सम्पादकीय

फालतू की याचिका: हाई कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा परियोजना के निर्माण कार्य पर रोक की मांग ठुकराई, ठोका एक लाख का जुर्माना

Triveni
1 Jun 2021 2:24 AM GMT
फालतू की याचिका: हाई कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा परियोजना के निर्माण कार्य पर रोक की मांग ठुकराई, ठोका एक लाख का जुर्माना
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इससे बेहतर और कुछ नहीं कि दिल्ली हाई कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा परियोजना के निर्माण कार्य पर रोक लगाने की मांग करने वाली फालतू की याचिका को न केवल खारिज कर दिया, बल्कि याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।

भूपेंद्र सिंह |इससे बेहतर और कुछ नहीं कि दिल्ली हाई कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा परियोजना के निर्माण कार्य पर रोक लगाने की मांग करने वाली फालतू की याचिका को न केवल खारिज कर दिया, बल्कि याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह हर लिहाज से एक शरारत भरी याचिका थी और इसका मकसद प्रचार पाना, लोगों और यहां तक कि न्यायपालिका को गुमराह कर यह माहौल बनाना था कि इस परियोजना की कोई आवश्यकता नहीं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस परियोजना को हरी झंडी दिखा चुका था, लेकिन फुरसती किस्म के याचिकाबाज तब भी नहीं माने। वे दिल्ली हाई कोर्ट जा पहुंचे। वहां उनकी ओर से इस तरह की वाहियात दलीलें दी गई कि सेंट्रल विस्टा तो नाजियों के यातना केंद्रों जैसा है। यह बकवास तब की जा रही थी, जब ऐसी सूचना दूर-दूर तक नहीं थी कि इस परियोजना के निर्माण कार्य में लगे मजदूरों की अनदेखी हो रही है या फिर उनके बीच कोरोना संक्रमण फैल रहा है। एक तरह से झूठ के पैर लगाने का काम बड़ी बेशर्मी के साथ किया जा रहा था।

ऐसा नहीं है कि दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले ही सेंट्रल विस्टा परियोजना को लेकर दूषित मानसिकता से ग्रस्त थे। कुछ ऐसी ही मानसिकता का परिचय कई विपक्षी दल भी दे रहे थे। इस पर हैरानी नहीं कि इनमें कांग्रेस सबसे आगे थी। जहां राहुल गांधी इस परियोजना को अनावश्यक बता रहे थे, वहीं उनके साथी सेंट्रल विस्टा को बदनाम करने के लिए उसे मोदी का महल करार दे रहे थे। यह दुष्प्रचार तब किया जा रहा था, जब फिलहाल नए प्रधानमंत्री आवास का निर्माण ही नहीं हो रहा था। दिल्ली हाई कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा परियोजना को राष्ट्रीय महत्व का बताकर केवल याचिकाबाजों ही नहीं, कांग्रेसी नेताओं और खासकर राहुल गांधी के मुंह पर भी एक तरह से तमाचा मारने के साथ यह रेखांकित किया कि वह दुष्प्रचार की राजनीति करने में लगे हुए थे। समझना कठिन है कि जब केंद्र सरकार दुष्प्रचार की इस राजनीति के मकसद को भांप रही थी, तब फिर उसने समय रहते उस झूठ को बेनकाब क्यों नहीं किया, जो विपक्षी दलों समेत मीडिया के एक हिस्से की ओर से किए जाने के साथ यह प्रतीति कराई जा रही थी कि कोरोना से लड़ाई में खर्च होने वाला पैसा सेंट्रल विस्टा में खपाया जा रहा है। कम से कम अब तो केंद्र सरकार को यह समझना चाहिए कि यदि दुष्प्रचार की राजनीति को समय रहते सटीक जवाब नहीं दिया जाता तो शरारती तत्वों को बल ही मिलता है। न्यायपालिका को भी यह समझ आना चाहिए कि ऐसे तत्व उसका वक्त ही जाया करते हैं।


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