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- प्रतिभा छिप नहीं सकती
अरुणा कपूर: प्रतिभावान व्यक्ति हर क्षेत्र में पाए जाते हैं। कुछ व्यक्तियों में प्रतिभा जन्मजात होती है और कुछ व्यक्ति सतत अभ्यास और परिश्रम से किसी विषय में महारत हासिल कर लेते हैं। प्रतिभावान व्यक्ति हर क्षेत्र में प्रशंसनीय होते ही हैं। मगर कुछ दशकों पहले कलाकारों को सम्मान तो दिया जाता था, पर उन्हें अच्छी-खासी धन-दौलत देकर सम्मानित करने पर जोर नहीं दिया जाता था। पुराने जमाने के कई फिल्मी कलाकार आज भी यह कहते मिल जाएंगे कि उन्हें हर महीने कुछ सौ रुपए तनख्वाह पर काम करना पड़ता था। पर आज के दौर में प्रतिभावान व्यक्ति सिर्फ मान सम्मान नहीं, धन भी अच्छी-खासी मात्रा में अर्जित कर लेते हैं।
फिल्म उद्योग और टीवी धारावाहिकों में अभिनय करने वाले कलाकार, संगीतकार, कवि, लेखक, वस्त्र निर्माता, मेकअप के ज्ञाता, फैशन डिजाइनर आदि अपनी प्रतिभा के बलबूते पर ही प्रसिद्धि पाते हैं और बहुत-सा धन अर्जित करते हैं। इसी धन की वजह से कला के क्षेत्र में आज के दौर में प्रतियोगिता पनप रही है, जो पहले इतने बड़े प्रमाण में नहीं हुआ करती थी।
हर कोई अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर कला के क्षेत्र में प्रवेश पाना चाहता है। इसी वजह से दूसरों को धक्का मार कर या हटा कर किसी भी तरह से आगे निकलने की और रातोरात स्टार बनने की प्रवृत्ति भी बढ़ गई है। यह सामाजिक स्थिति अच्छी नहीं है। कला के क्षेत्र में पहले से जमे हुए लोग, भाई-भतीजावाद के चीले पर चल पड़े हैं। वे अपने ही बेटे, बेटियां, भानजे और भतीजों को फिल्मों या टीवी धारावाहिकों में प्रदर्शित करते हैं, चाहे उनमें किसी तरह का कोई कलात्मक गुण न हो। उन्हें अभिनय करने आता न हो या गाने के लिए उनकी आवाज उपयुक्त न भी हो या लेखन की कला से उनका दूर तक का कोई वास्ता न हो। फिर भी उन्हें ही बढ़ा-चढ़ा कर दर्शकों के सामने पेश किया जाता है।
अब ऐसे में सच्ची प्रतिभाओं को अपना हुनर दिखाने लिए क्या करना चाहिए? उन्हें मौका तलाशना पड़ता है। मौका तलाशना आसान नहीं होता। बहुत मेहनत करनी पड़ती है। फिल्म उद्योग और टीवी धारावाहिकों में छाए हुए भाई-भतीजों की भीड़ से टक्कर लेना, लोहे के चने चबाने के समान होता है। फिर भी इन सच्ची प्रतिभाओं पर उन निर्माता-निर्देशकों की नजर पड़ ही जाती है, जो हीरे के पारखी होते हैं। वे इनकी कद्र करते हैं। परिणाम यह होता है कि इन्हें फिल्मों या धारावाहिकों में काम मिल जाता है। ये प्रतिभावान होने की वजह से समय के प्रवाह में दर्शकों के चहेते बन जाते हैं।
दर्शक इन्हें बार-बार देखना पसंद करते हैं। यहां इन्हें धन, यश और प्रसिद्धि मिल जाती है। निर्माता-निर्देशकों का कारोबार भी चल पड़ता है। यहां तक सब ठीक है, लेकिन भाई-भतीजावाद से घिरे हुए निर्माता-निर्देशक क्या यह सब होते देखना पसंद करते हैं? नहीं। वे अपने स्वार्थ के लिए टेढ़ी-मेढ़ी चालें चलने लग जाते हैं। वे नहीं चाहते कि उनके बेटे, बेटियां, भाई, भतीजे, भानजे इस दौड़ में पिछड़ जाएं। इस वजह से वे समाज के अन्य वर्गों से आई हुई प्रतिभाओं के रास्ते में रोड़े अटकाने का काम करते हैं।
यहां एक ऐसे ही प्रतिभावान और समाज के ऐसे वर्ग से ताल्लुक रखने वाले कलाकार का उदाहरण देना समीचीन होगा, जिसका फिल्म जगत से दूर का भी वास्ता नहीं था। पिछले साल फिल्म उद्योग में तहलका मचा देने वाले इस कलाकार के बारे में तथ्य यह है कि वह बगैर किसी ऊंची पहुंच या सिफारिश के पहले टीवी धारावाहिकों में और बाद में फिल्मों में प्रवेश पा चुका था। उसे बहुत कम समय में खासी प्रसिद्धि मिल गई थी। इस तरह जाहिर है, धन भी खूब मिला था। ऐसे में पहले के जमे हुए कुछ निर्माता-निर्देशक जो भाई भतीजावाद में प्रवृत्त थे, उनसे यह कैसे सहन होता कि बाहर का आया हुआ कोई कलाकार फिल्म जगत में इतने कम समय में इतनी प्रसिद्धि पा ले और धन भी कमा ले।
वह एक होनहार कलाकार था और असमय मृत्यु की गोद में समा गया। खैर, जो भी हुआ हो, इसके लिए पूरा फिल्म उद्योग तो जिम्मेदार नहीं हो सकता। भारतीय फिल्म उद्योग के निर्माता-निर्देशकों ने प्रतिभाओं को, कलाकारों को पहले भी देश और दुनिया के सामने आने का मौक़ा दिया है और आगे भी देते रहेंगे। हिंदी भाषा को आज देश और दुनिया में प्रचारित करने का महान कार्य जो हिंदी फिल्मों ने किया है, वह देश के लिए एक बहुत बड़ा गौरव है। मुंबई का फिल्म उद्योग बालीवुड कहलाता है और हिंदी फिल्में बनाने के लिए और कलाकारों को दुनिया के समक्ष लाने के लिए जाना जाता है। जो प्रतिभावान कलाकार हैं, उन्हें इस नगरी में देर-सवेर कहीं न कहीं अपना मुकाम हासिल हो ही जाता है।