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- घुमक्कड़ी का घनत्व
अशोक कुमार: मानव प्राणी सभ्यता के जन्म काल से ही किसी न किसी रूप में घूमने की अभिरुचि से जुड़ा हुआ है। प्राचीन काल से ही इसके स्वरूप और प्रकृति का विश्लेषण और विवेचन दुनिया में भिन्न-भिन्न आयामों में किया गया है। घूमने के अर्थ सह अभिप्राय को पर्यटन, देशाटन और यात्रा के सहचरी भाव से भी युक्त किया गया है।
कभी फाह्यान, ह्वेनसांग, मेगास्थनीज, वास्कोडिगामा जैसे जुझारू लोगों ने अपनी घुमक्कड़ी अभियान में जहां अध्ययन अभिप्राय को प्राथमिकता दी थी, वहीं कुछ ने अपनी सोच में खोज को तरजीह देकर संसार में अपना नाम स्थापित किया था। परिवहन के सीमित संसाधनों के कारण पहले लोग नाव, घुड़सवारी और पैदल यात्रा के माध्यम से घूमने निकलते थे। इसके सहारे उन्हें दीर्घकाल तक यात्राओं के क्रम से जुड़े रहना पड़ता था।
अनवरत पैदल यात्रा से उन्हें शारीरिक थकावट महसूस होती थी, लेकिन अपने संकल्प शक्ति से वे कभी निराश नहीं होते थे और आखिर अपनी मंजिल पाकर ही वे दम लेते थे। ऐसे यात्री अपनी यात्रा के बाद यात्रा वृत्तांत से देश-दुनिया को परिचित कराकर कुछ ऐसी दुर्लभ सूचनाओं का चित्रण करते थे जो जिज्ञासुओं के लिए रोचक और ज्ञानवर्द्धन का प्रसंग हुआ करता था।
भारतीय जीवन परिवेश में देखें तो पहले घूमने का तात्पर्य वृद्धावस्था में तीर्थाटन के स्वरूप से जुड़ाव रखे हुए था। जीवन की सांध्य बेला शुरू होते ही लोग अपनी इच्छानुसार पांच-दस के समूह में तीर्थ दर्शन का कार्यक्रम बनाकर निकल पड़ते थे। 1960 के दशक में बूढ़े-पुरनिया कहा करते थे- 'सब तीर्थ बार-बार, गंगा सागर एक बार'।
जब दादी इस तीर्थ के लिए घर से अपने समूह में निकल रहीं थीं, तब घर के हर सदस्य के चेहरे पर एक उदासी के भाव टपक रहे थे। वह दृश्य मनोवैज्ञानिक रूप से अंतर्मन को चिंतित कर रहा था कि कहीं दादी की गंगा सागर की दुरूह यात्रा उनके जीवन की अंतिम यात्रा तो नहीं होगी। पंद्रह दिनों के बाद दादी की वापसी से घर में उत्सवी माहौल बन गया था।
वर्तमान समय में घुमक्कड़ी को बाजारवाद ने जबसे अपने आगोश में लिया है, तब से इसके आकार में अप्रत्याशित विस्तार भी हुआ है। असंख्य निजी पर्यटन संस्थाओं ने देश दुनिया में 'पर्यटन पैकेज' का वृहद जाल बिछा दिया है। ऐसी संस्थाओं के आपसी प्रतियोगिता के कारण घूमने वालों की राह आसान हुई है।
आंकड़ों के आईने बता रहे हैं कि दुनिया के कई देशों का आर्थिक आधार और स्रोत पर्यटन से प्राप्त राजस्व है। रिसस, थाईलैंड, भूटान, श्रीलंका, इंडोनेशिया जैसे प्रमुख देश इस श्रेणी में अंकित किए गए हैं। यों पूरी दुनिया में पर्यटन राजस्व के रूप में पर्यटकों से लाखों हजार करोड़ रुपए प्रति वर्ष विभिन्न देशों को प्राप्त हो रहे हैं।
कई देशों के भ्रमण अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि अब वरिष्ठ नागरिक, जिसमें अधिकतर अकेलेपन के जीवन जीने को विवश हैं, वे ज्यादा घूमकर अपनी जीवंतता बनाए रखना चाहते हैं। इस क्षेत्र में तो अब हनीमून पैकेज से लेकर चारों धाम की यात्रा के कई कार्यक्रम मौसम के अनुसार घोषित हैं। एकल यात्रा के प्रचलन में भी काफी वृद्धि हुई है, जिसमें युवा पीढ़ी ज्यादा प्रवृत्त हो रही हैं।
देश की घुमक्कड़ी अभियान में हमारे प्रख्यात साहित्यकार दिवंगत राहुल सांस्कृत्यान का नाम सबसे ऊपर की पंक्ति में अंकित है। तिब्बत के दुर्गम क्षेत्रों की कठोर यात्रा से उन्होंने बौद्ध साहित्य के संग्रहण की जो मिशाल पेश की थी, वह प्रेरक और स्तुत्य रही है।
घुमक्कड़ी क्रिया से इतना तो प्रमाणित है कि थोड़े दिन के लिए ही सही, यह हमें एक ही प्रकार की दैनंदिनी की चारदिवारी से निकालकर तरोताजा करती है, जबकि जब हम घूमते हैं, नए स्थलों को देखते हैं और उसके अतीत में नजर दौड़ाते हैं तो हमें नूतन और मनभावन जानकारियां भी मिल जाती हैं।
इससे हमारी बौद्धिक खुराक और तीव्र होकर आगे की घुमक्कड़ी के लिए जमीन भी तैयार करती है। आवश्यकता है कि हम अपनी बजट सीमा और समय को देखते हुए साल में एकबार जरूर घूमने का कार्यक्रम बनाएं।
अक्सर यह भी देखा गया है कि समाज में वैसे लोग भी बहुत हैं जिनके पास घूमने का समय और संसाधन तो है, लेकिन इच्छाशक्ति के अभाव में वे इस उमंगित और उल्लसित करने वाले घुमक्कड़ी विधा से वंचित हो जाते हैं।
निजी और एकल जीवन की सिमटती परिधि से व्यक्ति को आज निकलकर बाहरी दुनिया देखने में व्याप्त संकोच और दुविधा को दूर भगाने की जरूरत है। विविध कारणों से अगर हम शुद्ध घुमक्कड़ नहीं बन सकते तो इतना करना सहज ही है कि बिना ज्यादा सोचे-विचारे हम अपने वैसे रिश्तेदारों के घर दो-चार दिनों के लिए अवश्य जाएं।
शायद यह न्यूनतम प्रयोग भविष्य की घुमक्कड़ी की नींव तैयार कर सकेगा। पर्यटन के पन्नों ने इतना तो प्रमाणित कर ही दिया है कि घूमने वाले ज्यादा तरल, सरल होकर सदैव ऊर्जा से लैस रहा करते हैं। किसी ने सही ही कहा है- 'सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां'।