सम्पादकीय

अफगानिस्तान में कलम का ' दुश्मन ' बन गया तालिबान

Rani Sahu
12 Sep 2021 8:18 AM GMT
अफगानिस्तान में कलम का  दुश्मन  बन गया तालिबान
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जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा. तर्क करके कौन बहस को विस्तार देने का कोई फायदा नहीं है

अभिषेक कुमार नीलमणि।

होइहि सोइ जो राम रचि राखा।

को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा।
गईं सती जहं प्रभु सुखधामा॥
जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा. तर्क करके कौन बहस को विस्तार देने का कोई फायदा नहीं है. मन मे ऐसा कहकर शिवजी भगवान्‌ श्री हरि का नाम जपने लगे और सतीजी वहां गईं, जहां सुख के धाम प्रभु श्री रामचंद्रजी थे.
भगवान भोलेनाथ, जो देवों के देव हैं, ज्ञानी हैं, योगी हैं. त्रिकालदर्शी हैं. रक्षक हैं. विश्वास के प्रतीक हैं. सच के पुरोधा हैं और साथ ही माता सती के पति भी हैं. अगर ऐसे प्रभु शिव की कही बातों पर भी माता सती को जब भरोसा नहीं हुआ, तो उन्होंने इस दोहे के माध्यम से ये कहने कि कोशिश की अवश्य ही भगवान श्रीराम ने कुछ और ही कहानी रच रखी है. और जब ऐसा रचना हो चुकी है तो फिर किसी भी प्रकार का तर्क, निष्प्राण हो जाता है.
अफ़गान संकट के लिए क्या प्रभु श्रीराम ने लिख रखा है?
तो क्या जो अफगानिस्तान में हुआ, वो प्रभु राम की पूर्व लिखित रचना है या कालजयी राक्षस रूपी दुर्दांत आक्रमणकर्ताओं की सोच का परिणाम. ये तो ईश्वर ही जाने. मगर जो रूह कंपा देने वाली तस्वीरें सामने आईं, उसे देखकर बस इतना कहा जा सकता है कि ऐसी रचना, ऐसी घटना और ऐसे दृश्य भगवान की रचना नहीं हो सकती. बिल्कुल नहीं, क्योंकि ये तालिबानी तो कलम के भी दुश्मन हैं.
अफगानिस्तान का नया शिक्षा मंत्री कहता है, पीएचडी की डिग्री लेकर क्या करोगे? देखो हमने बंदूक की जोर पर वो हासिल किया जो तुम्हारी कलम कहा पा सकेगी. अब इसे ये कौन समझाए कि भइया, जिस बम गोली बंदूक की जोर पर तुमने सत्ता हथिया रखी है, उसे बनाने वाला डिग्रीधारी ही था. जरा सोचिए, अफगानिस्तान के जिन स्कूलों में छोटे छोटे नादान बालक पढ़ा करते थे, अब उस जगह बरादर की बदरी बिरादरी के खूंखार आतंकियों ने डेरा जमा रखा है. और कहते घूम रहे हैं कि हम 20 साल में बदल गए हैं. बदल तो कतई नहीं गए, बस इतना जरूर है कि चीन और पाकिस्तान की बदौलत गुमराह करना जरूर सीख गए हैं.
क्या तालिबान राज को मान्यता दे देनी चाहिए ?
ऐसे में फिर से वही सवाल, क्या ये सब श्रीराम ने रच रखा है ? या फिर कह दें कि ऐसे संदेश जो मानते हैं उनपर फिट है और जो नहीं मानते उनपर सुपरफिट है. अब बात कलम की करते हैं. अफगान में तालिबान राज के आने के दूसरे दिन से औरतों ने मानो मोर्चा संभाल लिया है. बेखौफ. निडर. दिलेर और धाकड़ बनकर. तालिबान लड़ाकों को महिलाएं खुलेआम चुनौतियां दे रही हैं. हक और हुकूक की लड़ाई लड़ रही हैं. मगर तालिबान जो बदलने का नाटक कर रहा है, कहता है कि घर बैठो और बच्चे पैदा करो. जब उसी तालिबान का असली और क्रूर चेहरा दिखाने की हिमाकत चंद पत्रकारों ने की तो हक्कानी बंधुओं के सीने पर मानो सांप लोट गया. आनन फानन में आवाज दबाई गई. पत्रकारों को पकड़ा गया. कैमरा तोड़ने की कोशिश हुई, सर कुचला गया. और जब कुछ न समझ आया तो कोड़ों से तब तक पीटते रहे, जब तक पत्रकार बेसुध और अधमरे न हो गए. ये है तालिबान, पर कहते हैं कि हम बदल गए हैं. सबके साथ चलने आए हैं. हमें भी साथ रखो. कतर, चीन और पाकिस्तान तो यार बने ही हुए हैं. ये खूंखार दरिंदे चाहते हैं कि दुनिया उन्हें मान्यता दे. बहुत मुश्किल है, किसी भी मुल्क की सरकार को इन्हें फिलहाल स्वीकार नहीं करना चाहिए, जब तक ये वाकई न बदल जाएं.
गहरे अंधेरे में जाता अफ़गानियों का भविष्य ?
अब सोचिए अफगान का भविष्य कैसा होगा ? जहां पत्रकार लिख नहीं सकते, जहां महिलाएं दिख नहीं सकती. जहां मर्द अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकते. जहां हर गली मुहल्ले चौक चौराहे पर बंदूकधारी दिखे. अनपढ़ गंवार अंगूठाछाप लोग मंत्री, संत्री बने. जिनपर 37 करोड़ का इनाम हो वही सरकार हो. जिस कैबिनेट में 70% मोस्ट वांटेड आतंकी भरे हो, जहां स्कूल कॉलेज में पर्दा लग जाए. जहां महिलाओं को काम करने ना दिया जाए. जहां बच्चों के मुंह से निवाला छीन लिया जाए. जहां भूख, प्यास, सूखे से इंसान तड़प रहे हों. जहां न रोटी का इंतजाम हो और ना ही पैसे की किल्लत का समाधान. उस मुल्क की ऐसी तमाम समस्याओं को आप नजरअंदाज करके क्या उन्हें कबूल करने की गलती कर सकते हैं. कतई नहीं, करना भी नहीं चाहिए. क्योंकि ऐसा हुआ तो तय मानिए कि दुनिया के हर बड़े मुल्क की जिंदगी दुर्लभ और दुर्दिन में गुजरने लगेगी.
अब ऐसे में सवाल उठता है कि फिर किया क्या जाए? क्योंकि अंग्रेजी में एक कहावत बहुत मशहूर है:
अर्थात इंतजार करना और देखते रहने का मतलब कुछ नहीं करने जैसा होता है, तो क्या भारत जो कर रहा है तालिबान के संदर्भ में वो गलत है ? इसी सवाल पर आपको छोड़ता हूं. क्योंकि
"को करि तर्क बढ़ावै साखा॥"


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