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अफ़गानिस्तान इन दिनों अपने हालात की दुर्दशा पर रो रहा होगा और यह स्थिति आने वाले समय में और खराब होगी
देवानंद कुमार। अफ़गानिस्तान इन दिनों अपने हालात की दुर्दशा पर रो रहा होगा और यह स्थिति आने वाले समय में और खराब होगी। यह एक तरह से निश्चित माना जा रहा है। यही कारण है कि भारत सहित विश्व के कई अन्य देशों ने अपने वाणिज्यिक दूतावास बंद कर अपने कर्मचारियों को सुरक्षित वापस ले जा रहे हैं। लेकिन एक सवाल आज हर किसी के जेहन में आ रहा होगा कि अफगानिस्तान की हाल का जिम्मेदार कौन है?
लौटता अमेरिका आखिर क्या दे गया?
अब अफगानिस्तान में शिक्षा और विकास के जगह पर उग्रवाद और तालिबानी कानून हावी होगा जो अफगानिस्तान को फिर से उसके पुराने दौर में ले जाएगा जहां खून-खराबा और आर्थिक पिछड़ापन नजर आता है।
आज अफगानिस्तान के हालात बिगड़ते जा रहे हैं इसका जिम्मेदार अमेरिका की नीतियां है, जिसमें तालिबान का समर्थन करने वाले पाकिस्तान पर कभी कठोर कार्रवाई नहीं की बल्कि उसे डॉलर की सहायता दी। अमेरिका आतंकवाद की लड़ाई में हमेशा दुआ बनकर दिखता है पर अफगानिस्तान में 20 साल बाद ही हाल वही के वही है तो उसकी नीतियों पर सवाल उठना लाजमी है अभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी की शुरुआत ही हुई है कि अफगानिस्तान में हालात बिगड़ने लगे हैं।
इधर, अमेरिका कहता है कि वह अगस्त अंत तक अपने सभी सैनिकों को वापस बुला लेगा इसके बाद अफगानिस्तान का क्या हाल होगा? मुझे लगता है भारत अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते प्रभाव पर वेट एंड वॉच की पॉलिसी अपना रहा है।
जाहिर है इस कारण को सीधे तौर पर तालिबान पर कुछ कहने से बच रहा है। जब तक कि तालिबान के हर पहलू को वह समझ ना ले यह बात सच है कि आने वाले समय में अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत होगी, इसी कारण भारत सहित अन्य देशों ने अपने वाणिज्य दूतावास बंद कर दिए हैं। भारत ने अफगानिस्तान में काफी निवेश किया है इसलिए तालिबान का बढ़ता प्रभाव उसके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
भारतीय निवेश का क्या होगा?
भारत-अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण से लेकर उसकी संसद भवन के निर्माण में भी सहायता की और उसका उद्घाटन 2015 में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया ये भारत-अफगान रिश्तो की ऊंचाई को दर्शाता है। जाहिर है जो पाकिस्तान को फूटी आंख नहीं सुहा रहा है इसलिए अमेरिकी सैनिकों के जाते ही वे तालिबानियों की सहायता में जुट गए हैं।
पाकिस्तान तालिबान की सहायता से भारत को परेशान करने का मंसूबा पाल रखा है इसलिए भारत का सतर्क होना स्वभाविक है। हाल ही में हुए एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में वहां के राष्ट्रपति ने यहां तक कहा कि पाकिस्तान सीधे तौर पर तालिबानियों का साथ दे रहे हैं और अफगानिस्तान की वर्तमान और स्थिरता में उसका पूरा हाथ है।
अफगानिस्तान के बिगड़ते हालात का एकमात्र कारण तालिबान का बढ़ता हुआ प्रभाव है और तालिबान की सहायता में पाकिस्तान का पूरा-पूरा हाथ होने के बावजूद वैश्विक शक्तियां और यूनाइटेड नेशन जैसी संस्थाओं का चुप्पी साधे रहना कई सवाल खड़े करता है और जो बात-बात पर मानवाधिकार और मानवता की बात करते थे उनका भी कोई अता-पता नहीं लग रहा है।
जाहिर है यह कहना कि हमें तालिबानियों से वार्ता करनी चाहिए यह जल्दीबाजी होगी पर अगर वार्ता करनी ही है तो सोच-समझकर करनी क्योंकि हम उन पर कभी भी पूरी तरीके से विश्वास नहीं कर सकते क्योंकि जिन तालिबानियों का पालन पोषण पाकिस्तान ने किया आज वही उसके लिए भी खतरा बने हैं।
भारत ने सही कहा है कि अफगानिस्तान का भविष्य पहले की तरह नहीं हो सकता। पिछले 40 सालों से अफगानिस्तान में उथल-पुथल चल रहा है जिसकी शुरुआत 1979 में सोवियत संघ की सेना का प्रवेश और वहां की राजनीतिक में हस्तक्षेप और वहां पर कम्युनिस्ट की सरकार बनाने से शुरुआत हुई है। वर्तमान की विषम परिस्थितियों को देखते हुए भारत कोई उचित कदम उठाएगा।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
Rani Sahu
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