिया पाकिस्तान पर उंगली उठाती है. 2008 में जब मुंबई का आतंकी हमला हुआ, उस वक्त भी यह बात सामने आई कि इसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है. इसके बाद 3 मार्च 2009 को जब पाकिस्तान दौरे पर गई श्रीलंका की क्रिकेट टीम पर आतंकी हमला हुआ तो उसकी निंदा पूरे विश्व में कि गई. यहां तक की अब पाकिस्तान में क्रिकेट के अंतरराष्ट्रीय आयोजन भी नहीं होते हैं. ओसामा बिन लादेन जब मारा गया तब भी पाकिस्तान की खूब किरकिरी हुई थी. क्योंकि दुनिया का सबसे मोस्ट वांटेड आतंकवादी पाकिस्तान के एबटाबाद में बैठा था.
इस घटना के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद में काफी कटौती की और तो और वहां के छोटे-छोटे अधिकारी भी पाकिस्तान को सार्वजनिक मंचों से लताड़ने लगे. पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेना अध्यक्ष परवेज मुशर्रफ ने तो एक बार एक अमेरिकी टीवी को इंटरव्यू देते हुए बताया था कि 9/11 के हमले के बाद जब अमेरिका ने अपनी फौज को अफगानिस्तान भेजने का फैसला लिया तो वहां के अधिकारी हमें खुले शब्दों में धमकी देते थे. वह कहते थे की 'बमबारी झेलने को तैयार हो जाओ, अब तुम लोगों को पाषाण काल में वापस लौटना होगा.'
आतंकवाद ही एक मात्र वजह है कि पाकिस्तान को अब यूरोप और अमेरिका से उतनी मदद नहीं मिलती जितनी कि पहले मिलती थी. हालांकि यह बात अलग है कि अमेरिका से भीख ना मिलने के बाद पाकिस्तान ने चीन के सामने हाथ फैला लिया और चीन ने उसे अब भीख देना भी शुरू कर दिया है. लेकिन चीन उसे भीख दे रहा है या धीरे-धीरे पाकिस्तान को खोखला कर रहा है यह सोचने वाली बात है.
जैसी करनी वैसी भरनी से भी गुजरा है पाकिस्तान
'तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान' एक ऐसा आतंकी संगठन है, जिसे पाकिस्तान ने खड़ा किया और उसने पाकिस्तान को ही नेस्तनाबूद करने की कसम खा ली है. 13 संगठनों को मिलाकर बना 'तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान' आज पूरे दक्षिण एशिया के लिए मुसीबत बन गया है. 2007 में बेनजीर भुट्टो की हत्या में भी इसी संगठन का हाथ था. हालांकि संगठन ने पाकिस्तान को सबसे ज्यादा और सबसे बड़ी चोट 8 जून 2014 को दी, जिसमें पेशावर के एक सैनिक स्कूल में हमला हुआ और वहां 132 बच्चों समेत डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. इस घटना ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया. उन देशों ने भी इस घटना की निंदा की और पाकिस्तान के लिए दुख जताया जो पाकिस्तान को पसंद तक नहीं करते.
लेकिन पाकिस्तान ने इससे कुछ नहीं सीखा और वह आज भी तालिबान को मजबूत करने में लगा हुआ है. उसे यह याद नहीं है कि ऐसे ही आतंकी संगठनों ने उसके बच्चों पर गोलियां चलाई थीं. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और पाकिस्तानी सरकार भारत को कमजोर करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है यहां तक कि अपने ही मुल्क और वहां के लोगों की जिंदगी भी बर्बाद हो जाए तो उन्हें फर्क नहीं पड़ता.
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