- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- मिठड़ी, मदरा, तेलिए...

x
हिंदी फिल्म 'शालीमार' के एक गीत 'मेरा प्यार शालीमार' के बोलों को, मैं आज तक समझ नहीं पाया था कि यह 'मेरा प्यार शालीमार, तेरा प्यार शालीमार' क्या होता है। लेकिन आजकल मैं नेता जी के प्यार को समझने की कोशिश कर रहा हूँ। चुनाव नज़दीक हैं। पाँच साल तक देश की राजधानी में ट्विटर-ट्विटर और फेसबुक खेलने वाले नेता जी को आजकल चुनावी प्रदेश से घना प्यार हो रहा है। शायद उनका प्यार शालीमार हो उठा है। चिंता में रह-रह कर पेट में मरोड़ उठ रहे हैं। नेता जी को एक-एक वोटर की याद सता रही है। उनकी गाय, भैंसों और कुत्तों की याद भी सता रही है। सो, मोबाइल पर सबसे उनके पालतुओं के हाल-चाल पूछते हैं। उन्हें अच्छी तरह याद है कि रुल्दू राम के भैंसे का नाम क्रम्प है और सांड का नाम यमो। बस! उन्हें नहीं याद रहा तो चुनावों तक प्रदेश में जाना। पर नेता जी अब बेकऱार हैं, उनकी आँखों में इन्तज़ार है। अपने वोटर्स का, उनके समर्थन का। लेकिन वोटर्स बेकऱार हैं या नहीं, उनकी आँखों में इन्तज़ार है या नहीं। नेता जी को अभी तक पता नहीं चल पा रहा। इसीलिए अब वह हफ़्ते में तीन-तीन बार प्रदेश के दौरे कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि नेता जी ने वोटर्स को भुला दिया था। भले जीत के नशे में नेता जी सो गए थे, पर उन्होंने पूरे पैसे मिलते ही हर अभ्यर्थी को नौकरी दिलवाई, कर्मचारी को मनचाही पोस्टिंग दी। कमीशन मिलने पर ठेके और एनओसी दिलवाए, उद्योग लगवाए, जंगल कटान और खनन के पट्टे दिए। जनता पर ऐसे तमाम तरह के एहसानों के अलावा नेता जी हर गली-कूचे, चौराहे, मोड़, बस स्टैंड और जहाँ भी होर्डिंग लगाने की जगह मिली, मुस्कुराते हुए, हाथ जोड़ कर, जनता को प्रदेश में हो रहे विकास के बारे में नए-नए आँकड़े देते रहे। यह बात और है कि लोगों को विकास जब भी मिला, फटेहाल ही मिला। पर नेता जी अब लोगों से दूर नहीं। चुनावों से पहले पूरे दल-बल के साथ प्रदेश भर में घूम रहे हैं। अपनी सरकार बनने से पहले वह पूरे प्रदेश भर में घूमा करते थे। लोगों को समझाते थे कि दूसरे दल की सरकार कुछ नहीं कर रही। बस अपने चहेतों को नौकरियाँ, ठेके, खनन के पट्टे, उद्योगों के लिए एनओसी और ज़मीन और मनचाही पोस्टिंग दे रही है। भ्रष्टाचार चरम पर है। उनके आते ही भ्रष्टाचार ज़मीन पर नाक रगडऩे लगेगा।
खाद्य् वस्तुओं के दाम लोग ख़ुद तय करेंगे। पेट्रोल पानी के भाव बिकेगा और एलपीजी हवा की तरह उपलब्ध होगी। अब नेता जी प्रदेश में आयोजित जनसभाओं और रैलियों में हर जि़ला के हिसाब से परिधानों और टोपियों में सज्जित होकर कभी टमक बजाते हैं तो कभी नरसिंहा या शहनाई। उन्हीं की बोली में व्यंजनों और परिधानों के बारे में बताते हैं, 'मिज्जों एत्थू दी धाम्मा दी बड़ी याद औंदी। मेरिया जीभ्भा पर आलतिएं भी मिठड़ी, मदरा, तेलिए माह, खट्टा, खट्टा-मि_ा पेठा कने रेहड़ू दा स्वाद तैरदा रैंहदा। जिआँ मैं किन्नौरी, कुल्लू कने शिमले दी टोपी-कोट, चम्बे दा गरड़ू, कुल्लुए दी शाल कने कांगड़े दे पट्टू आलतिएं भी नी छड्डओ। तियाँ थुआँ भी मिज्जों मत छड़ दे। कने सारे मिली करी मिज्जों वोट पान्नओ।' इधर, लोग प्रदेश के प्रति उनके प्रेम और लगाव को देख कर बाग-बाग हो रहे हैं। पाँच साल तक प्रदेश में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और विकास के गंदले गड्ढों में नहाने के बावजूद लोग ईमानदार उम्मीदवारों को चुनने की बजाय ऐसी सरकार चाह रहे हैं, जो संगठित हो और समूह में उनका शिकार करे। पर शायद लोग लकड़बग्घों के बारे में नहीं जानते कि उनका पेट अंधा कुआं होता है। ये कितना भी खाएं, इनका पेट कभी नहीं भरता। लकड़बग्घे अगर झुंड में हों तो उन शेरों से भी नहीं डरते, जिन्हें धरती का सबसे ख़तरनाक जानवर माना जाता है। लेकिन पता नहीं प्रजातंत्र के शेर अर्थात जनता स्वयं को लकड़बग्घों को सौंप कर कैसे सुरक्षित महसूस करती है।
पी. ए. सिद्धार्थ
लेखक ऋषिकेश से हैं
By: divyahimachal

Rani Sahu
Next Story