सम्पादकीय

ताइवान को लेकर खिंचीं तलवारें

Subhi
8 Aug 2022 3:50 AM GMT
ताइवान को लेकर खिंचीं तलवारें
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साल 2016 में सत्ता में आने के बाद साइ इंग वेन ने देश को सामरिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए अमेरिका से न केवल घातक और अत्याधुनिक हथियार खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है

ब्रह्मदीप अलूने: साल 2016 में सत्ता में आने के बाद साइ इंग वेन ने देश को सामरिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए अमेरिका से न केवल घातक और अत्याधुनिक हथियार खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है, बल्कि वे देश के सभी युवाओं को युद्ध जैसे हालात से निपटने के लिए तैयार रहने का आह्वान करती रही हैं। चीन के विरोध के चलते ताइवान की वैश्विक चुनौतियां कम नहीं हैं।

प्रशांत महासागर के पूर्व में अमेरिका और पश्चिम में रूस, चीन, जापान, कोरिया और ताइवान हैं। महासागर की प्रचंड व्यापारिक हवाएं बिना किसी अवरोध के पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं। लेकिन चीन ने भौगोलिक परिस्थितियों को चुनौती देकर हवा का रुख बदलने की कोशिश की है। इन्हीं कारणों से शुरू हुई अमेरिका और चीन की व्यापारिक और सामरिक प्रतिद्वंद्विता ने दुनिया का संकट बढ़ा दिया है। दरअसल, अमेरिका के निचले सदन की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने चीन के कड़े विरोध को दरकिनार करते हुए पिछले हफ्ते ताइवान की यात्रा कर अमेरिकी श्रेष्ठता को बनाए रखने की भावना का आक्रामक इजहार किया है।

इस पूरे घटनाक्रम से ऐसा प्रतीत होता है कि डालर और युआन कूटनीति की प्रतिद्वंद्विता को यूरोप से खींच कर वापस पूर्वी एशिया में लाने में अमेरिका ने आंशिक सफलता हासिल कर ली है। साथ ही अमेरिका ने ताइवान पर अपना ध्यान केंद्रित करके चीन को सामरिक दुश्चक्र में उलझा दिया है। अब इसके दूरगामी परिणाम हिंद प्रशांत क्षेत्र में कड़ी सैन्य प्रतिद्वंद्विता के रूप में देखने को मिल सकते हैं।

अमेरिका इस तथ्य से भलीभांति परिचित है कि एक चीन नीति (वन चाइना पालिसी) की वृहत अवधारणा को नजरअंदाज कर चीन को कभी भी असहज किया जा सकता है। ट्रंप ने भी यह दांव खेला था। साल 2016 में उन्होंने सीधे ताइवान की राष्ट्रपति साइ यिंग वेन से बात करके 1979 में बनी अमेरिका की उस नीति को भंग कर दिया था जिसके अनुसार अमेरिका ने ताइवान से औपचारिक रिश्ते खत्म कर दिए गए थे। चीन के विदेश मंत्रालय ने ट्रंप और ताइवान की सीधी बातचीत पर विरोध दर्ज कराते हुए इसे एक चीन नीति का उल्लंघन बताया था। लेकिन नैंसी पेलोसी ने ढाई दशक बाद किसी अमेरिकी नेता के रूप में ताइवान की यात्रा करने का असाधारण कदम उठा कर चीन की उग्र राष्ट्रवादी महत्त्वाकांक्षा को ध्वस्त कर दिया।

ताइवान पूर्वी एशिया का एक ऐसा देश है जो हिंद प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका का महत्त्वपूर्ण आर्थिक और सामरिक भागीदार है। दरअसल, ताइवान द्वीपों का समूह है। इसके पश्चिम में चीन, उत्तर-पूर्व में जापान और दक्षिण में फिलीपींस है। साल 1949 से चीन से अलग हुए ताइवान को चीन अपना हिस्सा बताता रहा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कई बार कह चुके हैं कि ताइवान का एकीकरण जरूर पूरा होना चाहिए।

वहीं ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश बताता है और उसे किसी भी कीमत पर चीन का आधिपत्य स्वीकार नहीं है। जबकि चीन, ताइवान को अपने से अलग हुए प्रांत के रूप में देखता है और उसने चेतावनी दी है कि जरूरत पड़ने पर उसे बल प्रयोग से वापस चीन में मिला कर रहेगा। ताइवान की वर्तमान राष्ट्रपति साइ इंग वेन ने कहा है कि वे चीन के साथ मौजूदा रिश्तों को बरकरार रखेंगी, लेकिन चीन को भी ताइवान के लोकतंत्र का सम्मान करना चाहिए।

साल 2016 में सत्ता में आने के बाद साइ इंग वेन ने देश को सामरिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए अमेरिका से न केवल घातक और अत्याधुनिक हथियार खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है, बल्कि वे देश के सभी युवाओं को युद्ध जैसे हालात से निपटने के लिए तैयार रहने का आह्वान करती रही हैं। चीन के विरोध के चलते ताइवान की वैश्विक चुनौतियां कम नहीं हैं। ताइवान लंबे समय से आर्थिक सहयोग और मदद के बूते अपने चंद राजनयिक साझीदारों को अपने साथ बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। उसका प्रतिद्वंद्वी पड़ोसी देश चीन आर्थिक महाशक्ति बन चुका है। वह दुनिया पर दबाव डालने के लिए किसी भी उस देश के साथ राजनयिक संबंध नहीं रखता जो ताइवान को एक स्वतंत्र देश की मान्यता देता है।

हालांकि ताइवानी राष्ट्रपति वेन चीन की आलोचना का कोई अवसर भी नहीं छोड़तीं। वे हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों और रैलियों का समर्थन करते हुए यह कह चुकी हैं कि जो भी ताइवान की संप्रभुता और लोकतंत्र को कमजोर करने या राजनीतिक सौदेबाजी के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश करेगा, वह असफल हो जाएगा। वेन ताइवान पर आधिपत्य के चीन के किसी भी दावे को खारिज करते हुए हांगकांग की तरह एक देश दो व्यवस्था के सिद्धांत को भी ख़ारिज करती हैं।

वेन ताइवान को लोगों को हांगकांग से सबक लेते हुए यह हिदायत भी देती रही हैं कि यदि वे स्वतंत्र ताइवान पर जोर नहीं देंगे तो उनके पास जो कुछ भी है, उसे खो देंगे। राष्ट्रपति साइ ताइवान की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी का नेतृत्व करने वाली पहली नेता हैं। डीपीपी चीन से आजादी की पक्षधर पार्टी है। वेन के राष्ट्रपति बनने के बाद चीन ज्यादा आक्रामक हुआ है और उसने ताइवान की तरफÞ सैकड़ों मिसाइलें तान रखीं है।

लेकिन ताइवान को लेकर चीन की आक्रामकता बढ़ती जा रही है। शी जिनपिंग इसे चीन में मिला कर हिंद प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के लिए बड़ा संकट पैदा कर सकते हैं। चीन की आक्रामकता को लेकर अमेरिका और नाटो सहित उसके अन्य सहयोगी देश सतर्क हैं। हाल में बाइडन ने अपनी मध्यपूर्व की यात्रा को अमेरिकी सुरक्षा और चीन को चुनौती देने के लिहाज से महत्त्वपूर्ण बताया था। वहीं चीन ने अमेरिका मध्यपूर्व में भी नाटो जैसा संगठन खड़ा करने की कोशिशों का आरोप लगाया है। बाइडन, बराक ओबामा की एशिया प्रशांत नीति को आगे बढ़ाते हुए मध्यपूर्व में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के प्रभाव को कम करने की दिशा में मध्यपूर्व देशों से अपने संबंध बेहतर करने में लग गए हैं।

नैंसी पेलोसी ने ताइवान के साथ ही जिन देशों की यात्रा की, वे भी चीन की आक्रामक नीतियों से प्रभावित रहे हैं। दक्षिण चीन सागर सामरिक और व्यापारिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है, वहीं हिंद प्रशांत क्षेत्र का भी रणनीतिक महत्त्व कम नहीं है। वर्तमान में विश्व व्यापार की पचहत्तर प्रतिशत वस्तुओं का आयात-निर्यात इसी क्षेत्र से होता है। विश्व के सर्वाधिक व्यस्त बंदरगाहों में कई इसी क्षेत्र में हैं। विश्व की जीडीपी में इसका क्षेत्र साठ फीसदी से ज्यादा का योगदान है। इस क्षेत्र में कुल अड़तीस देश शामिल हैं, जो विश्व की कुल आबादी का पैंसठ प्रतिशत हिस्सा है। इसलिए यहां कब्जे की प्रतिस्पर्धा कभी खत्म नहीं होने वाली।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र को मुक्त एवं स्वतंत्र क्षेत्र बनाने के लिए अमेरिका भारत, ताइवान, आस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ सैन्य भागीदारी बढ़ा कर चीन को संतुलित और नियंत्रित करने में लगा है। प्रशांत क्षेत्र से जुड़ी चीन की महत्त्वाकांक्षाएं पश्चिम को परेशान करती रही हैं। इस साल जून में चीन के विदेश मंत्री वांग ने प्रशांत द्वीप समूह के कई देशों की यात्रा की थी। इन सबका मुख्य लक्ष्य इस इलाके के साथ चीन के संबंधों को और गहरा बनाने का था। लेकिन अमेरिकी प्रभाव के कारण कई देशों ने चीन से व्यापारिक समझौतों पर असहमति जता दी और इस तरह चीन की कोशिशों में धक्का लगा।

नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद उत्पन्न विवाद चीन को रोकने की कवायद नजर आती है। 2018 में आस्ट्रेलिया ने प्रशांत देशों के साथ अपना जुड़ाव फिर से मजबूत करने की पहल शुरू की। जापान भारत के साथ सहयोग बढ़ा ही रहा है, वहीं क्वाड को लेकर भी अमेरिका की चीन पर दबाव डालने की नीति ही है। फिलहाल ताइवान संकट को बढ़ा कर अमेरिकी ने चीन को रणनीतिक जाल में उलझा दिया है। उसकी सीधी चुनौती से चीन के वैश्विक रुतबे को क्षति पहुंची है और इससे चीन के साथ सीमा विवाद में उलझे भारत जैसे देशों के खुल कर अमेरिका के साथ खड़े होने की उम्मीद भी बढ़ गई है।


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