सम्पादकीय

दमन और सवाल

Triveni
17 Oct 2020 1:59 AM GMT
दमन और सवाल
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नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों को काबू करने के नाम पर रविवार को दिल्ली पुलिस ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों को जिस तरह से निशाना बनाया, वह बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय घटना है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों को काबू करने के नाम पर रविवार को दिल्ली पुलिस ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों को जिस तरह से निशाना बनाया, वह बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय घटना है। जैसी कि खबरें आई हैं, नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में इस इलाके में स्थानीय लोग प्रदर्शन कर रहे थे, तभी भारी संख्या में पुलिस वहां पहुंची और विश्वविद्यालय के भीतर और बाहर छात्र-छात्राओं पर टूट पड़ी। जो मिला उसे धुना। यह भी नहीं देखा कि महिला है या पुरुष, छात्र है या प्रदर्शनकारी। इसी बीच बसों में तोड़फोड़, आगजनी और पथराव की घटनाएं भी हो गर्इं। इसके बाद तो पुलिस ने अपना जो बर्बर चेहरा दिखाया, वह रोंगटे खड़ा कर देने वाला था। पुलिस ने विश्वविद्यालय परिसर में घुस कर कोने-कोने से छात्र-छात्राओं को खदेड़ते हुए जमकर डंडे बरसाए।

ऑडिटोरियम से लेकर लाइब्रेरी में पढ़ रहे छात्रों तक को बाहर निकाल लिया। दमन की पराकाष्ठा यह थी कि विश्वविद्यालय परिसर के भीतर शौचालयों तक में घुस कर छात्रों को धुना गया। छात्रों की पिटाई से लेकर बसों को आग लगाने के जो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए, वे पुलिस और खुफिया तंत्र की नाकामी की पोल खोलने के लिए पर्याप्त हैं।

पुलिस का काम कानून-व्यवस्था बनाए रखना है, न कि इसकी आड़ में किसी को निशाना बनाना। लेकिन पुलिस ने जामिया विश्वविद्यालय में अपनी हद याद नहीं रखीं। इससे पहला सवाल तो पुलिस की भूमिका पर ही खड़ा होता है। विश्वविद्यालय परिसर में पुलिस आखिर घुसी किसकी इजाजत से? चाहे कितना ही जरूरी हो, किसी को पकड़ना हो, हिरासत में लेना हो, परिसर में घुसने के लिए कुलपति और प्रॉक्टर की अनुमति लेनी जरूरी है। जामिया की कुलपति ने साफ कहा है कि पुलिस ने उनसे कोई अनुमति नहीं ली और सुरक्षा गार्डों तक को निशाना बनाते हुए परिसर में घुस गई।

पुलिस का यह आचरण सवाल खड़े करने वाला है। सारी कार्रवाई ऐसे की गई जैसे सारे अपराधी परिसर के भीतर ही भरे पड़े हैं और उन्हें किसी भी कीमत पर पकड़ना है। बड़ी संख्या में छात्रों को हाथ ऊपर करवा कर ऐसे बाहर निकाला गया जैसे वे युद्धबंदी या बड़े अपराधी हों। ऐसी स्थिति में भी छात्रों ने पुलिस पर न कोई जवाबी हमला किया, न उनके पास से कोई हथियार या संदिग्ध सामान मिला। इतना ही नहीं पुलिस ने रिपोर्टिंग करती एक महिला पत्रकार का फोन छीन लिया और हाथापाई की। प्रदर्शन करना तो लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार है। लेकिन प्रदर्शनों को पुलिस के जरिए इस तरह कुचलने का जो संदेश देने की कोशिश की जा रही है, वह किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था और राष्ट्र के बेहद शर्म की बात है।

एनआरसी और संशोधित नागरिकता कानून के मुद्दे पर पूर्वोत्तर के राज्यों और पश्चिम बंगाल से निकली आग पूरे देश में फैल गई है। जामिया की इस घटना के विरोध में दिल्ली, तमिलनाडु, केरल से लेकर मुंबई तक में छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय के बाद लखनऊ में भी छात्र सड़कों पर आ गए हैं। जाहिर है, संशोधित नागरिकता कानून के मसले पर देश के बड़े हिस्से में भारी विरोध है। सरकार कह रही है कि इस बारे में लोग गलतफहमी के शिकार हैं, तो फिर क्यों नहीं सरकार हकीकत से लोगों को संतुष्ट कर पा रही? आखिर कुछ तो ऐसा है जिससे लोगों में संदेह और भय पैदा हुआ है। पुलिस के जरिए प्रदर्शनकारियों का दमन करने के बजाय लोगों के सामने सही स्थिति स्पष्ट करने की जरूरत है।

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