सम्पादकीय

शरणार्थियों से हमदर्दी

Subhi
22 Jun 2022 5:58 AM GMT
शरणार्थियों से हमदर्दी
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संयुक्त राष्ट्र ने शर्णार्थियों के हितों की सुरक्षा के उद्देश्य से दिसंबर, वर्ष 2000 को विश्व शरणार्थी दिवस मनाने की घोषणा की थी, और तब से अब दुनिया भर में 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है।

Written by जनसत्ता: संयुक्त राष्ट्र ने शर्णार्थियों के हितों की सुरक्षा के उद्देश्य से दिसंबर, वर्ष 2000 को विश्व शरणार्थी दिवस मनाने की घोषणा की थी, और तब से अब दुनिया भर में 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है। जब भी किसी देश पर कोई आपदा या मुसीबत आई तो बहुत से देशों ने अपने यहां उस देश के लोगों को शरण दी है। मगर दुनिया के कुछ देश अपने यहां मुसीबत के मारे लोगों को शरण देने से कतराते हैं। शायद वे ऐसा अपने देश की सुरक्षा को ध्यान में रख कर करते हैं।

भारत हमेशा ही दूसरे देशों के शरणार्थियों के साथ हमदर्दी रखता आया है, लेकिन भारत को इसका सिला नकारात्म ही मिला है। रोहिंग्या मसले पर भारत को कड़ा रूख अपनाए रखना चाहिए। भारत की खुफिया एजेंसियों को रोहिंग्या पर ही नहीं, दूसरे शरणार्थियों और घुसपैठियों पर भी कड़ी नजर रखनी चाहिए।

महात्मा गांधी ने भी शायद देश के बंटवारे के समय यह फैसला मुसलमानों के हितों के लिए लिया था कि हमारे देश में रह रहे मुसलमानों को भारत में ही बसेरा करने की इजाजत दे दी थी, जबकि पाकिस्तान ने बंटबारे के वक्त भी अपने यहां रह रहे हिंदुओं को जबरदस्ती मारपीट कर भारत भेज दिया था और अब भी वहां अल्पसंख्यक समुदाय का जीवन नरक बना हुआ है।

कुछ वर्ष पहले इंस्टीट्यूट आफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (आईडीएसए) की रिपोर्ट में बताया गया था कि देश में लगभग दो करोड़ से अधिक बांग्लादेशी भारत में अवैध तरीके से रह रहे हैं। इनमें से बहुत तो अपराध का ग्राफ बढ़ाने में योगदान भी देते होंगे। सुरक्षा एजेंसियां हमेशा इनके आइएसआइ के साथ संबंध होने को लेकर चिंतित रहती हैं। बेशाक भारत दुनिया का सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष देश है, लेकिन वह धर्मशाला नहीं बन सकता और न ही यह भूल सकता है कि देश का विभाजन क्यों हुआ था?

अग्निपथ भर्ती योजना लागू होते ही बिहार सहित देश के तमाम राज्यों में सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाने लगा है! युवाओं का मानना है कि नया नियम हमारे पक्ष में नहीं है, जिस वजह से वे सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। सत्ता पक्ष को सही साबित करने के लिए कुछ मंत्रीगण मैदान में उतरे। पूर्व जनरल विजय कुमार सिंह का मानना है कि सेना में भर्ती होना अनिवार्य नहीं है।

जिसको सेना में आना है, वह आ सकता है, आपको सेना में कौन बुला रहा है? इन बातों से साफ जाहिर है कि सत्तापक्ष पूर्ण रूप से तानाशाही रवैया अपना रहा है। लोकतंत्र में सरकार के सामने अपनी मांग रखना गुनाह है क्या? क्या मंत्रिमंडल के फैसले के विरुद्ध जाना गुनाह है? अगर गुनाह नहीं है, तो फिर वीके सिंह ने अग्निपथ को लेकर अभ्यर्थियों के लिए ऐसे बयान क्यों दिया? यह देशहित में सही कदम नहीं है।


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