सम्पादकीय

इमरान खान और जनरल बाजवा में खिंची तलवार, बहुत बढ़ गई है तक़रार

Gulabi
26 Oct 2021 2:15 PM GMT
इमरान खान और जनरल बाजवा में खिंची तलवार, बहुत बढ़ गई है तक़रार
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जनरल बाजवा में खिंची तलवार

विष्णु शंकर।

पाकिस्तान में सियासी हालात तेज़ी से बदल रहे हैं. यहां खबर गर्म है कि प्रधानमंत्री इमरान खान और आर्मी चीफ क़मर जावेद बाजवा के बीच मतभेद काफी गहरे हो चले हैं. मसला पाकिस्तान की इंटेलिजेंस एजेंसी, ISI, के नए DG यानि Director General के नाम के ऐलान का है. जनरल बाजवा चाहते हैं कि Lt. Gen. नदीम अंजुम अब ये ज़िम्मेदारी संभालें, लेकिन वज़ीरे आज़म खान साहब का दिल अभी भी Lt. Gen. फैज़ हमीद पर आया हुआ है.


परेशानी यह कि DG ISI प्रशासनिक तौर पर प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं, लेकिन, कामकाज के लिहाज से उन्हें आर्मी चीफ का हुक्म मानना पड़ता है. पाकिस्तानी आर्मी के मुख्य कमांडरों की बहाली और तबादले का फैसला आर्मी चीफ की ज़िम्मेदारी है, लेकिन DG ISI के नाम का ऐलान PMO यानी वज़ीरे आज़म के दफ्तर से होता है. बात बस यहीं आ कर फंस गई है.

इमरान खान Lt. Gen. फैज़ हमीद को DG ISI ही बनाए रखना चाहते हैं
आमतौर पर पाकिस्तान में आर्मी चीफ का कहा पत्थर की लकीर होता है. और इमरान खान की सरकार तो पहले से ही जनरल बाजवा के एहसानों तले दबी हुई है. लेकिन, इमरान खान के एक क़दम ने आर्मी चीफ बाजवा को सकते में डाल दिया है. माना जाता है कि इमरान खान Lt. Gen. फैज़ हमीद को DG ISI ही बनाए रखना चाहते हैं क्यों कि वही अकेले 3 स्टार जनरल हैं जो इमरान खान की सरकार का टर्म पूरा होते देखना चाहते हैं.

इस्लामाबाद में ख़बर गर्म है कि अपना मक़सद हासिल करने के लिए इमरान खान ने कहा है कि वे DG ISI के उम्मीदवारों का इंटरव्यू लेकर ही इस बहाली का फैसला करेंगे. और ऐसा कैसे मुमकिन हुआ, यह भी अपने आप में एक कहानी है. आम तौर पर आर्मी अपने फैसलों से पाकिस्तान की सिविलियन सरकार को हैरान करती है. इस दफा वज़ीरे आज़म ने Gen. बाजवा को गच्चा दे दिया.

क्या अब एक सिविलियन प्रधानमंत्री फ़ौज के सबसे बड़े जनरल पर भारी पड़ेगा?
इमरान खान ने कैबिनेट डिवीज़न से जारी की जाने वाली 1973 Business of the Government Rules में ख़ामोशी से बदलाव कर मुल्क के डिफेन्स डिवीज़न के बारे में लिए जाने वाले फैसलों को भी अपने हाथ में ले लिया. इसका मतलब यह है कि अब इमरान खान ने बतौर Prime Minister फ़ौज के सभी हिस्सों – आर्मी, नेवी और एयरफोर्स – में कर्नल या आर्म्ड फोर्सेज़ में उससे बराबर से ऊपर के रैंक में अफसरों की बहाली का हक़ अपने हाथ में ले लिया है. किसी सिविलियन वज़ीरे आज़म के लिए इसे एक बड़ा कारनामा माना जाएगा.

जनरल बाजवा अभी इस क़ानून की पड़ताल कर रहे हैं लेकिन फ़ौज और सरकारी हलकों में यह सवाल बार बार पूछा जा रह है कि क्या इमरान सरकार के दिन लदने वाले हैं? 1973 Business of the Government Rules में बदलाव का मतलब समझिये. चूंकि DG ISI का ट्रांसफर एक डिपार्टमेंटल मसला है तो जनरल बाजवा, Lt. Gen. फैज़ हमीद का बा-हक़ ट्रांसफर कर सकते हैं, लेकिन, उन्हें Lt. Gen. नदीम अंजुम को DG ISI बनाने के लिए अब इमरान खान इजाज़त लेनी पड़ेगी. यानि अब एक सिविलियन प्रधानमंत्री फ़ौज के सबसे बड़े जनरल पर भारी पड़ेगा. ग़ौर कीजिये, फ़ौज में फेर बदल का आर्डर Inter Services Public Relations ने 6 अक्टूबर को ही जारी कर दिया था, लेकिन Lt. Gen. नदीम अंजुम के बारे में PMO से नोटिफिकेशन का अभी भी इंतज़ार किया जा रहा है.

क्या इमरान खान की सरकार के दिन लद चुके हैं?
इन हालात में एक और मुश्किल आन खड़ी हुई है. जब तक Lt. Gen. नदीम अंजुम का आर्डर नहीं निकलता, बाकी जनरलों का तबादले भी मुक्कम्मल नहीं हो सकते. पाकिस्तान की आर्मी में ऐसा होता नहीं है कि जनरल साहब की हुक्म उदूली हो. अब पाकिस्तान के सियासतदान का हाल भी जान लीजिये. तीन हफ्ते पहले तक PTI यानि पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी के नेता सोच रहे थे कि चलें इमरान खान को बतौर PM एक और टर्म तो मिलेगा ही, लेकिन अब हालात डावांडोल हो चले हैं.

इसकी वजह नैशनल असेंबली में PTI का बहुमत बहुत ही हल्का होना है, और इन्हें लगातार मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट, पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क़ायद) और ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायन्स के समर्थन की ज़रुरत रहती है. अगर ये मददगार पार्टियां पलट गयीं तो इमरान सरकार गिर जाएगी. फिर PTI के टिकट पर चुनाव जीते बहुत से MNA यानी Member of National Assembly फ़ौज के हामी हैं, अगर इन्हें दोनों में से एक चुनना पड़े, माना जाता है अधिकतर MNA फ़ौज को चुनेंगे. कई इंडिपेंडेंट उम्मीदवार भी PTI के टिकट पर चुनाव जीते थे, अब वे भी हवा का रुख परख रहे होंगे.

पाकिस्तान मुस्लिम लीग भी तमाम हालातों पर नजर बनाए हुए है
फिर सरकार में इमरान खान का प्रदर्शन भी खासा ख़राब रहा है. इकोनॉमी खस्ता हाल है. महगाई बढ़ी हुई है. राजनीतिक ध्रुवीकरण की वजह से नैशनल असेंबली में क़ानून बनाने का काम लगभग बंद हो चुका है क्योंकि सरकार की किसी भी पहल से कोई न कोई पार्टी नाराज़ हो जाती है. तहरीके लब्बैक जैसी दक्षिणपंथी पार्टियां सड़कों पर उतर आती हैं और हिंसा करने लगती हैं. कूटनीति के लिहाज से अमेरिका और अरब मुल्क पाकिस्तान से नाराज़ हैं, चीन अपना माथा पीट रहा है और भारत से सम्बन्ध ऐतिहासिक रूप से इतने ख़राब कभी नहीं रहे जैसे अभी हैं. यानि कुल मिला कर इमरान सरकार के पास दिखलाने जैसा कुछ है नहीं.

और आप जानते ही हैं कि जब मुल्क की सरकार कमज़ोर होने लगती है तो विरोधी पार्टियां जाग जाती हैं. पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) भी हालत पर गहरी नज़र रखे हुए है, कि इमरान की गद्दी हिले और वे फ़ौज से डील पक्की करने की कोशिश करें, क्योंकि अभी के हालात में बिना PML (नवाज़) के समर्थन के कोई सरकार बनाना नामुमकिन न सही लेकिन मुश्किल ज़रूर होगा.


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