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- हिंदुस्तान में भी...
तालिबान की प्रतिध्वनियां भारत में भी गूंजने लगी हैं। कुछ मौलाना शरिया कानून को संविधान से भी महत्त्वपूर्ण मानने का दुस्साहस कर रहे हैं और अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक आज़ादी का प्रलाप भी कर रहे हैं। यकीनन यह बेहद संवेदनशील स्थिति है। अलबत्ता भारत में संविधान और लोकतंत्र की हुकूमत तय है। मुसलमानों के संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सदर अरशद मदनी ने फरमान जारी किया है कि लड़कियां और लड़के अलग-अलग स्कूल, कॉलेज में पढ़ाई करें। सह-शिक्षा किसी भी स्तर पर न हो और पुरुष अध्यापक भी लड़कियों को न पढ़ाएं। जमीयत के सचिव गुलज़ार आज़मी ने आग और लकड़ी से तुलना करते हुए व्याख्या दी है कि 12 साल की उम्र से ज्यादा के लड़के-लड़कियों के दरमियान 'शैतानÓ आकर बैठ जाता है। जमीयत मौलानाओं ने अनैतिकता और अश्लीलता से जोड़ते हुए सह-शिक्षा को खारिज किया है। इस्लाम और कुरान की आड़ में ये दलीलें भी दी गई हैं कि मर्दों के लिए क्या जायज है और औरतों के लिए क्या नाजायज है? संविधान में ऐसा कोई फासला या फर्क नहीं किया गया है। मर्द और औरत के समान अधिकार और सामाजिक दर्जा हैं। यह फरमान कितना संवैधानिक और कानूनी है, यह सवाल भिन्न है, क्योंकि हमारी अदालतें ऐसे फरमानों और फतवों को 'अवैध करार दे चुकी हैं, लेकिन चिंता और सरोकार हिंदुस्तान में भी 'तालिबानी सोच के मद्देनजर है।
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