सम्पादकीय

टीवी चैनलों पर घृणा फैलानेवाले बयानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, क्या बनेगा कोई कानून?

Rani Sahu
23 Sep 2022 4:51 PM GMT
टीवी चैनलों पर घृणा फैलानेवाले बयानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, क्या बनेगा कोई कानून?
x
By वेद प्रताप वैदिक
हमारे टीवी चैनलों की दशा कैसी है, इसका पता सर्वोच्च न्यायालय में आजकल चल रही बहस से चल रहा है. अदालत ने सरकार से कहा है कि टीवी चैनलों पर घृणा फैलानेवाले बयानों को रोकने के लिए उसे सख्त कानून बनाने चाहिए. पढ़े हुए शब्दों से ज्यादा असर सुने हुए शब्दों का होता है. टीवी चैनलों पर उड़ेली जानेवाली नफरत, बेइज्जती और अश्लीलता करोड़ों लोगों को तत्काल प्रभावित करती है.
अदालत ने यह भी कहा है कि टीवी एंकर अपने चैनल की टीआरपी बढ़ाने के लिए ऊटपटांग बातें करते हैं, वक्ताओं का अपमान करते हैं, ऐसे लोगों को बोलने के लिए बुलाते हैं, जो उनकी मनपसंद बातों को दोहराते हैं. अदालत ने एंकरों की खिंचाई करते हुए यह भी कहा है कि वे लोग वक्ताओं को कम मौका देते हैं और अपनी दाल ही दलते रहते हैं.
आजकल कुछ चैनल अपवाद हैं लेकिन ज्यादातर चैनल चाहते हैं कि उनके वक्ता एक-दूसरे पर चीखें-चिल्लाएं और दर्शक लोग उन चैनलों से चिपके रहें. भारत के विधि आयोग ने सुझाव दिया था कि भारतीय दंड संहिता में एक नई धारा जोड़कर ऐसे लोगों को दंडित किया जाना चाहिए, जो टीवी चैनलों से घृणा, अश्लीलता, अपराध, फूहड़पन और सांप्रदायिकता फैलाते हैं. सर्वोच्च न्यायालय और विधि आयोग की यह चिंता और सलाह ध्यान देने योग्य है लेकिन उस पर ठीक ढंग से अमल होना लगभग असंभव जैसा है.
टीवी पर बोला गया कौनसा शब्द उचित है या अनुचित, यह तय करना अदालत के लिए आसान नहीं है और अत्यंत समयसाध्य है. कोई कानून बने तो अच्छा ही है लेकिन उससे भी ज्यादा जरुरी यह है कि टीवी चैनल खुद ही आत्मसंयम का परिचय दें. पढ़े-लिखे और गंभीर लोगों को ही एंकर बनाया जाए. उन्हीं लोगों को बहस के लिए बुलाएं, जो विषय के जानकार और निष्पक्ष हों.
पार्टी-प्रवक्ताओं के दंगलों से बाज आएं. यदि उन्हें बुलाया जाए तो उनके बयानों को पहले रिकार्ड और संपादित किया जाए. एंकरों को सवाल पूछने का अधिकार हो लेकिन अपनी राय थोपने का नहीं. हमारे टीवी चैनल भारतीय लोकतंत्र के सबसे मजबूत स्तंभ हैं. इनका स्वस्थ रहना जरूरी है.
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story