सम्पादकीय

अफगानिस्तान में तालिबान, क्यों 92 जैसा क्रूर और हिंसक नहीं दिख रहा इस बार?

Gulabi
16 Aug 2021 2:20 PM GMT
अफगानिस्तान में तालिबान, क्यों 92 जैसा क्रूर और हिंसक नहीं दिख रहा इस बार?
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दुनिया जिस तरह के तालिबान (Taliban) की कल्पना अफगानिस्तान (Afghanistan) में कर रही थी

संयम श्रीवास्तव।

दुनिया जिस तरह के तालिबान (Taliban) की कल्पना अफगानिस्तान (Afghanistan) में कर रही थी, इस बार उस तरह का तालिबान लोगों को नहीं दिखा. लोगों को लगा था कि तालिबान का शासन अगर अफगानिस्तान में आ गया तो वहां मार-काट मचेगी. महिलाओं-लड़कियों का रहना दुश्वार हो जाएगा और उनके खिलाफ खूब अत्याचार होंगे. लेकिन तालिबान इस बार एक नए रूप में सामने आया है. वह सरकारी अधिकारियों के साथ ना तो मारकाट कर रहा है. ना ही उसके द्वारा आम शहरों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. महिलाओं और बच्चियों पर भी कोई जोर-जबरदस्ती के मामले सामने नहीं आ रहे हैं.


तालिबान की ओर से बयान आया है कि उसने अफगानिस्तान के लोगों को माफ कर दिया है और वहां सब कुछ शांति ढंग से ही चलेगा. इस बार तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता भी बहुत शांतिपूर्ण तरीके से मिल गई. काबुल के बाहर जब तालिबान के लड़ाके खड़े थे तो अफगानिस्तान की सरकार ने ऐलान कर दिया था कि अगर तालिबान हमला नहीं करता तो उसे शांतिपूर्ण ढंग से अफगानिस्तान की सत्ता सौंप दी जाएगी. हालांकि कई लोग तालिबान के इस बदले रूप को सिर्फ एक छलावा और वक्त की नजाकत बताते हैं. दरअसल तालिबान का पुराना इतिहास इतना वीभत्स रहा है कि उसके उस खूंखार रूप को भूल पाना मुश्किल है. अभी हाल ही में एक तस्वीर वायरल हो रही थी, जिसमें अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अब्दुल गनी तालिबानियों को गले लगा रहे हैं, लेकिन यही तालिबानी थे जिन्होंने 1992 में अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद वहां के राष्ट्रपति नजीबुल्लाह की हत्या कर उनकी लाश को लैंप पोस्ट पर लटका दिया था.


तालिबान खुद को एक राजनीतिक दल के रूप में पेश करना चाहता है
अब तक दुनिया भर में तालिबान को एक आतंकवादी संगठन के रूप में देखा जाता है, लेकिन इस बार का तालिबान शायद एक नई सोच के साथ अफगानिस्तान पर कब्जा कर रहा है. तालिबान इस बार हिंसा का रास्ता कम से कम अख्तियार कर रहा है. बीते 10 दिनों में जिन इलाकों पर तालिबान का कब्जा हुआ है. वहां के लोगों से अच्छा बर्ताव किया जा रहा है. यहां तक कि तालिबान को पख्तूनों का संगठन माना जाता है और उसका इतिहास रहा है कि जब भी उसने अफगानिस्तान पर कब्जा किया है तो वहां के ताजिक, हाजरा, उजबेक और शिया लोगों पर जुल्म किए हैं. लेकिन इस दौरान जब अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा किया तो उसने ऐसा कुछ नहीं किया.

दरअसल इसकी एक सबसे बड़ी वजह है कि तालिबान इस बार अफगानिस्तान में अपने आपको एक ऐसे राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है जिसे अफगानिस्तान के आम लोग स्वीकार करें. 2000 से पहले जब अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा था तो उसने डर और भय के माहौल पर भले ही शासन कर लिया था. लेकिन लोगों को उसका समर्थन हासिल नहीं था. इस बार तालिबान अपने रुख में बदलाव कर ऐसा चाहता है कि लोग उसे स्वीकार करें. हालांकि तालिबान के बारे में इतनी जल्दी कोई राय बनाना उचित नहीं होगा क्योंकि फिलहाल तालिबान अफगानिस्तान में खुद को स्टैब्लिश कर रहा है, एक बार जब वह खुद को स्टैब्लिश कर लेगा तब एक-दो साल बाद पता चलेगा कि आखिर उसकी सोच क्या है और वह अफगानिस्तान के लोगों के साथ कैसा बर्ताव करता है.

इतनी भारी तादाद में अफगानी सेना होने के बावजूद भी कैसे जीतता जा रहा है तालिबान
अफगानिस्तान के पास इस वक्त तकरीबन ढाई से तीन लाख सैनिक मौजूद थे और इनकी ट्रेनिंग अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने की थी. लेकिन इसके बावजूद भी तालिबान तेजी से अफगानिस्तान के बड़े शहरों पर कब्जा करता चला गया. यहां तक कि अफगानिस्तान के राष्ट्रीय भवन पर भी उसका कब्जा हो गया. तमाम लोग इस बात पर सवाल उठा रहे हैं कि आखिर ऐसा कैसे हो गया कि अमेरिका के जाने के बावजूद भी जब अफगानिस्तान में इतनी तादाद में अफगानी सैनिक मौजूद थे तो इतनी तेजी से तालिबान कैसे अफगानिस्तान के शहर दर शहर को जीतता चला गया.

इसे ऐसे समझिए कि 14 अप्रैल को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन एलान करते हैं कि 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी हो जाएगी. इसके बाद 4 मई को अफगानिस्तान के दक्षिणी हेलमंद प्रांत में तालिबान द्वारा सैन्य अभियान सरकारी फौजों के खिलाफ शुरू कर दिया जाता है. यही नहीं इसके साथ 6 प्रांतों में यह अभियान और शुरू हो जाता है. धीरे-धीरे तालिबान शहर दर शहर कब्जा करने लगता है और दूसरे मुल्क जिनका दूतावास अफगानिस्तान में था, वह उन्हें अस्थाई रूप से बंद करने लगते हैं और अपने नागरिकों को वहां से निकालने लगते हैं. यहां तक कि अब स्थिति ऐसी आ गई कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी को भी देश छोड़कर जाना पड़ा. इन सभी कारणों से अफगानी सैनिकों का मनोबल गिरा. यहां तक कि देश की जनता भी हार मान चुकी कि अब वह तालिबान के शासन तले ही जीने को मजबूर हैं.

दो दशकों में काफी बदल गया था अफगानिस्तान
90 के दशक में अफगानिस्तान की हालत बेहद बुरी थी. खास तौर से शिक्षा और महिलाओं बच्चियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को लेकर अफगानिस्तान पूरे दुनिया में बदनाम था. लेकिन 2000 के बाद जब वहां तालिबान सत्ता से बाहर हुआ तो स्थिति काफी बदली. बीते 20 वर्षों में अफगानिस्तान का शिक्षा स्तर बढ़ा है, वहां लड़कियां अब स्कूल जाने लगी थी विकास के क्षेत्र में भी काफी वृद्धि देखी गई. 20 सालों में अफगानिस्तान में इतना विकास कार्य हुआ जो बीते कई दशकों में नहीं हुआ था. इसमें कई देशों का योगदान था खास तौर से हिंदुस्तान का जिसने लगभग 22000 करोड़ रुपए निवेश कर अफगानिस्तान को नई बुलंदी पर पहुंचा दिया. लेकिन अब सब कुछ शायद फिर से उसी स्थिति में आ जाएगा जैसा कि नब्बे के दशक में था. क्योंकि तालिबान का शासन फिर से अफगानिस्तान में स्थापित हो गया है लोगों में डर का माहौल है, हालांकि आने वाले वर्षों में तालिबान का व्यवहार कैसा रहेगा इस पर सबकी नजर बनी रहेगी.

अब अफगानिस्तान में कैसी होगी महिलाओं की ज़िंदगी?
90 के दशक में जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था तो उस वक्त महिलाओं की स्थिति बदतर थी. बच्चियों-महिलाओं को पढ़ने लिखने, बाहर आजादी से अकेले घूमने और पश्चिमी कपड़े पहनने की बिल्कुल आजादी नहीं थी. जब कोई महिला इन इस्लामी कानूनों को तोड़ती थी तो उसे पत्थर से मार मार के मार दिया जाता था. लेकिन 2000 के बाद स्थिति में काफी बदलाव आया था. हालांकि अब तालिबान के आने के बाद महिलाओं में फिर से पुराना डर पनपने लगा है. दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में पिछले कुछ दिनों में बुर्के की मांग बढ़ गई है, लोग अपनी कॉपी-किताबें छिपा रहे हैं. महिलाओं में भय का माहौल है. लेकिन तालिबान इस बार सामने से आकर कह रहा है कि वह लड़कियों को भी लड़कों जैसे समान अधिकार देगा और उन्हें भी पढ़ने का अधिकार होग वह ऑफिस जा पाएंगी, स्कूल जा पाएंगी.


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