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- ताज की ज़ात

अवध और काशी के बाद अब उन्होंने ताज की ज़ात पता लगाने के लिए देश भर में आंदोलन घड़ने का निर्णय लिया है। ज़ाहिर है, घड़ा वही जाता है जो खड़ा नहीं हो सकता। एक आम आदमी जो अपने घर की मुमताज को ढंग की एक साड़ी या सूट ख़रीद कर नहीं दे सकता, उसके दिल में ताज देखने की हसरत तभी अंगड़ाइयां लेती है, जब उसकी बीवी उससे बरस-दो बरस तक ताज देखने के लिए इसरार करती रहे या उसकी जेब में चार पैसे जमा हो जाएं। महंगाई के दुःशासन से अपनी गृहस्थी की साड़ी संभालते उस बेचारे के पास कहां इतना वक्त है, यह सोचने का कि ताज के नीचे उसकी अपनी नींव है या वह किसी के कंधे पर पांव रख कर खड़ा है। वैसे अब शायद ही कोई मुमताज अपना ऐसा मकबरा बनवाना चाहे जो उसके जाने के बाद ताज जैसा बखेड़ा खड़ा कर दे। हां, इस बात की संभावना ज़्यादा है कि अब कोई मुमताज अपने शाहजहां को इतना प्यार करने दे कि उसके प्यार की चौदहवीं निशानी को दुनिया दिखलाने की जद्दोजहद में वह ख़ुद शहीद हो जाए। पता नहीं क्या सोच कर ताजमहल बनाने वाले ने उसके प्रवेश द्वार पर इन दर्शनपूर्ण पंक्तियों, 'हे आत्मा! तू ईश्वर के पास विश्राम कर।
सोर्स- divyahimachal
