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नए संसद भवन के निर्माण से संबंधित सेंट्रल विस्टा परियोजना को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी से यही सिद्ध हुआ कि इस प्रोजेक्ट को लेकर जताई जा रही आपत्तियों में कोई दम नहीं था और उसे रोकने के लिए दायर की गईं याचिकाएं संकीर्ण इरादों से प्रेरित थीं। कायदे से ऐसी याचिकाओं पर गौर ही नहीं किया जाना चाहिए, अन्यथा सरकार के हर फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाने की प्रवृत्ति को और बल ही मिलेगा। यह ठीक नहीं कि बीते कुछ समय से सरकार के प्रत्येक निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाने लगी है। सेंट्रल विस्टा परियोजना के खिलाफ एक नहीं, कई याचिकाएं दायर की गईं। किसी में पर्यावरण से संबंधित सवाल उठाए गए, किसी में भूमि उपयोग संबंधी और किसी में यह कहा गया कि नए संसद भवन की कोई आवश्यकता ही नहीं। इन याचिकाओं के अलावा कई विपक्षी दलों ने अनावश्यक आपत्तियां उठाईं। इनमें वह कांग्रेस भी शामिल रही, जिसने सत्ता में रहते समय खुद ही नए संसद भवन के निर्माण की जरूरत जताई थी। कुछ लोग ऐसे भी थे जो संसद भवन के आसपास बनी उन इमारतों को विरासत का दर्जा देने में जुट गए थे, जिन्हें किसी भी लिहाज से यह दर्जा नहीं दिया जा सकता।