सम्पादकीय

सू की को सजा

Subhi
8 Dec 2021 2:12 AM GMT
सू की को सजा
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म्यांमार की अपदस्थ नेता आंग सान सू की को सेना में असंतोष भड़काने और कोरोना के कई नियमों का पालन न करने काे लेकर चार साल की कैद सुनाई गई है।

आदित्य नारायण चोपड़ा: म्यांमार की अपदस्थ नेता आंग सान सू की को सेना में असंतोष भड़काने और कोरोना के कई नियमों का पालन न करने काे लेकर चार साल की कैद सुनाई गई है। वैसे नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की पहले से ही नजरबंद हैं और अब उन्हें सजा दे दी गई है। खास बात यह है कि सू की ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया है और अधिकतर समय घर में कैद होकर ही गुजारा है। सारी उम्र लोकतंत्र और मान​वाधिकारों से जूझने वाली सू की को सजा सुनाया जाना एक स्पष्ट साजिश की ओर संकेत कर रहा है। सेना ने ही यह साजिश रची है। देश का संविधान किसी को भी दोषी ठहराकर जेल भेजे जाने के बाद उच्च पद हासिल करने या जनप्रति​​निधि बनने से रोकता है। म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के दस महीने बाद भी सैन्य शासन का मजबूती से विरोध जारी है और इस फैसले से तनाव और भी बढ़ गया है। सू की के खिलाफ सेना के विरुद्ध लोगों को भड़काने का मामला, उनकी पार्टी के फेसबुक पेज पर पोस्ट किए गए बयान से जुड़ा हुआ है, जबकि उन्हें और पार्टी के अन्य नेताओं को सेना ने पहले ही हिरासत में ले लिया था। कोरोना वायरस प्रतिबंध उल्लंघन का आरोप पिछले साल नवम्बर में चुनाव से पहले एक कैंपेन में उनकी मौजूदगी से जुड़ा है। चुनाव में सू की की पार्टी ने भारी जीत हासिल की थी, जबकि सेना की सहयोगी पार्टी चुनाव में कई सीटें हार गई थी, उसने बड़े पैमाने पर मतदान में धोखाधड़ी का आरोप लगाया था। स्वतंत्र चुनाव पर्यवेक्षकों ने किसी भी बड़ी अनियमितता की बात नहीं कही थी, फिर भी सेना ने वहां तख्तापलट कर दिया था।यद्यपि सू की को सजा सुनाए जाने के बाद वहां के लोगों में काफी अधिक आक्रोश है। मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की पूर्व विशेष अधिकारी यांगी ली ने आरोपों के साथ-साथ अदालत के फैसले को बकवास बताया है। उन्होंने कहा कि देश में कोई भी मुकदमा गलत है क्योकि न्यायपालिका सैन्य स्थापित सरकार के काबू में है। सैन्य तख्तापलट के बाद म्यांमार में हालात बहुत बदतर होते जा रहे हैं। म्यांमार के सै​िनक शासकों का लोग विरोध कर रहे हैं और हथियारबंद होकर ढंग से देश के अलग-अलग इलाकों में सेना को चुनौती दे रहे हैं। सेना भी हथियारबंद विरोधियों को गोली मार कर हत्याएं कर रही है। सवाल यह भी है कि अगर किसी देश में विरोध जताने की लोकतांत्रिक आजादी न हो तो फिर लोगों के पास क्या रास्ता बचता है। म्यांमार में अत्याचार और दमन की भयानक घटनाएं हो रही हैं। देश के लोगों ने पहले शांतिपूर्ण ढंग से विरोध जताया लेकिन सैनिक शासकों ने निहत्थे लोगों पर हिंसा की सीमाएं पार कर दीं। सेना के दमन के खिलाफ नस्ली समूहों ने आपस में गठजोड़ किया, जो पहले भी संघर्षरत रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय वहां की सेना को संयम बरतने की अपील कर रहे हैं लेकिन सेना के शासक कोई ध्यान नहीं दे रहे। चारों तरफ अराजकता का माहौल है। जातीय सशस्त्र संगठनों से जुड़े सीमावर्ती क्षेत्रों में असंतोष और बढ़ती लड़ाई पर क्रूर कार्रवाई हुई है। बड़ी संख्या में लोग मारे गए हैं। अब तक यह संख्या एक हजार के करीब बताई जाती है। म्यांमार में आर्थिक हालात बेकाबू हो चुके हैं। एक तरफ कोरोना का वायरस कहर बरपा रहा है तो दूसरी तरफ म्यांमार आर्थिक संकट से ​िघर चुका है। म्यांमार में फिलहाल कैश काफी कम हो चुका है। कैश निकालने के लिए स्थानीय लोगों को सुबह तीन बजे से ही एटीएम के पास लाइन में खड़ा होना पड़ता है। लोगों के नकदी निकालने की सीमा 9 हजार रुपए प्रतिदिन कर दी गई है। कैश की कमी के कारण लोग खरीदारी नहीं कर रहे। व्यापारी भी अपने कामगारों और कर्जदाताओं का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। म्यांमार की करैंसी क्याट का मूल्य भी डालर के ​मुकाबले काफी गिरा हुआ है। संपादकीय :अयोध्या से लौटे बुजुर्ग बोले - मोदी जी और केजरीवाल को आशीर्वादभारत-रूस की अटूट दोस्तीनागालैंड में सैनिक गफलतऑन लाइन गेमिंग और गैम्बलिंगपुतिन की भारत यात्राराष्ट्रीय विकल्प की राजनीतिम्यांमार की स्थितियां अगर जल्द नहीं सुधरी तो हालात भयावह हो सकते हैं। यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने वहां के सैन्य प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं। चीन तो म्यांमार के मामले में कुछ बोलेगा नहीं क्योंकि सैन्य शासकों के चीन से काफी करीबी रिश्ते हैं। जहां तक भारत का संबंध है, भारत के लिए वहां के हालात काफी चिंताजनक हैं। भारत के पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में म्यांमार से शरणार्थी आ रहे हैं लेकिन मिजोरम तटस्थ नहीं रह सकता। कोई भी राज्य मानवीय संकट को नजरंदाज नहीं कर सकता। चीन जानता है कि म्यांमार में स्थिरता रहेगी तो उसका बार्डर एंड रोड प्रोजैक्ट कभी पूरा नहीं होगा। चीन मलक्का के रास्ते भारत आना नहीं चाहता क्योंकि उसकी नजर रंगून तक पहुंचने की है। भारत ​फिलहाल म्यांमार के मामले में बच-बच कर चल रहा है। इस समय भारत को चाहिए कि वह सैन्य तानाशाहों पर दबाव डाले और कूटनीतिक अस्त्रों का प्रयोग करे। आम नागरिकों का कल्याण इसी में है कि वहां लोकतंत्र की बहाली हो। वैश्विक शक्तियों को चाहिए कि वह म्यांमार के सैनिक तानाशाहों के ​खिलाफ कड़ा रुख अपनाए। वहां की सेना पलभर में हथियार डाल देगी और लोग राहत की जिन्दगी जी सकेंगे।

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