- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- सर्वोच्च न्यायालय...

देश के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन.वी. रमण ने यह कह कर भारत की लोकतान्त्रिक प्रणाली की संघीय व्यवस्था में गुंथी हुई स्वर लहरी के सभी सुरों को झंकृत कर दिया है कि सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका लोकतन्त्र के अभिभावक की है। इसकी वजह यह है कि भारत की न्यायप्रणाली इसलिए अनूठी नहीं है कि इसका लिखा हुआ संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान है बल्कि इसलिए अप्रतिम है कि देश के लोगों का इसमे अटूट और भारी विश्वास है। उन्हें विश्वास है जब भी कहीं कुछ गलत होगा तो न्यायपालिका उनके साथ खड़ी मिलेगी और न्याय होगा। लोगों का विश्वास है कि न्यायपालिका से उन्हें राहत व न्याय दोनों मिलेंगे। न्यायमूर्ति रमण के इस कथन से भारत की न्यायपालिका के निष्पक्ष व स्वतन्त्र रुख की अभिव्यक्ति होती है बल्कि यह निष्कर्ष भी निकलता है। भारत के लोगों के लोकतान्त्रिक अधिकारों को किसी भी सूरत में खतरा पैदा नहीं हो सकता और लोकतान्त्रिक प्रणाली के निडरता व निर्भयता के साथ काम करने में कहीं कोई अड़चन नहीं आ सकती। संविधान के संरक्षक राष्ट्रपति को पद व गोपनीयता की शपथ दिलाने के अधिकार से प्राधिकृत मुख्य न्यायाधीश का यह बयान देश के हर क्षेत्र में लोकतन्त्र की प्रतिष्ठा होने की घोषणा भी करता दिखाई पड़ता है। केवल विधान के शासन की गारंटी करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के स्वतन्त्र भारत के इतिहास में ऐसे कई अवसर आये हैं जब इसने सम्पूर्णता में भारतीय शासन पद्धति को संविधान की कसौटी पर कसने में कोई हिचक नहीं दिखाई है।
