सम्पादकीय

सिस्टम बन गया बाधा

Gulabi
21 July 2021 5:10 PM GMT
सिस्टम बन गया बाधा
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सिर्फ छह महीने बाद माना जा रहा है कि बाइडेन की चमक मद्धम पड़ गई है

अमेरिका में जो बाइडेन ने बतौर राष्ट्रपति छह महीने पूरे कर लिए हैं। वे एक कठिन परिस्थिति में राष्ट्रपति बने। तब सारा देश छह जनवरी को संसद भवन पर हुए हमले से हिला हुआ था। पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने हार स्वीकार करने से इनकार कर देश को एक अजीब असहज हाल में फंसा रखा था। पूर्व राष्ट्रपति के उस रुख का साया अब तक बाइडेन प्रशासन पर देखा जा रहा है। देश में घोर ध्रुवीकरण का ही असर है कि सिर्फ छह महीने बाद माना जा रहा है कि बाइडेन की चमक मद्धम पड़ गई है। बाइडेन ने शुरुआत जोरदार ढंग से की। उनका 1.9 ट्रिलियन का कोरोना राहत पैकेज दुनिया भर में चर्चित रहा। लेकिन उनके बाद के एजेंडे संसदीय प्रक्रियाओं में उलझ गए हैं।

नतीजा है कि उनके कार्यकाल के पहले 100 दिन में जो उत्साह दिखा था, वह अब कमजोर पड़ गया है। बाइडेन का इन्फ्रास्ट्रक्चर पैकेज संसदीय पेच में उलझ गया है। बंदूक नियंत्रण, आव्रजन सुधार और पुलिस बर्बरता रोकने की उनकी पहल भी गतिरोध का शिकार हो गई है। बाइडेन के प्रोग्रेसिव समर्थक नाराज हैं कि राष्ट्रपति अपनी मध्यमार्गी सोच के कारण साहसी कदम नहीं उठा रहे हैं। जबकि कंजरवेटिव ताकतें ये आरोप लगा रही हैं कि बाइडेन अपने सोशलिस्ट समर्थकों के प्रभाव में हैँ। बहरहाल, यह तो साफ है कि बाइडेन के एजेंडे के आगे ना बढ़ पाने का कारण मौजूद ढांचा और सिस्टम है। एक महत्त्वपूर्ण बाधा फिलिबस्टर नियम बना हुआ है।
इस कारण बाइडेन को ऐसे प्रस्तावों को पारित कराने के लिए चक्कर काटने पड़ रहे हैं, जिनका वादा उन्होंने अपने समर्थको से किया था। इस बीच अगले साल नवंबर में होने वाले सीनेट और हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव के चुनाव की चर्चा शुरू हो चुकी है। इसमें कहा जा रहा है कि अगर उन चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी ने और सीटें गंवा दीं, तो फिर उसके बाद बाइडेन प्रशासन के लिए कोई अहम कदम उठाना असंभव हो जाएगा। विश्लेषकों के मुताबिक जो बाइडेन से उम्मीद पूर्व राष्ट्रपतियों फ्रैंकलीन डी. रुजवेल्ट या लिंडन बी. जॉनसन जैसे दूरगामी महत्त्व के कदम उठाने की उम्मीदें पाली गई थी। लेकिन सच यह है कि बाइडेन के पास संसद में वैसा बहुमत नहीं है, जैसा उन दोनों राष्ट्रपति के साथ रहा था। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि बाइडेन अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं। लेकिन यह काफी साबित नहीं हो रहा है।
क्रेडिट बाय नया इंडिया
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