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अफगानिस्तान (AFghanistan) में तालिबान (Taliban) का दावा है कि उसने कभी ना हारने वाले पंजशीर (Panjshir) पर कब्जा कर लिया है
संयम श्रीवास्तव। अफगानिस्तान (AFghanistan) में तालिबान (Taliban) का दावा है कि उसने कभी ना हारने वाले पंजशीर (Panjshir) पर कब्जा कर लिया है और इस तरह से अब पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया है. खबर है कि पंजशीर पर तालिबान के कब्जे से पहले पंजशीर रजिस्टेंस के प्रमुख नेता अमरुल्लाह सालेह (Amrullah Saleh) तजाकिस्तान भाग गए. हालांकि नॉर्दर्न एलायंस (Northern Alliance) ने इससे इनकार किया है. पर अगर ये सही है तो भी अफगानिस्तान में अभी युद्ध समाप्त नहीं हुआ है. बल्कि एक तरह से कहें तो शायद इससे भी भीषण गृहयुद्ध शुरू होने की आशंका और बलवती हो गई है.
कहते हैं किसी भी युद्ध का अंत तब तक नहीं होता जब तक कि उसके लिए कोई राजनीतिक हल नहीं निकलता. हथियारों के बल पर और पाकिस्तानी सेना का साथ पाकर तालिबानियों ने भले ही पंजशीर पर कब्जा कर लिया हो. लेकिन वहां स्थिति हमेशा तालिबान के कंट्रोल में रहेगी इस पर संदेह है. क्योंकि पंजशीर के नेता अमरुल्लाह सालेह अभी भी जिंदा हैं और उनके लड़ाके भी पंजशीर की आजादी के लिए प्रतिबद्ध हैं. ऐसे में वह दिन दूर नहीं जब आपको अफगानिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में नॉर्दर्न एलायंस के लड़ाकों और तालिबान के बीच गोरिल्ला वॉर देखने को मिलेगा. क्योंकि नार्दर्न एलायंस यह मानने को तैयार नहीं है कि वो हार चुके हैं.
दूसरी सबसे बड़ी बात कि जिस देश की जनता अपनी सरकार से खुश नहीं होती वहां गृहयुद्ध की आशंका वैसे भी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. अफगानिस्तान में बिल्कुल यही हालात हैं. तालिबान को अफगानिस्तान की जनता पसंद नहीं कर रही है. यही वजह है कि लाखों की तादाद में अफगानी लोग अपना मुल्क अपना, घर-कारोबार सब छोड़ कर भाग रहे हैं. हजारों महिलाएं जान पर खेलकर तालिबान के खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं. दूसरी ओर हक्कानी नेटवर्क और तालिबान के बीच बढ़ती दूरियों ने भी अफगानिस्तान में गृहयुद्ध के संदेश साफ कर दिए हैं. अगर आने वाले समय में उनके आपसी मतभेद खत्म नहीं होते हैं तो शायद हमें तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच भीषण युद्ध भी देखने को मिल सकता है.
हक्कानी नेटवर्क और तालिबान में बढ़ती दूरियां
हक्कानी नेटवर्क चाहता है कि अफगानिस्तान में जो नई सरकार बने उसमें किसी भी अन्य दल का कोई भी नेता शामिल ना हो और अफगानिस्तान में फिर से कट्टर इस्लामी कानून लागू हों. लेकिन तालिबान की अगुवाई करने वाले मुल्ला बरादर की कोशिश है कि अफगानिस्तान में एक स्थिर सरकार बने. जिसे वैश्विक मान्यता भी मिले. इसलिए उस सरकार में अफगानिस्तान के अलग-अलग तबकों को शामिल किया जाए.
माना जा रहा है कि यही कारण है कि अभी तक अफगानिस्तान में सरकार का गठन नहीं हो सका है. दूसरी बात है कि हक्कानी नेटवर्क जहां पाकिस्तान और आईएसआई के बेहद करीब है, वहीं तालिबान अब अन्य देशों को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहता है. हालांकि भविष्य की गोद में क्या छुपा है यह कोई नहीं जानता. अगर तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच सुलह नहीं हुआ तो यह तय है कि सत्ता बंटवारे को लेकर दोनों के बीच एक भीषण युद्ध शुरू हो सकता है.
ईरान भी बन सकता है अफगानिस्तान में गृहयुद्ध की वजह
पंजशीर में जब तालिबान और नॉर्दर्न एलायंस की जंग के बीच खबर आई कि पाकिस्तान की वायुसेना ने नॉर्दर्न एलायंस के लड़ाकों पर बमबारी कर दी. यह खबर सुनते ही ईरान गुस्से से तमतमा गया और उसने इसकी कड़े शब्दों में निंदा की. ईरान के विदेश मंत्रालय की ओर से बयान आया कि अफगानिस्तान की धरती पर विदेशी दखलअंदाजी बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं की जाएगी और उसने नॉर्दर्न एलायंस के मारे गए कमांडरों को श्रद्धांजलि अर्पित की. अब पंजशीर पर भले ही तालिबान का कब्जा हो जाए, लेकिन ईरान कभी नहीं चाहेगा कि तालिबान ज्यादा दिनों तक सत्ता में बना रहे.
दरअसल ईरान एक शिया बहुल देश है और तालिबान हमेशा से शिया मुसलमानों पर अत्याचार करते आया है. इसलिए ईरान तालिबान के खिलाफ शिया बहुल प्रांतों की और उनके लड़ाकों की हमेशा मदद करता आया है. इसकी पूरी उम्मीद जताई जा रही है कि ईरान अब भी पंजशीर के नेताओं और लड़ाकों की मदद करता रहेगा, जो तालिबान के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध जारी रखेंगे. अगर ऐसा हुआ तो अफगानिस्तान में गृहयुद्ध होना तय है.
अमेरिका भी दे चुका है अफगानिस्तान में गृहयुद्ध की चेतावनी
अफगानिस्तान पर तालिबान को कब्जा किए हुए लगभग 21 दिन से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन सरकार अभी तक नहीं बनी है. सरकार ना बनने के पीछे सबसे बड़ा कारण है तालिबान और उसके सहयोगियों में तनातनी. हक्कानी नेटवर्क और तालिबान एकमत पर विचार करने को राजी नहीं हैं. इसलिए सरकार बनने में भी देरी हो रही है. अमेरिका के जनरल मार्क मिले ने एक अमेरिकी टीवी चैनल को दिए अपने इंटरव्यू में कहा कि अफगानिस्तान में गृहयुद्ध की पूरी संभावना है.
क्योंकि तालिबान और उसके सहयोगी संगठनों में सामंजस्य नहीं है. हालांकि उन्होंने यह भी चेताया कि अगर अफगानिस्तान में गृहयुद्ध होता है तो वहां अलकायदा और आईएसआईएस जैसे खूंखार आतंकी संगठन तेजी से मजबूत होंगे. जो पूरी दुनिया के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.
ISIS-K तालिबान के लिए बड़ी मुसीबत
एक तरफ जहां हक्कानी नेटवर्क से तालिबान की नहीं बन रही है. वहीं दूसरी ओर आईएसआईएस खुरासान (ISIS-K) भी तालिबान की सत्ता को कुबूल नहीं करना चाहता है. तालिबान जहां वैश्विक समुदाय में अपनी अच्छी छवि बनाना चाहता है. वहीं दूसरी ओर आईएसआईएस खुरासान ने काबुल एयरपोर्ट पर ब्लास्ट करके यह साबित कर दिया कि वह तालिबान की छवि को दुनिया में बेहतर नहीं बनने देगा.
दरअसल खुरासान चाहता है कि पूरे मध्य और दक्षिण एशिया में इस्लामिक शासन हो, जहां कट्टरपंथी इस्लामिक कानून लागू हों. लेकिन इस बार का तालिबान ऐसा नहीं चाहता. वह सब को एक साथ लेकर एक स्थिर सरकार अफगानिस्तान में बनाना चाहता है. इसलिए आने वाले समय में अफगानिस्तान में तालिबान, हक्कानी नेटवर्क और आईएसआईएस खुरासान जैसे संगठन आपस में ही लड़ कर गृहयुद्ध की स्थिति बना देंगे.
सरकार बनते-बनते तालिबान में भी हो सकती है फूट
सत्ता ऐसी चीज होती है जो किसी भी रिश्ते को तार-तार कर सकती है. तालिबान में इस वक्त कई बड़े नेता हैं जो अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार का मुखिया बनने का सपना देख रहे हैं. इसमें मुल्ला अब्दुल गनी बरादर और हैबतुल्ला अखुंदजादा का नाम सबसे ऊपर है. जानकार मानते हैं कि सरकार बनाते वक्त इन दो महत्वाकांक्षी नेताओं की महत्वाकांक्षा अगर पूरी नहीं हुई तो तालिबान के अंदर आपस में ही तलवारें खिंच सकती हैं. और अगर ऐसा हुआ तो अफगानिस्तान की सड़कों पर इन दोनों बड़े नेताओं के समर्थक आपस में लड़ते-मरते दिखाई देंगे और स्थिति एक सिविल वॉर की तरह बन जाएगी. जिसका खामियाजा अफगानिस्तान की आम जनता को भुगतना होगा
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