- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- नंबरों की दौड़ में...
सबेरे-सबेरे या देर रात तक स्कूली बच्चे कंधे पर थैला लटकाये इधर से उधर भड़भड़ाते दिख रहे हैं. आखिर उनके बोर्ड के इम्तहान सिर पर आ गये हैं. कहने को तो सीबीएसइ ने नंबर की जगह ग्रेड लागू कर दिया है, लेकिन इससे उस संघर्ष का दायरा और बढ़ गया है, जो बच्चों के आगे के एडमिशन, भविष्य या जीवन को तय करता है. दुनिया क्या ऐसे ही गलाकाट प्रतिस्पर्धा से चलती है? क्या किसी बच्चे की योग्यता, क्षमता और बुद्धिमत्ता का तकाजा महज अंकों का प्रतिशत ही है? वह भी उस परीक्षा प्रणाली में, जिसकी स्वयं की योग्यता संदेहों से घिरी हुई है! यह सरासर नकारात्मक सोच है, जिसके चलते बच्चों में आत्महत्या, पर्चे बेचने-खरीदने की प्रवृति, नकल व झूठ का सहारा लेना जैसी बुरी आदतें बढ़ रही हैं. शिक्षा का मुख्य उद्देश्य इस नंबर-दौड़ में गुम हो गया है.
जनता से रिश्ता इस खबर की पुष्टि नहीं करता है ये खबर जनसरोकार के माध्यम से मिली है और ये खबर सोशल मीडिया में वायरल हो रही थी जिसके चलते इस खबर को प्रकाशित की जा रही है। इस पर जनता से रिश्ता खबर की सच्चाई को लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं करता है।
सोर्स: prabhatkhabar