सम्पादकीय

दागी नुमाइंदे

Subhi
19 Aug 2022 5:00 AM GMT
दागी नुमाइंदे
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राजनीति में आपराधिक छवि वाले या किसी अपराध के आरोपों का सामना कर रहे लोगों को जनप्रतिनिधि बनाए जाने के सवाल पर शायद ही कोई नेता इसके खिलाफ राय जाहिर नहीं करते।

Written by जनसत्ता: राजनीति में आपराधिक छवि वाले या किसी अपराध के आरोपों का सामना कर रहे लोगों को जनप्रतिनिधि बनाए जाने के सवाल पर शायद ही कोई नेता इसके खिलाफ राय जाहिर नहीं करते। लेकिन अक्सर ऐसी राय या राजनीति को अपराध की छवि से मुक्त करने के दावे की हकीकत सामने आ जाती है जब किसी राज्य या केंद्र में सरकार गठन का मौका आता है। बिहार में नीतीश कुमार को एक ऐसे नेता के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने राज्य में अपराध के खात्मे की घोषणा के बूते ही अपने राजनीतिक कद को ऊंचा किया।

लेकिन इस तरह के वादों और दावों की असली परीक्षा उन्हें जमीन पर उतारने के वक्त होती है। हाल ही में भाजपा से गठबंधन तोड़ कर नीतीश कुमार ने राज्य में राजद और अन्य सहयोगी दलों के साथ मिल कर नई सरकार बनाई। इसके बाद जब मंत्रिपरिषद के गठन का मसला आया तो यह उम्मीद की गई कि वे अपनी छवि के मुताबिक फैसले लेंगे और ईमानदार लोगों को मंत्री बनाएंगे। लेकिन उसमें मंत्री बनाए गए कुछ विधायकों के अतीत और वर्तमान को लेकर जैसा विवाद खड़ा हो गया है, वह शायद खुद नीतीश कुमार के लिए भी सुविधाजनक नहीं होगा।

दरअसल, बिहार में नई सरकार में जिन लोगों को मंत्रीमंडल में शामिल किया गया है, उनमें से कई पर लगे आरोपों के बाद एक बार फिर इस सवाल ने जोर पकड़ा है कि जो लोग राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त बनाने की बात करते हैं, वे हर बार मौका मिलने पर निराश क्यों करते हैं। इस बार सबसे ज्यादा सुर्खियों में बिहार सरकार में कानून मंत्री बने कार्तिकेय सिंह हैं, जो राष्ट्रीय जनता दल के विधायक हैं। मंगलवार को उन्हें पटना के दानापुर में अदालत के सामने समर्पण करना था, मगर वे राजभवन में शपथ लेने पहुंच गए।

गौरतलब है कि 2014 में कार्तिकेय सिंह सहित सत्रह अन्य लोगों पर पटना के बिहटा थाने में अपहरण का मामला दर्ज कराया गया था। कार्तिकेय सिंह पर आरोप है कि उन्होंने एक बिल्डर को मारने के मकसद से अपहरण की साजिश रची थी। यह अजीब स्थिति है कि अक्सर साफ-सुथरी और ईमानदार सरकार देने के दावों के बीच आपराधिक छवि के लोगों को उच्च पद देने का सवाल उभर जाता है। सवाल है कि क्या नीतीश कुमार अपने ही दावों को लेकर वास्तव में गंभीर हैं?

हालत यह है कि बिहार की मौजूदा सरकार में जितने विधायकों को मंत्री बनाया गया है, उनमें से बहत्तर फीसद के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। गैरसरकारी संगठन एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिसर्च की ताजा रिपोर्ट में यह बताया गया है कि तेईस मंत्रियों ने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी दी है। इनमें सत्रह मंत्रियों के खिलाफ गंभीर अपराधों का धाराएं लगी हुई हैं। विचित्र है कि कई बार गंभीर अपराधों की धाराएं लगी होने के बावजूद यह सफाई पेश की जाती है कि संबंधित विधायक या सांसद के खिलाफ मुकदमा राजनीतिक कारणों से किया गया था।

अगर किसी हत्या, अपहरण या अन्य संगीन अपराधों में कोई व्यक्ति आरोपी है तो उसे राजनीतिक बता कर क्या हासिल करने की कोशिश की जाती है? क्या इसी नुक्ते का फायदा उठा कर कई बार हत्या या बलात्कार जैसे अपराधों का कोई आरोपी विधायक-सांसद या फिर मंत्री नहीं बन जाता है? यह बेवजह नहीं है कि देशभर में अपराधी तत्त्वों के राजनीति में बढ़ते दखल ने एक ऐसी समस्या खड़ी कर दी है कि अपहरण के आरोपी अदालत में पेश होने की जगह मंत्री पद की शपथ लेते हैं। इस तरह की रियायत बरतने के बाद नीतीश कुमार के उन दावों की क्या विश्वसनीयता रह जाती है कि वे बिहार को अपराध और भ्रष्टाचार से मुक्त कराएंगे?


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