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आदित्य नारायण चोपड़ा; देश में आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए गृहमंत्री अमित शाह ने देश भर में पीएफआई (पीपल्स फ्रंट ऑफ इंडिया) के ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की है। राष्ट्रीय जांच एजैंसी (एनआईए) ने इस संगठन के खिलाफ पुख्ता सबूतों के आधार पर कार्रवाई की। पिछले कई वर्षों से इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जा रही थी। दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश और केरल तक हिंसा में पीएफआई को लेकर सनसनीखेज खुलासे होते रहे हैं। अब गृह मंत्रालय ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर ली है। पीएफआई को कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन सिमी का ही बदला हुआ रूप माना जाता है। क्योंकि इस संगठन के कुछ सदस्य पहले सिमी के सक्रिय कार्यकर्ता रह चुके हैं। 2006 में जब सिमी पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो इसके सदस्य पीएफआई में आ गए। पीएफआई का इतिहास जानें तो यह केरल से संचालित होने वाला एक कट्टर इस्लामिक संगठन है। 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस होने के बाद केरल कट्टर इस्लामिक संगठनों का पनाहगार बन गया। इसी दौर में वहां नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट बना था। 2006 में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट का विलय पोपुलर फ्रंट आफ इंडिया में हो गया। केरल में पीएफआई काफी मजबूत स्थिति में आ गया था। इसके बाद इसने अपनी जड़ें पूरे देश में फैला लीं। एनआईए के मुताबिक 23 राज्यों में पीएफआई की पैठ बन चुकी है। केरल और कर्नाटक में भी इनके गहरे राजनीतिक सम्पर्क हैं। कहा तो यह जाता है कि वह मुस्लिम समुदाय की भलाई के लिए काम करते हैं और उनके हक और उनकी मांगों के लिए आवाज बुलंद करते हैं, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। एनआईए की छापेमारी, इसके एक नेता की गिरफ्तारी और उसके इस कबूलनामे के बाद की गई। जिसमें उसने स्वीकार किया कि संगठन ट्रेनिंग कैम्प चलाकर मुस्लिम युवाओं को हथियार चलाने की ट्रेिनंग देता है। एनआईए की रिपोर्ट के अनुसार यह संगठन कथित लव जिहाद की घटनाओं, जबरन धर्म परिवर्तन, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में हिंसक विरोध प्रदर्शनों में अपनी भूमिका, मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाने, मनीलांड्रिंग और प्रतिबंिधत समूहों से सम्पर्क को लेकर जांच एजैंसियों के रडार में था। पीएफआई को खाड़ी देशों में रह रहे उसके हमदर्दों और ज्यादातर भारतीयों से लगातार धन प्राप्त हो रहा है। मैं पाठकों को याद दिलाना चाहता हूं कि 2019 में पंजाब केसरी दिल्ली ने पीएफआई पर विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी। भारतीय खुफिया एजैंसियों ने मई 19 महीने में पीएफआई पर छापे मारे थे। उन्हें संदेह था कि 21 अप्रैल को ईस्टर के मौके पर श्रीलंका में हुए बम ब्लास्ट के मास्टर माइंड का ब्रेन वाश किया था। श्रीलंका के बम धमाकों में 250 लोगों की मौत हो गई थी। इस बात का खुलासा बहुत पहले ही हो चुका है कि इसके सदस्य आईएसआईएस में शामिल होने सीरिया और ईरान भी गए थे। जिन्हें केरल से कुछ मदरसा टाइप स्कूलों में जिहाद के बारे में पढ़ाया गया था। 2010 में पीएफआई पर आरोप लगा था कि इसके सदस्य ने मलियाली प्रोफैसर टी.ए. जॉसफ का दाहिना हाथ काट डाला था। क्योंकि प्रोफैसर ने पैगम्बर मोहम्मद पर सवाल उठाए थे। यह भी आरोप है कि राज्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 32 से अधिक कार्यकर्ताओं की हत्या में भी पीएफआई का हाथ है। संपादकीय :संघ का हिन्दू-मुस्लिम विमर्शयुद्ध खतरनाक मोड़ परगरीबी हो आरक्षण का आधार?कांग्रेसः बदलते वक्त की दस्तकवादी में सिनेमा हुए गुलजारअसली श्राद्ध...2013 में कन्नूर पुलिस को एक कैम्प से तलवारें, बम, आदमी की तरह दिखने वाले लकड़ी के पुतले, देसी बम और आईईडी ब्लास्ट में काम आने वाली चीजें मिली थीं। कैम्प से जो बैनर पोस्टर बरामद हुए वो आतंकी गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करने वाले थे। असम में दंगा फैलाने में भी पीएफआई सदस्यों का नाम आया था। दिल्ली, उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य शहरों में नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर के जिस तरह हिंसक प्रदर्शन हुए उसके पीछे भी पीएफआई का हाथ बताया गया था। तब उत्तर प्रदेश पुलिस ने पीएफआई के तीन सदस्यों को लखनऊ से गिरफ्तार किया था। इन लोगों में संगठन का स्टेट हैड वसीम भी शामिल था। इसके अलावा शामली से 18 और मेरठ से 4 सदस्यों को गिरफ्तार किया गया था। असम में भी एनआरसी के खिलाफ इसने लोगों को भड़का कर विरोध प्रदर्शन किए थे।एनआईए की छापेमारी के विरोध में पीएफआई द्वारा आयोजित बंद के दौरान जिस तरह से हिंसा हुई है उससे साफ है कि इस संगठन का जाल कितना फैला हुआ है। यद्यपि ऐसे संगठनों पर प्रतिबंध बहुत पहले लग जाना चाहिए था। देश में साम्प्रदायिकता फैला कर हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने वालों को माफ नहीं किया जाना चाहिए। आतंकवाद किसी भी तरह का हो उसे सहन नहीं किया जा सकता। बेहतर यही होगा कि एनआईए छापेमारी को लेकर दलगत राजनीति नहीं होनी चाहिए और न ही तुष्टिकरण की सियासत होनी चाहिए। धर्म के आधार पर आतंकवाद एक कैंसर की तरह है जिसको जड़ मूल से उखाड़ना हम सबकी जिम्मेदारी है। हमारी लड़ाई उस कट्टरपंथी विचारधारा से है जो विचारधारा खुद को सर्वश्रेष्ठ और दूसरों को काफिर मानते हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि कट्टरपंथी जिहादी विचारधारा को समाप्त कैसे किया जाए। आतंक को समाप्त किया जा सकता है लेकिन विचारधारा को समाप्त करने में बहुत लम्बा समय लगता है।