सम्पादकीय

जंगलों को आग से बचाने के सतत उपाय

Rani Sahu
3 May 2022 7:12 PM GMT
जंगलों को आग से बचाने के सतत उपाय
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विश्व में गर्मियों में कई जंगलों में भीषण आग लगती है और उससे न केवल मीलों फैले जंगल तबाह हो जाते हैं, अपितु जंगलों में रहने वाले पशु-पक्षी और जीव-जंतु भी अपनी जान गंवा देते हैं। 2019-20 में ऑस्ट्रेलिया में जंगलों में आग की घटना को कौन भूल सकता है? 18 मिलियन हेक्टेयर जंगल जल कर राख हो गए थे, कितने ही जंगली जानवरों ने आग की लपटों में खुद को असहाय भस्म होने के लिए सौंप दिया था। इस आग को ब्लैक समर बुश फायर का नाम दिया गया था। हिमाचल तथा उत्तराखंड के जंगलों में गर्मियों में अधिकतम आग लगने की घटनाएं होती हैं। चीड़, देवदार, रई के पौधे तेजी से आग पकड़ते हैं। सूखी घास, चीड़ की सूखी पत्तियां सूरज की तेज़ किरणों से आग पकड़ सकती हैं। आग धीरे-धीरे सुलगती है और देखते-देखते मीलों फैले जंगल राख होने लगते हैं। यही नहीं, जंगल में सभी प्राणी अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। उन्हें बचाना बहुत कठिन होता है। तेजी से फैल रही आग को काबू में करना बहुत ही जटिल कार्य होता है।

गत 27 अप्रैल को करसोग के जंगलों में लगी भीषण आग ने यह बात स्पष्ट कर दी है कि गर्मियों में जंगलों की आग को रोकना सबसे अहम कार्य होना चाहिए। ग्राम पंचायत के प्रधान ने इस बात की पुष्टि की। 300 बीघा जमीन पर जंगल और जंगली जीव-जंतु इस आग की चपेट में हैं। जंगलों में आग न लगे, इसके लिए नए सिरे से सोचना होगा। चीड़-देवदार के पेड़ों की जगह बड़े चौड़े पत्तों वाले पेड़ों के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना होगा। सतत विकास लक्ष्यों को अपनाने का फैसला संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन में 2015 में एक बड़ी बैठक में लिया गया था जिसमें 193 देशों न भाग लिया था। इस बैठक में 15 साल के लिए '17 लक्ष्य तय किए गए थे और यह लक्ष्य 2030 तक पूरे हो जाने चाहिएं। सतत विकास के 15वें लक्ष्य पर अगर हम ध्यान दें तो यह लक्ष्य भूमि पर जीवन की बात करता है। जंगलों के संरक्षण की बात करता है। इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए मौजूदा जंगलों और नए विकसित किए जा रहे जंगलों के बारे में सोचना होगा। गर्मियों में जंगलों में अधिकतर पत्ते और घास सूख जाती है। चीड़ की सुईनुमा पत्तियां जल्दी आग पकड़ती हैं क्योंकि चीड़ के पेड़ से रेजिऩ भी मिलता है जो बहुत ज्वलनशील होता है।
सूखी घास, यह पत्तियां और तेज़ चलती हवा आग को तेज़ी से फैलाने में मदद करते हैं। अधिकतर आग, जो लोग जंगलों पर चारे के लिए निर्भर हैं वे भी लगा देते हैं ताकि सूखी घास-फूस जल जाए और बरसात के बाद मवेशियों के चारे के लिए नई घास मिले। जंगलों की आग या तो सतह पर होती है जो तेज़ी से नहीं फैलती जिसे जल्दी रोका जा सकता है, या जमीन के नीचे जो ज्यादा दूर तक नहीं जाती, या सतह से ऊपर होती है जो तेजी से फैल सकती है, और कई बार चीड़ और देवदार के पेड़ों के शीर्ष पर लगती है जो बहुत तेजी से नीचे की ओर फैलती है जिसे काबू करना बहुत मुश्किल होता है। जंगलों में लगी हुई आग कई बार बहुत तेज़ हवा के कारण तबाही का रूप धारण कर लेती है। देश में लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर जंगल हर साल आग से प्रभावित होते हैं। देश में जंगलों की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वे न केवल पानी की प्रबंधता करते हैं, पर्यावरण को प्राकृतिक रूप से वातानुकूलित भी करते हैं। बहुत सारे देशों में लोग पारंपरिक ईमारती लकड़ी की जगह अब कृत्रिम लकड़ी का प्रयोग करने लगे हैं या रीसाइकल्ड वुड का प्रयोग किया जा रहा है। देश में 6 साल पहले नई वन नीति पर काम शुरू किया गया था। अभी तक हम 1988 में बनाई गई वन नीति के अनुसार ही काम कर रहे थे। लेकिन नई वन नीति अब तक बन कर तैयार नहीं हुई है। अगर तैयार हो भी गई है तो इसे सार्वजनिक नहीं किया गया है। देश के जंगलों को बहुत गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। वन प्रबंधन, वनों का अवैध कटान रोकना, वनरोपण, निजी व सरकारी क्षेत्र की साझेदारी, वनों के संरक्षण और विकास के लिए वनवासी लोगों को जंगलों के बारे में और जागरूक करना, वन भूमि पर अतिक्रमण रोकना। वनवासी लोगों को इस तरह से प्रशिक्षित करना कि वे जंगलों में रहते हुए उनकी सुरक्षा का जिम्मा भी लें और वन विभाग के कर्मचारियों के संपर्क में भी रहें। जंगलों से लकड़ी की तस्करी को रोकने के लिए सख्त से सख्त कानून बनाए जाएं। जंगलों में मवेशियों को चराने का एक क्षेत्र तय किया जाए। जंगलों से चीड़ व देवदार की सूखी टूटी टहनियों और पत्तियों को इकट्ठा कर उनसे सामान बनाया जाए। और जंगलों से सटे गांव में जो जंगल की परिधि में आते हैं, वहां सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाए जाएं और उन्हें समय-समय पर जागरूक किया जाए।
हिमाचल और उत्तराखंड में हर साल जंगलों में भीषण आग लगती है और उस आग पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि देश के पास ऐसे साधनों की कमी है जिससे आग पर तीव्रता से काबू पाया जा सके। हमारी भौगोलिक स्थितियां भी कई बार मददगार साबित नहीं होती। जंगलों में चीड़ और देवदार के पेड़ों पर निर्भरता कम करनी होगी। जंगलों के आसपास अवैध निर्माण तथा संदिग्ध लोगों की आवाजाही को रोकना होगा। तोश, शीशम, युक्लिप्टस, चिनार, खिडक, सागवान आदि पौधों को भी महत्त्व देना होगा। देश के कुल क्षेत्रफल का 33 प्रतिशत भाग जंगल है। सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में यह भी कहा गया कि जंगलों का घनत्व और भी बढ़ा है। लेकिन आग से जंगलों में होने वाली क्षति पर कोई विस्तृत जानकारी नहीं है। जंगलों में हर साल लगने वाली आग को रोकना कठिन है, लेकिन असंभव नहीं है, अगर लोगों का सहयोग और जागरूकता तथा अवैध कटान और तस्करी पर काबू पा लिया जाए तो। हिमाचल और उत्तराखंड में हेलिकाप्टर्स से पानी की बौछारों से आग पर काबू पाया जा सकता है। कार्बन डाइऑक्साइड से भी आग पर काबू पाया जा सकता है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर तरल नाइट्रोजऩ को पहले आग लगे जंगल में स्प्रे किया जाए, उसके बाद उस पर पानी फेंका जाए तो भी आग पर काबू पाया जा सकता है। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण होगा कि आग लगने के कारणों की तह तक जाना, उन्हें गंभीरता से लेना। उनको रोकने के विकल्प ढूंढना और सतर्क रहना ताकि जंगलों में प्राकृतिक रूप से या जानबूझ कर लगाई आग को रोका जा सके। वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को अतिरिक्त अधिकार देना, ताकि वे जंगल की सुरक्षा के लिए आपात स्थिति में तुरंत निर्णय ले सकें।
रमेश पठानिया
स्वतंत्र लेखक
Rani Sahu

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