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काबुल एयरपोर्ट पर कल रात जो कुछ हुआ वह कोई हैरत की बात नहीं है। इन धमाके भले आईएसआईएस ने किए
काबुल एयरपोर्ट पर कल रात जो कुछ हुआ वह कोई हैरत की बात नहीं है। इन धमाके भले आईएसआईएस ने किए, लेकिन इसका जिम्मेदार ताबिलबान है। तालिबान के पास न अपनी इंटेलीजेंस हैं, न ट्रेंड सेना है न अपनी कोई पुलिस व्यवस्था।
दरअसल, उनकी सरकार वैसी ही है जैसे किसे कबीले को किसी बड़े देश का सम्राट बना दिया जाए, इसलिए आईएसआईएस अफगानिस्तान में जो चाहे वो कर सकता है। और उसने वही किया, क्योंकि वो तालिबान को किसी कीमत पर सत्ता के शिखर पर नहीं देखना चाहता।
इधर, वह खुद खुसरान के आसपास के भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान जैसे देशों पर फतह हासिल कर उसे इस्लामिक स्टेट बना कर शरियत कानून से चलाना चाहता है। तो उसने जाहिल तालिबान के प्रति नफरत को और बढ़ाने के लिए ऐसा किया। और वही हुआ। अभी रूस ने भी कह दिया है वो तालिबान को मान्यता देने में जल्दबाजी नहीं करेगा।
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा छीछालेदर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की हुई। जो बाइडन एक बहुत कमजोर नेता हैं। वे अमेरिका के सबसे बुजुर्गवार नेताओं में एक हैं। सारी जिन्दगी कोशिश करते रहे पर राष्ट्रपति नहीं बन सके।
झूठ, फरेब के आरोपों और राजनीतिक विवादों में घिरे रहने वाले जो बाइडन के लम्बे अनुभव के कारण बराक ओबामा उन्हें "अमेरिका को मिला अब तक का सबसे बेहतरीन उप-राष्ट्रपति" बता चुके हैं। पर सच ये है कि वे बहुत कमजोर इरादे वाले इंसान हैं।
बाइडन का डर और ऑपरेशन ओसामा की कहानी
आपको एक कहानी सुनाता हूं। साल 2009 के चुनाव में ओबामा के राष्ट्रपति बनने के साथ जो बाइडन पहली बार अमेरिका के उप राष्ट्रपति बने थे। वे अमेरिका के पहले रोमन कैथोलिक उप राष्ट्रपति थे। बाइडन की मदद से ही ओबामा ने अपनी अफगानिस्तान रणनीति तैयार की थी। बाइडन ने हर दो महीने में इराक का दौरा किया।
इराकी नेतृत्व को संदेश देने के लिए बाइडन इराकी प्रशासन के 'प्वाइंट मैन' बन गए। इसी बीच खबर आई कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में छुपा है। वो इस्लामाबाद से 35 किलोमीटर दूर एबटाबाद शहर के बाहरी इलाक़े के एक बड़े अहाते में अपने परिवार के साथ रहता था। लेकिन अमेरिकी जासूसों के पास इस बाद का कोई पक्का सबूत नहीं था कि बिन लादेन वहीं पर छुपा है।
ओबामा के पास केवल दो विकल्प थे। पहला विकल्प ये कि अहाते को हवाई हमले से बर्बाद कर दिया जाए। इसका पहला फ़ायदा ये था कि पाकिस्तान की धरती पर किसी अमेरिकी के मारे जाने का जोख़िम बिल्कुल नहीं था। सार्वजनिक रूप से अमेरिका ये खंडन कर सकता था कि इस हमले में उसका कोई हाथ है। लेकिन इसका नुकसान ये था कि अगर अहाते को बर्बाद करने में वे सफल हो भी गए तो ये कैसे तय होगा कि उसके अंदर लादेन मौजूद था? और अगर अल-क़ायदा ने उसका खंडन कर दिया तो हम कैसे सिद्ध करेंगे कि लादेन मारा गया है?
दूसरे इस ख़तरे से भी इनक़ार नहीं किया जा सकता था कि अहाते के अलावा उसके आस-पास रहने वाले लोग भी मारे जा सकते थे। पर तब के उप-राष्ट्रपति जो बाइडन इस हमले के खिलाफ़ थे।
उनका तर्क-
इसके असफल होने के परिणाम बहुत घातक होंगे। इस रेड को तब तक स्थगित रखा जाए जब तक ख़ुफ़िया सूत्र वहां ओसामा बिन लादेन के रहने के बारे में पूरी तरह से सुनिश्चित न हो जाए।
हिलेरी क्लिंटन की भी चिंता थी कि इससे अमेरीका और पाकिस्तान के संबंध खराब हो जाएंगे। उन्हें इस बात का भी डर था कि अमेरिकी सील्स का पाकिस्तानी सेना से न आमना-सामना हो जाए। इन सब विरोधों के बाद भी ओबामा ने अमेरिकी सील्स को ऑपरेशन की इजाजत दी और बिन लादेन मारा गया।
जब ऑपरेशन चल रहा था तब क्या सोच रहे थे बाइडेन
जब ये ऑपरेशन चल रहा था तो व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति ओबामा और उप राष्ट्रपति बाइडन सांस रोके पूरे ऑपरेशन को लाइव देख रहे थे। अभी ओबामा को वहां बैठे एक मिनट ही हुआ था कि एक ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर उतरते हुए थोड़ा हिला और इससे पहले कि वो कुछ समझ पाते उन्हें बताया गया कि हेलिकॉप्टर का एक पंख अहाते की दीवार से टकरा गया है।
बराक ओबामा अपनी आत्मकथा 'अ प्रॉमिस्ड लैंड' में लिखते हैं-
"एक क्षण के लिए तो मैं बहुत डर गया और मेरे सिर में घूमने लगा कि कुछ बुरा होने वाला है, तभी वाइस एडमिरल बिल मैकरेवन की आवाज़ मेरे कानों में गूंजी, 'सब कुछ ठीक होगा।' ये हमारे सर्वश्रेष्ठ पायलट हैं। वो हेलिकॉप्टर को सुरक्षित नीचे ले आएंगे।
और जाहिर है ऐसा ही हुआ। बीस मिनट तक मैकरेवन को भी पूरी तरह नहीं दिखाई दे रहा था कि वहां क्या हो रहा है, तभी अचानक मैकरेवन और सीआईए के पूर्व निदेशक लियोन पनेटा, दोनों ने एक साथ वो शब्द कहे जिनका हम बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे-
'जेरोनिमो ईकेआईए यानी एनिमी किल्ड इन एक्शन।' कमरे में मौजूद सभी लोगों के मुंह से एक आह-सी निकली। मेरी आंखें वीडियो फ़ीड पर ही लगी रहीं। मैंने धीमे से कहा, 'वी गॉट हिम'।"
जैसे ही हेलिकाप्टर्स ने वापसी के लिए उड़ान भरी जो बाइडन ने ओबामा का कंधा दबा कर कहा-
'कॉन्ग्रेचुलेशंस बॉस।'मैकरेवन ने वीडियो कॉन्फ़्रेस पर उनसे कहा, "मैं जब आपसे बात कर रहा हूं लादेन का शव मेरे सामने पड़ा हुआ है। मैंने अपनी टीम के एक सदस्य को जिसका कद छह फ़ुट दो इंच है, लादेन के शव के बगल में लिटा कर देखा है। मृत व्यक्ति का कद छह फ़ुट चार इंच है।" ओबामा ने बिल मैकरेवन से मज़ाक किया, "आप भी बिल। इतने बड़े अभियान पर गए और अपने साथ नापने का टेप ले जाना भी भूल गए!"
खैर, ये घटना बताती है कि जो बाइडन कितना फूंक फूंककर कदम उठाते हैं। फिर भी अफगानिस्तान में तालिबान के आकलन में उनसे भारी चूक हुई। अमेरिका में एक-एक सैनिक, एक-एक नागरिक की जान की कीमत होती है। वहां की जनता सबकुछ माफ कर सकती है, लेकिन अपने नागरिक की विदेशी या देशी भूमि पर मौत नहीं भूल सकती। चाहे राष्ट्रपति कोई भी हो, इसलिए जो बाइडन को शुक्रवार को कहना पड़ा कि इस घटना के जिम्मेदार लोगों को अमेरिका न भूलेगा और न उन्हें माफ करेगा। इधर इस पूरे घटनाक्रम के बीच पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी याद किया जा रहा है कि वे यदि वे होते तो संभवत: अभी तक बहुत से कदम उठा चुके होते।
अमेरिका का झंडा अब अगले तीन दिन झुका रहेगा। इसलिए दुखद त्रासदी में आशाजनक खबर ये है कि आईएसआईएस के अब बुरे दिन आ गए हैँ। अमेरिका उसका भी वही हाल करेगा जैसा ओसामा का किया। भारत के लिए ये अच्छी खबर होगी क्योंकि आईएसआईएस खुसरान भारत में भी सक्रिय है। अभी हाल ही में आईएसआईएस के सदस्य लखनऊ, कानपुर और केरल जैसे शहरों में पकड़े गए।
इधर इस पूरे घटनाक्रम के बीच पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी याद किया जा रहा है कि वे यदि वे होते तो संभवत: अभी तक बहुत से कदम उठा चुके होते। - फोटो : अमर उजाला
आतंकवाद को लेकर भारत दुनिया को चेताता रहा है
भारत बार-बार सारी दुनिया से कहता रहा कि अमेरिका और यूरोपीय देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हों। लेकिन अपने राजनयिक स्वार्थों के चलते किसी ने नहीं सुनी। पर अब सबको आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होना होगा।
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे का अर्थ ही है बहुत जल्द अफगानिस्तान के अलग अलग प्रान्तों में आतंकवाद की फैक्टरी खुलने वाली है। इसके खिलाफ सारी दुनिया को एकजुट होना होगा।
सच तो ये कि तालिबान-आईएसएसएस, लश्करे तोएबा जैसे आतंकी संगठनों की सोच कबिलाइयों की सोच है। उन्हें लगता है कि तलवार के बल पर आज भी दुनिया में इस्लाम फैलाया जा सकता है। उन्हें लगता है कि सारी दुनिया को शरियत से चलाया जा सकता है। जन्नत और वहां की हूरों पर उन्हें इतना यकीन है कि उन्हें पाने के लिए दुनिया का हर काफिर मारा जा सकता है।
आतंक की तालिबान का मोडस अप्रैडी है। बिना आतंक के वो चार दिन अफगानिस्तान की सत्ता नहीं चला सकता। तो उससे सुधारने या बदलने की उम्मीद करना ही बेवकूफी है। दुनिया और सबसे ज्यादा जो बाइडन के लिए ये एक अग्निपरीक्षा है। मध्य एशिया में शांति के लिए अमेरिका को पहल करनी होगी। उम्मीद है कि पहले खुसरान फिर अफगानिस्तान से इसकी शुरूआत जल्द होगी। आईएसआईएस खुसरान को उल्टी गिनती करना शुरू कर देना चाहिए।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
दयाशंकर शुक्ल सागर।
Rani Sahu
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