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Taliban Afghanistan Attacks: क्या तालिबान खड़ी करेगा पाकिस्तान के लिए नई मुश्किलें?

Gulabi
11 Aug 2021 9:46 AM GMT
Taliban Afghanistan Attacks: क्या तालिबान खड़ी करेगा पाकिस्तान के लिए नई मुश्किलें?
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तालिबान की खबर

संयम श्रीवास्तव।

अफगानिस्तान (Afghanistan) आज तबाही के कगार पर खड़ा है. मजबूत होता तालिबान (Taliban) अफगानिस्तान के लोकतंत्र को निगलता जा रहा है. अफगानी सेना (Afghanistan Army) के पास तेजी से गोला बारूद खत्म हो रहे हैं. वहीं तालिबान को पाकिस्तान (Pakistan) की ओर से खुली मदद मिल रही है, जिसके चलते अब तालिबान अफगानिस्तान के उत्तरी इलाकों पर भी तेजी से कब्जा कर रहा है. उत्तरी अफगानिस्तान को तालिबान के खिलाफ सबसे सुरक्षित किला माना जाता था. लेकिन जिस तरह से तालिबानी लड़ाके निमरोज़ की राजधानी जारंज, शेबगर्न, कुंदुज जैसे शहरों पर चढ़ाई कर रहे हैं, उससे तालिबान की बढ़ती ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है.


पाकिस्तान आज भले ही तालिबान के हर एक जीत पर जश्न मना रहा हो, लेकिन उसे भूलना नहीं चाहिए कि अगर आप अपने पड़ोसी के घर में आग लगाएंगे तो आपका घर भी उसकी जद में आ सकता है. पाकिस्तान के कई बुद्धिजीवी इस बात पर चिंता जता चुके हैं कि अगर अफगानिस्तान में तालिबान आउट ऑफ कंट्रोल हो गया तो आने वाले समय में वह पाकिस्तान में भी तबाही मचा सकता है और फिर उसे रोकना आर्थिक रूप से कंगाल हो चुके पाकिस्तान के लिए नामुमकिन हो जाएगा. हालांकि इन सबसे परे पाकिस्तानी सेना और आईएसआई फिलहाल तालिबान को ही अपना सबसे बड़ा दोस्त समझ रही है.

पाकिस्तान से सटे इलाकों में मजबूत हो रहा है तालिबान
तालिबान पाकिस्तान से सटे शहरों में अब तेजी से मजबूत हो रहा है. जिसमें कंधार, हेलमंद, जाबुल और उरुजगन जैसे शहर हैं. इसके साथ ही तालिबान ने जारंग के उस हाईवे पर भी कब्जा करना शुरू कर दिया है, जिसे 2008 में डेलाराम से कंधार-हेरात राजमार्ग को जोड़ने के लिए भारत ने बनाया था. अब धीरे-धीरे तालिबान की पहुंच अफगानिस्तान के दोहा जैसे शहरों पर भी होने लगी है. पाकिस्तान को लगता है कि अगर अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में आ जाता है, तो वह हक्कानी नेटवर्क और अन्य आतंकवादी समूहों को मार्गदर्शन करना जारी रख सकता है और भारत के खिलाफ उनका इस्तेमाल कर सकता है.

लेकिन पाकिस्तान यह बात भूल रहा है कि अगर तालिबान के खूंखार लड़ाके सत्ता में आ जाते हैं तो अफगानिस्तान से सटे पाकिस्तानी इलाकों पर भी इन्हीं का वर्चस्व रहेगा, क्योंकि जमीन पर पाकिस्तानी सेना और तालिबानी लड़ाकों के बीच वह सामंजस्य नहीं है जो होना चाहिए.

तालिबानी नेताओं के साथ पाकिस्तान में होता था बुरा व्यवहार
पाकिस्तान को लगता है कि तालिबान अगर सत्ता में आ जाता है तो उसने जो दशकों से तालिबानी लड़ाकों और नेताओं को अपने यहां पनाह दे रखी थी, लाभ वसूल पाएगा. लेकिन शायद वह भूल रहा है पाकिस्तान में उसने तालिबानी नेताओं और लड़ाकों को किस हाल में रखा था और उनके साथ कैसा व्यवहार किया था. तालिबान के सह संस्थापकों में से एक मुल्लाह अब्दुल सलाम ज़ाफ ने अपनी आत्मकथा में लिखा था, कि कैसे उनके साथ पाकिस्तान में आईएसआई अपमानजनक व्यवहार करती थी.

जाहिर सी बात है बाहर से आईएसआई और पाकिस्तानी सेना का तालिबान के साथ जितना मधुर संबंध दिखता है, उतना अंदर से है नहीं. इसलिए अगर अफगानिस्तान में तालिबान मजबूत होता है तो पाकिस्तान के लिए भी यह खतरे की घंटी है. क्योंकि अगर सत्ता में आने के बाद पाकिस्तानी सेना ने या पाकिस्तानी सरकार ने कुछ भी ऊंच नीच की तो तालिबान पाकिस्तान पर हमला करने में एक बार भी नहीं सोचेगा और यही चिंता पाकिस्तान के बुद्धिजीवियों को खाए जा रही है.

गिलगित बाल्टिस्तान के इलाके में तालिबानी खतरा
बीते दिनों पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित बालटिस्तान से खबर आई के वहां एक तालिबानी कमांडर ने जिसका नाम हबीबुर्रहमान है खुद को जिला दियामर का नायब अमीर घोषित कर दिया है. यहां तक कि उसने एक लोकल टीवी चैनल को दिए अपने इंटरव्यू में स्थानीय लोगों को यह संदेश भी दिया कि गिलगिट में तालिबानी शासन होना चाहिए. पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में खुलेआम किसी तालिबानी का जनता अदालत लगाना बड़े खतरे की आहट है.

दूसरी सबसे बड़ी पाकिस्तान के लिए समस्या यह है, कि चीन-पाकिस्तान इकॉनामिक कॉरिडोर गिलगिट-बाल्टिस्तान से होते हुए ही ग्वादर पोर्ट तक जाता है. यह योजना चीन और पाकिस्तान दोनों की बेहद महत्वाकांक्षी योजना है, जिसके जरिए वह मध्य एशियाई देशों तक पहुंचना चाहते हैं. लेकिन अगर अफगानिस्तान की स्थिति ऐसे ही खराब रही और शासन तालिबान के हाथों में चला गया तो चीन और पाकिस्तान को इस मोर्चे पर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

तालिबान के बढ़ते प्रभाव से पाकिस्तान में भी कट्टर इस्लाम का जन्म होगा
पाकिस्तान भले ही इस्लामिक देश है, लेकिन कई मामलों में वहां इतने ज्यादा कट्टर कानून नहीं है जितने की तालिबानी शासन में होते हैं. बीते दिनों ही पाकिस्तान के कुछ इलाकों में तालिबान जिंदाबाद के नारे लगाए गए. इससे साफ जाहिर होता है धीरे-धीरे पाकिस्तान के अंदर भी तालिबान का प्रभाव बढ़ता जा रहा है और वहां के लोगों में कट्टरता पनपने लगी है. पाकिस्तान के पढ़े-लिखे लोग और बुद्धिजीवी वर्ग इस कट्टरता से परेशान हैं. क्योंकि उन्हें मालूम है कि अगर पड़ोसी देश अफगानिस्तान में तालिबान मजबूत होता है तो इसका प्रभाव पाकिस्तान में भी पड़ेगा और देश में मौजूद कट्टरपंथी मजबूत होंगे और कहीं ना कहीं वह भी पाकिस्तान के अंदर तालिबान जैसी शासन व्यवस्था लाने की पूरी कोशिश करेंगे.

अगर ऐसा होता है तो इससे सबसे ज्यादा नुकसान पाकिस्तान की पढ़ी-लिखी पीढ़ी और महिलाओं-बच्चों को होगा. क्योंकि तालिबानी कानून में महिलाओं की कैसी दुर्दशा होती है यह किसी से छुपा नहीं है. पाकिस्तान के पास आज भी वक्त है कि वह अपनी पुरानी गलतियों को सुधारे और अफगानिस्तान में शांति व्यवस्था कायम करने में अफगानी सरकार की मदद करे और वहां एक लोकतांत्रिक सरकार चलने दे. क्योंकि जिस जहर के बीज को वह आज बो रहा है कल उसकी फसल उसी की नस्लों को तबाह करने के लिए तैयार होंगी.
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