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राजस्थान कांग्रेस
संयम श्रीवास्तव। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव (Five State Assembly Elections) में कांग्रेस (Congress) के बुरी तरह से हारने के बाद अब उसकी स्थिति उन राज्यों में भी खराब होने लगी है जहां वह पहले से सरकार में मौजूद है. राजस्थान (Rajasthan) और पंजाब (Punjab) दो ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस की सरकार है, लेकिन वहां वह दो खेमों में बंटी नजर आती है. पंजाब में जहां नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) के बीच जंग जारी है, वहीं राजस्थान में यह जंग मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) और कांग्रेस नेता सचिन पायलट (Sachin Pilot) के बीच है. कांग्रेस आलाकमान दोनों ही राज्यों में अपने मुख्यमंत्रियों के साथ खड़ी नजर आ रही है जिससे मामला और भी गंभीर हो गया है.
दरअसल, राजस्थान में एक बार पहले स्थिति बिगड़ने के बाद संभल गई थी, लेकिन राजस्थान कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व मंत्री और बाड़मेर के गुढ़ामलानी से विधायक रहे हेमाराम चौधरी के अपने पद से इस्तीफा देने के बाद पायलट और गहलोत खेमे की गुटबाजी फिर से सामने आने लगी है. हेमाराम चौधरी पायलट गुट के नेता थे, उनके स्तीफे के बाद पायलट समेत उनके गुट के सभी विधायक अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ खुल कर आवाज़ उठाने लगे हैं.
हेमाराम चौधरी के इस्तीफे पर पायलट
अपने करीबी विधायक के इस्तीफा देने के बाद सचिन पायलट का दर्द उनके दिए बयान से झलक रहा है. उन्होंने इस पर कहा कि हेमाराम चौधरी सदन के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से हैं, उनकी सादगी और ईमानदारी जैसी है शायद पूरे कांग्रेस में ऐसा दूसरा कोई नेता नहीं है. उनका इस्तीफा देना हम सबके लिए बेहद चिंता का विषय है. पायलट खेमा इससे कितना नाराज़ है इस बात का अंदाजा आप विधायक वेद प्रकाश सोलंकी के बयान से लगा सकते हैं. हेमाराम के स्तीफे के बाद पायलट खेमे के दूसरे विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने कहा कि इस वक्त राजस्थान कांग्रेस में ज्यादातर विधायकों की हालत हेमाराम जैसी है अगर मेरी भी सुनवाई नहीं हुई तो मैं भी इस्तीफा दुंगा. उन्होंने कहा कि पार्टी के अंदर कई विधायक घुट रहे हैं और जो चुप हैं वह सिर्फ मजबूरी के कारण चुप हैं.
क्या है कांग्रेस आलाकमान की स्थिति
कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व कल भी अपने मुख्यमंत्री के साथ था और आज भी अपने मुख्यमंत्री के साथ खड़ा होता दिखाई दे रहा है. यही वजह है कि राज्य में इस गुटबाजी को लेकर अभी आलाकमान से कोई बयान सामने नहीं आया है. हालांकि ये हाल सिर्फ राजस्थान में ही नहीं पंजाब में भी दिखाई दे रहा है, वहां भी सिद्धू और मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के बीच हर रोज़ जुबानी जंग चल रही है लेकिन कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व उस पर भी चुप्पी साधे हुए है. उसकी चुप्पी से ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को फर्क नहीं पड़ता कि नवजोत सिंह सिद्धू या फिर सचिन पायलट पार्टी में रहें या ना रहें.
राजस्थान में केंद्रीय नेतृत्व का संदेश आप राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी अजय माकन के उस बयान से लगा सकते हैं जिसमें उन्होंने कहा कि सचिन पायलट भले ही पार्टी के लिए एक एसेट हैं, लेकिन पार्टी किसी की उम्मीद के हिसाब से अपने फैसले नहीं लेती. इस बयान से साफ जाहिर है कि अशोक गहलोत के किसी भी कदम पर पायलट को फिलहाल तो केंद्रीय नेतृत्व से कोई साथ मिलने वाला नहीं है.
पंजाब में भी यही हाल है, जहां नवजोत सिंह सिद्धू मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ हर रोज बयान दे रहे हैं. पार्टी इस पर साफ संदेश दे चुकी है कि अगर पंजाब कांग्रेस में रहना है तो कैप्टन के हिसाब से ही चलना होगा. हरीश रावत जो पंजाब के प्रभारी हैं उन्होंने सिद्धू को नसीहत देते हुए कहा था कि, पंजाब में अमरिंदर सिंह के हिसाब से ही चलना होगा. इस बयान का साफ संदेश है कि राजस्थान की तरह केंद्रीय नेतृत्व यहां भी अपने मुख्यमंत्री के साथ पूरी तरह से खड़ी है.
क्या पायलट अपना जहाज बीजेपी की तरफ मोड़ेंगे
राजस्थान में सरकार बनने के बाद से ही वहां दो गुट बन गए थे एक मुख्यमंत्री गहलोत का गुट औद दूसरा सचिन पायलट का खेमा. सचिन पायलट इससे पहले अपने गुट के विधायकों के साथ बगावत कर चुके हैं, जिसके बाद ऐसा लग रहा था कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार गिर जाएगी. हालांकि बाद में प्रियंका गांधी और अहमद पटेल ने स्थिति को संभाल लिया और पायलट पार्टी में अपने विधायकों के साथ बने रहे. हालांकि इसके बाद सचिन पायलट और उनके विधायकों की स्थिति पार्टी में और खराब हो गई और अब उनकी सरकार में कोई नहीं सुन रहा है, जिससे पायलट खेमें में काफी नाराजगी है.
विधायक हेमाराम चौधरी के इस्तीफे ने फिर से पायलट गुट को गहलोत सरकार के खिलाफ मुखर होने का मौका दे दिया है. जो विधायक कल तक दबी जुबान में गहलोत के खिलाफ बोल रहे थे वह अब खुल कर बोलने लगे हैं, अगर स्थिति अभी नहीं सुधरी तो इस बार पायलट गुट का कांग्रेस पार्टी से अलग होना तय माना जा रहा है.
सवाल उठता है कि क्या सचिन पायलट बीजेपी में जा सकते हैं? जिस तरह से असम में बीजेपी ने कांग्रेस से आए हेमंत बिस्व सरमा को वहां का मुख्यमंत्री बनाकर पूरे विपक्ष के नेताओं को यह संदेश दिया है कि हमारे यहां आने पर विपक्ष के नेताओं का भी पूरा सम्मान होता है और उनके साथ कोई भेद-भाव नहीं रखा जाता, उससे तो बिल्कुल लगता है कि पायलट अब बीजेपी की तरफ अपना रुख कर सकते हैं. हालांकि अभी तक बीजेपी की तरफ से ऐसा खुल कर इस मुद्दे पर कोई बयान नहीं आया है, ऊपर से राजस्थान में वसुंधरा राजे कभी नहीं चाहेंगी की उनके टक्कर का कोई नेता बीजेपी में शामिल हो जिससे उनके और मुख्यमंत्री की कुर्सी के बीच कोई तीसरा आए. लेकिन सचिन पायलट को पार्टी में शामिल करना और उन्हें कौन सा पद देना है इसका फैसला बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व करेगा ना कि वसुंधरा राजे सिंधिया.
सचिन पायलट को अगर कांग्रेस पार्टी में सम्मान और उचित पद नहीं दिया गया तो उनके पास बीजेपी में जाने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं है. यह बात भारतीय जनता पार्टी के भी अच्छे से पता है इसलिए वह भी इस वक्त खामोश है, क्योंकि उसे भी पता है कि अगर ऐसी ही स्थिति बनी रही तो पायलट खुद बीजेपी की शर्तों पर पार्टी में शामिल हो जाएंगे.
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