सम्पादकीय

राष्ट्रपति चुनाव के किस्से (पार्ट-3): नेहरू सरकार को कर्तव्य की याद दिलाने वाले राधाकृष्णन की जगह जाकिर हुसैन को मिली तरजीह

Rani Sahu
25 April 2022 10:54 AM GMT
राष्ट्रपति चुनाव के किस्से (पार्ट-3): नेहरू सरकार को कर्तव्य की याद दिलाने वाले राधाकृष्णन की जगह जाकिर हुसैन को मिली तरजीह
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1967 के राष्ट्रपति चुनाव ( President Election) में जाकिर हुसैन ने सीधे मुकाबले में के

सुरेंद्र किशोर

1967 के राष्ट्रपति चुनाव ( President Election) में जाकिर हुसैन ने सीधे मुकाबले में के. सुब्बाराव को हराया. जाकिर हुसैन 1962 से 1967 तक उप राष्ट्रपति थे. जाकिर हुसैन को 4 लाख 71 244 मत मिले, वहीं सुब्बा राव को 3 लाख 63 हजार 971 वोट मिले. मुकाबला कांटे का था. क्योंकि सन 1962 की अपेक्षा सन 1967 के आम चुनाव में कांग्रेस (Congress) थोड़ा कमजोर हो चुकी थी. सन 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ हुआ करते थे. लोकसभा में कांग्रेस का बहुमत पहले की अपेक्षा घट गया था. राष्ट्रपति चुनाव के समय 8 राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें बन चुकी थीं.
इस चुनाव के बाद मध्य प्रदेश भी कांग्रेस के हाथ से निकल गया. कांग्रेस के कुछ विधायकों ने दल बदल की गोविन्द नारायण सिंह के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकार बनवा दी थी. राजमाता विजया राजे सिंधिया ने विद्रोह का नेतृत्व किया था. यानि, ऐसी स्थिति में 1967 का राष्ट्रपति चुनाव हुआ जब कांग्रेस ढलान पर थी. सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश के. सुब्बाराव विपक्ष की तरफ से उम्मीदवार थे. हालांकि विपक्षी दलों में तब पूर्ण एकता नहीं बन सकी थी. डी.एम.के. ने पहले सुब्बा राव का समर्थन किया किंतु बाद में आनकानी कर दी. सी.पी.आई. (CPI) की नजर में सुब्बाराव दक्षिणपंथी विचार के थे. कांग्रेस ने जाकिर हुसैन को उम्मीदवार बनाया था. याद रहे कि दोनों निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ही चुनाव लड़ रहे थे. चुनाव प्रचार के दौरान काफी खींचतान चली. प्रतिपक्ष के कुछ नेता यह उम्मीद भी कर रहे थे कि जाकिर हुसैन की हार के बाद इंदिरा गांधी की सरकार गिर जाएगी. किंतु वैसा कुछ भी नहीं हुआ. हालांकि दोनों तरफ से क्रॉस वोटिंग हुई.
इंदिरा ने की बिहार के गैरकांग्रेसी सीएम से जाकिर हुसैन को जिताने की अपील
जाकिर हुसैन सन 1957 से सन 1962 तक बिहार के राज्यपाल रह चुके थे. बिहार में सन 1967 में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकार बन चुकी थी. किंतु बिहार के कुछ गैरकांग्रेसी विधायकों ने भी जाकिर हुसैन को वोट दे दिए. बिहार विधान सभा में कांग्रेसी सदस्यों की संख्या 128 थी. किंतु जाकिर हुसैन को 141 विधान सभा सदस्यों के वोट मिले. याद रहे कि प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने बिहार के गैर कांग्रेसी मुख्य मंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा से आग्रह किया था कि वे जाकिर हुसैन को जिताएं. याद रहे कि महामाया बाबू पहले कांग्रेस में ही थे. देश की विधानसभाओं में कांग्रेसी विधायकों की कुल संख्या 1713 थी. किंतु जाकिर हुसैन को 1740 विधायकों ने वोट दिए.
संसद के दोनों सदनों में कांग्रेसी सदस्यों की कुल संख्या 445 थी, किंतु जाकिर हुसैन को 447 सांसदों के वोट मिले. हालांकि 20 से 25 कांग्रेसी सांसदों ने सुब्बा राव को वोट दे दिए. यानि उसकी क्षतिपूर्ति गैरकांग्रेसी सांसदों ने कर दी. उस चुनाव के समय कांग्रेस ने जाकिर हुसैन को धर्म निरपेक्ष उम्मीदवार कह कर प्रचारित किया. उसकी प्रतिक्रिया भी हुई. विवाद निवर्तमान राष्ट्रपति डा.एस.राधाकृष्णन को फिर से राष्ट्रपति बनाने की मांग को लेकर भी था. प्रमुख कांग्रेस नेता कामराज यह चाहते थे कि डा.राधाकृष्णन दोबारा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनें. कुछ नेताओं का यह तर्क था कि डा. राजेंद्र प्रसाद की तरह ही उन्हें भी दोबारा राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए. किंतु खुद डा.राधाकृष्णन ने कह दिया कि वे उम्मीदवार नहीं होंगे. संभवतः उन्हें लग गया था कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस पक्ष में नहीं थीं.
डॉ. राधाकृष्णन और दार्शनिक राष्ट्रपति
दरअसल डा.राधाकृष्णन स्वतंत्र विचार के व्यक्ति थे. वे राष्ट्रपति बनने के बाद भी किताबों में डूबे रहते थे. सार्वजनिक समारोहों में उनकी रुचि कम थी. सांसदों की ओर से जो विदाई समारोह आयोजित किया गया था, उसमें तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष नीलम संजीव रेड्डी ने कहा था कि डा.राधाकृष्णन अपने पद की मर्यादा को एक कर्मयोगी की तरह निबाहा. प्लेटो की मान्यता थी कि राज प्रमुख को किसी दार्शनिक को ही होना चाहिए. इसके जवाब में डा.राधाकृष्णन ने भारतीय परंपरा का जिक्र करते हुए उस समारोह में कहा था कि श्रीकृष्ण और राजा जनक राजनीतिज्ञ होते हुए भी दार्शनिक थे.
ऐसे दार्शनिक राष्ट्रपति को भला कोई प्रधान मंत्री कैसे पसंद कर सकता है जो राष्ट्रपति सन 1966 के अपने एक भाषण में यह कह चुका था कि सरकार अपने अनेक कर्तव्यों से विमुख हो रही है. गरीबी और विषमता की चर्चा करते हुए डा.राधाकृष्णन ने यह भी कहा था कि समाज रसातल में जा रहा है लेकिन राजनीतिज्ञ शान ओ शौकत में व्यस्त हैं. डा.राधाकृष्णन ने चीन युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू से कहा था कि वे रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन को मंत्रिमंडल से बाहर कर दें. उसके बाद ही मेनन हटाए गए.
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