सम्पादकीय

बुजुर्गों की देखभाल, समाज के संवेदनशील हुए बिना नहीं होगा उनकी समस्याओं का समाधान

Rani Sahu
6 Oct 2022 6:28 PM GMT
बुजुर्गों की देखभाल, समाज के संवेदनशील हुए बिना नहीं होगा उनकी समस्याओं का समाधान
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सोर्स - Jagran News
देश भर में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ वृद्धाश्रम स्थापित करने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर उनसे इस संदर्भ में जो जानकारी मांगी, वह संतोषजनक होगी, इसमें संदेह है। इस नोटिस के जवाब में राज्यों से हर जिले में वृद्धाश्रम, उनको दी जाने वाली पेंशन और बुजुर्गों के लिए चलाई जाने वाली कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी देने को कहा गया है।
निःसंदेह राज्य सरकारें बुजुर्गों को पेंशन देने के साथ ही उनके लिए कुछ और योजनाएं भी चलाती हैं, लेकिन अभी हर जिले में वृद्धाश्रम नहीं हैं। यह भी नहीं कहा जा सकता कि सभी राज्यों की ओर से उनकी चिकित्सा के लिए कोई विशेष व्यवस्था की जा सकी है या फिर उन्हें दी जाने वाली पेंशन पर्याप्त है। एक ऐसे समय जब बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है और संयुक्त परिवार टूटने से वे अकेलेपन और उपेक्षा से जूझ रहे हैं, तब सरकारों को उनके प्रति और संवेदनशील बनना होगा।
निःसंदेह ग्रामीण भारत में अभी भी बुजुर्गों की देखभाल की स्थिति बेहतर है, क्योंकि वहां अभी भी संयुक्त परिवार अस्तित्व में हैं और इसके चलते उनकी देखभाल होती है। इसके विपरीत शहरों और विशेष रूप से महानगरों में, जहां एकल परिवार का चलन बढ़ रहा है, वहां यह स्थिति नहीं है। इसके कारण बुजुर्ग आर्थिक तंगी से तो दो-चार होते ही हैं, अक्सर उन्हें भावनात्मक रूप से कोई सहारा देने वाला भी नहीं होता। तथ्य यह भी है कि कई तरह की समस्याओं से दो-चार हो रहे सभी बुजुर्ग वृद्धाश्रम में रहने में समर्थ नहीं होते। पर्याप्त संख्या में वृद्धाश्रम भी नहीं हैं।
इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि ट्रेनों में यात्रा के लिए वरिष्ठ नागरिकों को कुछ छूट दी गई है और बैंक भी उन्हें अतिरिक्त ब्याज देते हैं, क्योंकि इन सुविधाओं को प्राप्त करने वाले वरिष्ठ नागरिक जिस भावनात्मक संबल की तलाश में होते हैं, वह प्रायः उन्हें नहीं मिलता। चूंकि विदेश जाने वाले युवाओं की बढ़ती संख्या और देश में ही नौकरी-व्यापार के सिलसिले में दूसरे शहरों में बसने के सिलसिले के चलते आने वाले समय में अकेले रह रहे बुर्जुगों की समस्याएं और बढ़ेंगी, इसलिए सरकार को भी सजग होना होगा और समाज को भी।
यह सही है कि सरकारों को बुजुर्गों के लिए और भी बहुत कुछ करना होगा, लेकिन इसी के साथ यह भी समझना होगा कि समाज के संवेदनशील हुए बिना उनकी समस्याओं का समाधान होने वाला नहीं है, क्योंकि बुढ़ापे में जब वे अशक्त हो जाते हैं तब उन्हें अपनों का साथ और अतिरिक्त देखभाल चाहिए होती है। इसकी पूर्ति पारिवारिक मूल्यों की महत्ता को समझने और उन्हें संरक्षण देने से ही हो सकती है। वरिष्ठ नागरिकों को जो भावनात्मक लगाव और सहारा चाहिए होता है, वह परिवार ही उपलब्ध करा सकता है।
Rani Sahu

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