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अफगानिस्तान (Afghanistan) में इस वक्त तालिबान (Taliban) की स्थिति मजबूत हो रही है
संयम श्रीवास्तव। अफगानिस्तान (Afghanistan) में इस वक्त तालिबान (Taliban) की स्थिति मजबूत हो रही है. जब से अमेरिका ने यह घोषणा किया है कि 11 सितंबर तक उसके सभी अमेरिकी (America) सैनिक अफगानिस्तान छोड़ देंगे, इसके बाद से ही तालिबानी लड़ाके अफगानिस्तान में सक्रिय रूप से शहरों पर कब्जा करने लगे हैं. अफगानिस्तान के लोगों के साथ-साथ अब दुनिया भर के देशों को भी लगने लगा है कि आने वाला समय अफगानिस्तान में तालिबान का होने वाला है, इसलिए तमाम देश जो अफगानिस्तान से व्यापारिक या किसी भी तरह का संबंध रखना चाहते हैं या रख रहे हैं, वह पिछले दरवाजे से तालिबान से बात करने की कोशिश कर रहे हैं. भारत (India) भी इन्हीं देशों में शामिल हो गया है.
लेकिन भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती अफगानिस्तान में चीन (China) बनकर सामने आ रहा है. हाल ही में तालिबान लड़ाकों के एक समूह के प्रवक्ता सोहेल शाहीन ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण के लिए तालिबान चीन का स्वागत करना चाहेगा, उसे अपना दोस्त बताते हुए सोहेल शाहीन ने कहा कि तालिबान वादा करता है कि यहां चीनी नागरिकों को विकास कार्य करने में कोई समस्या नहीं होगी और उनकी सुरक्षा की सारी जिम्मेदारी हमारी होगी.
भारत ने अफगानिस्तान में तकरीबन 3 बिलीयन डॉलर का निवेश किया है, यही वजह है कि जो भारत दशकों से तालिबान से बात करने की विरोध में रहा था वह आज पिछले दरवाजे से तालिबान से भी बातचीत करने को मजबूर है. लेकिन अब जिस तरह से तालिबान चीन को लेकर अपने रुख में नरमी पेश कर रहा है और उसे अपना दोस्त बता रहा है यह भारत के लिए चिंता का विषय बन गया है.
इस वक्त अफगानिस्तान में भारत की स्थिति क्या है
भारत इस वक्त अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति पर प्रमुखता से नजर बनाए हुए है, भारत अफगानिस्तान में सुलह और शांति की प्रक्रिया का समर्थन करता है. हालांकि अफगानिस्तान में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति को देखते हुए भारत ने कंधार से अपने दूतावास में तैनात कर्मचारियों को हिंदुस्तान वापस बुला लिया है. इसको लेकर विदेश मंत्रालय ने रविवार को कहा कि किसी भी स्थिति में भारतीय कर्मियों की सुरक्षा सर्वोपरि है, लेकिन इसके साथ ही विदेश मंत्रालय ने कहा कि हमने अपने कर्मचारियों को अफगानिस्तान से वापस बुला लिया है, इसका यह कतई मतलब नहीं है कि हमने अफगानिस्तान में अपना दूतावास बंद कर दिया है.
अफगानिस्तान की स्थिति पर भारत का कहना है कि भारत अफगानिस्तान का एक महत्वपूर्ण भागीदार रहा है, जो शांतिपूर्ण, संप्रभु और एक लोकतांत्रिक अफगानिस्तान के लिए प्रतिबद्ध है. तालिबान को लेकर भारत का साफ संदेश है कि तालिबान को अफगानिस्तान में हिंसा रोकने की जरूरत है और वहां रक्तपात का अंत होना चाहिए.
चीन और तालिबान के संबंध पुराने रहे हैं
चीन इस वक्त अफगानिस्तान में हो रहे उठापटक को लेकर खुलकर कोई बयान नहीं दे रहा है. हालांकि चीन 90 के दशक से ही तालिबान से रिश्ते बनाने में जुटा हुआ है, 1990 में पहली बार चीन तालिबान सरकार तक पहुंचा था. इसके बाद साल 2000 में उसने तालिबान के प्रमुख मुल्ला उमर से भी मुलाकात की थी. इसके साथ ही चीन ने बीजिंग से काबुल और उरुमची के बीच उड़ानें भी शुरू की थीं. उस वक्त चीन तालिबान से रिश्ते इसलिए मजबूत करना चाहता था कि उसे उम्मीद थी कि तालिबान ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट के खिलाफ चीन का साथ देगा, हालांकि मुल्ला उमर ने इस पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी थी.
लेकिन इसके बाद भी चीन ने अपने व्यापारिक समीकरणों को साधने के लिए तालिबान से संपर्क जारी रखा. इस बीच उसने पाकिस्तान में तालिबान के साथ कई गुप्त बैठकें भी कीं. अफगानिस्तान से चीन को कई मायनों में फायदा है चाहे वह बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव हो या फिर अफगानिस्तान में मौजूद खदानें. जब तक अफगानिस्तान में एक लोकतांत्रिक सरकार थी तब तक चीन अपने मंसूबों को अफगानिस्तान में पूरा नहीं कर पा रहा था, क्योंकि उसके सामने भारत और अमेरिका खड़े थे. हालांकि अब जब अफगानिस्तान में तालिबान एक बार फिर से मजबूत स्थिति में आ रहा है तो जाहिर सी बात है चीन अपने मंसूबों को फिर से कामयाब करने की पूरी कोशिश करेगा.
अफगानिस्तान में चीन का बढ़ता निवेश
चीन ने अपने बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के लिए सालाना 1 बिलियन डॉलर खर्च करने की घोषणा की है. 2007 से 2011 के बीच में चीन ने एक अफगानी कंपनी के साथ मिलकर 400 मिलियन डॉलर के इनवेस्टमेंट का करार किया था. इसके साथ ही 2018-19 के बीच चीन ने 40 मिलियन अमेरिकी डॉलर के पाइन नट्स लगभग 1200 टन अफगानिस्तान से आयात किए थे.
तालिबान के अफगानिस्तान में मजबूत होने पर चीन उसके साथ अच्छे संबंध बनाकर अपने एक महत्वाकांक्षी परियोजना, जिसे 5 नेशन रेलवे प्रोजेक्ट का नाम दिया जाता है जो चीन को किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान के साथ-साथ तुर्की और यूरोप से जोड़ेगा. उसे पूरा करने की भी पूरी कोशिश करेगा.
चीन के विदेश मंत्रालय ने हाल ही में चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे परियोजना (CPEC) पर एक बयान देते हुए कहा था कि, इसका एक हिस्सा अफगानिस्तान तक बढ़ाया जाएगा. यानि अब पेशावर को काबुल से जोड़ने के लिए एक राजमार्ग भी बनाया जाएगा. जाहिर सी बात है जिस तरह से अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण के लिए तालिबान चीन को आमंत्रित कर रहा है उससे चीन को अपनी इन सभी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को पूरा करने में आसानी होगी.
उइगर मुस्लिमों के साथ अत्याचार तालिबान के साथ संबंध एक साथ कैसे?
तालिबान भले ही चीन को अपना दोस्त बता कर उसे निमंत्रण दे रहा हो, लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते प्रभाव ने चीन को भी कहीं ना कहीं परेशान कर दिया है. क्योंकि चीन के शिनजियांग प्रांत का 8 किलोमीटर हिस्सा अफगानिस्तान की सीमा से जुड़ा हुआ है, जहां उइगर मुस्लिमों की आबादी रहती है. चीन को डर है कि कहीं तालिबान के शासनकाल में शिनजियांग प्रांत का यह 8 किलोमीटर का एरिया ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट का केंद्र ना बन जाए, क्योंकि इस अलगाववादी संगठन का संबंध अलकायदा से भी है. चीन को मालूम है कि अगर ऐसा कुछ उसके सीमावर्ती इलाके पर होता है तो वह उसके लिए भारी संकट पैदा कर देगा.
अफगानिस्तान में चीन का बढ़ना भारत के लिए खतरे की घंटी
अफगानिस्तान भारत के लिए कूटनीतिक और व्यापारिक दोनों ही दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण देश है. इस वक्त भारत ने अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा तकरीबन 3 बिलियन डॉलर का निवेश किया हुआ है, इसके साथ ही वहां की पूरी इलेक्ट्रिक ग्रिड भारत द्वारा संचालित होती है. भारत को पता है कि अगर वह अफगानिस्तान से अपने रिश्ते अच्छे बनाए रखता है तो पाकिस्तान को दोनों तरफ से घेर सकता है, इसके साथ ही भारत में आतंकवादी गतिविधियों को भी रोकने में लगाम लगेगी. लेकिन तालिबान भारत से ज्यादा दिलचस्पी चीन में दिखा रहा है. ऐसे में अगर तालिबान और चीन करीब आते हैं तो यह भारत के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि इससे भारत का व्यापारिक और कूटनीतिक दोनों तरफ से नुकसान तय है.
अफगानिस्तान में तालिबान की मजबूत होती स्थिति
जैसे-जैसे अमेरिका पीछे हटता जा रहा है वैसे वैसे तालिबान अफगानिस्तान में आगे बढ़ता जा रहा है, पिछले कुछ हफ्तों में तालिबान ने कई रणनीतिक जिलों पर अपना कब्जा बना लिया है, खासकर ईरान, उज्बेकिस्तान और तजाकिस्तान से सटे सीमावर्ती जिलों पर कब्जा कर तालिबान ने अब तक अफगानिस्तान के 421 जिलो में से एक तिहाई से अधिक पर अपना नियंत्रण बना लिया है. अपने एक इंटरव्यू में तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने बताया था कि उसके लड़ाकों ने लगभग अफगानिस्तान के 85 प्रतिशत जिलों पर अपना नियंत्रण बना लिया है.
Gulabi
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