- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- आश्चर्य तो तब होता जब...
x
हे पत्रकार बंधुओं, चैनल प्राणियों, सोशल मीडिया के धुरंधर महारथियों कभी तो अपने अकिल का अलमारी खोलिए, बुद्धि का बटलोही खंगालिये , ज्ञान की गगरी छलकाइए
Prakash sahay
हे पत्रकार बंधुओं, चैनल प्राणियों, सोशल मीडिया के धुरंधर महारथियों कभी तो अपने अकिल का अलमारी खोलिए, बुद्धि का बटलोही खंगालिये , ज्ञान की गगरी छलकाइए. इधर कुछ दिनों से क्यों हैरान, हकलान हैं आप सब. चीख चिल्ला कर क्यों बता रहे कि मजदूर की बेटी,चूड़ी बेचने वाले का बेटा, दर्जी का, आंगनबाड़ी सेविका का, मास्टर जी का,गरीब किसान का,ऑटो चलाने वाले का,चपरासी का, क्लर्क का ,गरीब निर्धन परिवार का बेटा /बेटी आईएएस बन गये, अफसर बन गये. आप लोग थोड़ा सोचकर देखिये, यह कोई अचरज की बात थोड़े ही है.
आश्चर्य तो तब होता जब अडानी अंबानी या जिंदल सरीखे अमीर का, किसी बड़े अधिकारी, जज, नेता,मंत्री, बड़े बिजनेसमैन , नामी डॉक्टर-इंजीनियर के बच्चे यह मुकाम हासिल करते. लेकिन ऐसा देखने सुनने को बहुत कम ही मिलता है. सच तो यह है कि गरीबी और अभाव में पले पढ़े लिखे बच्चों में कुछ खास करने का जुनून होता है. मुश्किलों से संघर्ष कर ही धैर्य, साहस, हौसला, मेहनत का जो सबक मिलता है, वह प्रेरणा में तब्दील हो जाती है.
दुष्यंत का एक शेर है- " चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छाप रह गयी पांवों की,सोचो कितना बोझ उठा कर मैं इन राहों से गुजरा! "सिविल सर्विस में कामयाबी पाना शिखर पर चट्टानों को रौंद कर पहुंचने के समान है.यह बोझ उठा कर लक्ष्य की ओर बढ़ने का हौसला हिम्मत और ताकत सिर्फ उन्हीं बच्चों में होती है जो गरीबी और अभाव से संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते हैं.90 फीसदी अमीर या संपन्न परिवार के बच्चे ऐशो आराम के अभ्यस्त बन कर " सॉफ्ट बेली " बन जाते हैं. उनमें कुछ कर गुजरने का जुनून नहीं होता. संस्कृत का श्लोक भी यही कहता है कि " धनार्थी कुतो विद्या विद्यार्थी कुतो धनं.
"इस मुद्दे पर मैंने साल 2014 में एक रिपोर्ट लिखी थी. जब मैं नैंसी (बेटी) को आईएएस ट्रेनिंग के लिए मसूरी के एकेडमी में छोड़ने गया था.जुलाई या अगस्त का महीना था. दोपहर दो बजे के करीब हम एकेडमी के ऑफिस में थे. अपने आगमन की रिपोर्ट करने के लिए, पंजीयन के बाद हॉस्टल का अलॉटमेंट होना था.करीब सत्तर या अस्सी बच्चों के सामान वहीं ऑफिस के सामने रखे थे.
बच्चों के सामान देख कर ही एक झटके में पता चल गया कि नब्बे फीसदी बच्चे निम्न या मध्यम वर्ग से थे.पुराने सूटकेस, टीन के बक्से,बच्चों ने जो कपड़े पहने थे वे एकदम साधारण थे.मुझे आज भी याद है कि उस दिन एकेडमी का मेस बंद था. हल्की बारिश भी हो रही थी. नैंसी की बातचीत अपने नये साथियों से हो रही थी.संयोग देखिए उनमें से भोर सिंह उपायुक्त गोड्डा,कुलदीप उपायुक्त बोकारो, सुशांत उपायुक्त गुमला, फैज उपायुक्त जामताड़ा,कुंदन छत्तीसगढ़ शामिल थे.
मैंने उन सबको अपनी गाड़ी में बैठा कर होटल ले आया जहां मैं ठहरा था. हमलोगों ने साथ खाना खाया.इनमें से सब के सब निम्न या मध्यम वर्ग ( इनकम ) से आते हैं.मेरी जानकारी में सिर्फ एक लड़की थी जो झारखंड के एक पूर्व डीजीपी की बेटी थी.मैंने इस घटना का जिक्र इसलिए किया कि 90 फीसदी गरीब अभावग्रस्त परिवार के बच्चे ही कामयाबी का शिखर चूमते हैं. बचपन से बेबी बाबा बन कर मॉल क्लब और आउटिंग के दीवाने बच्चों के पांवों की छाप चट्टानों पर नहीं उभरती.
शास्त्री जी, डाक्टर राजेंद्र प्रसाद, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, अब्दुल कलाम जी और ऐसे कई गुदड़ी के लालों से हम सब परिचित हैं. सब की पृष्ठभूमि में अभाव, गरीबी और संघर्ष थे. तपकर ही सोना चमकता है. यहां तक कि प्राचीन काल में राजकुमारों को गुरुकुल जाकर आश्रम में सभी कार्य करने होते थे. इसलिए ऐसी खबर पर आश्चर्य कैसा. चुनौतियों की मंजिल बड़ी चुनौती है.
सोर्स- Lagatar News
Rani Sahu
Next Story