सम्पादकीय

सप्लाई कम और मांग ज्यादा, इसलिए महंगाई तो अभी रहेगी

Gulabi
16 Dec 2021 4:23 PM GMT
सप्लाई कम और मांग ज्यादा, इसलिए महंगाई तो अभी रहेगी
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पिछले दिनों प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने महंगाई के खिलाफ जयपुर में सभा आयोजित की
पिछले दिनों प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने महंगाई के खिलाफ जयपुर में सभा आयोजित की. जाहिर है कि महंगाई दर लगातार ऊंची बनी रहने के कारण केंद्र सरकार की आलोचना भी हुई. लेकिन हकीकत यह है कि मौजूदा महंगाई को नीचे लाने के लिए सरकार के पास ज्यादा कुछ करने को नहीं है. इस महंगाई का कारण घरेलू कम, वैश्विक ज्यादा है. सभी अर्थव्यवस्थाएं इससे जूझ रही हैं और इससे निजात पाने के उपाय तलाश रही हैं. कोविड-19 महामारी के चलते एक तरफ सप्लाई में दिक्कतें आ रही हैं और कर्मचारियों की कमी है, तो दूसरी तरफ विश्व अर्थव्यवस्था में रिकवरी हो रही है. इससे डिमांड के साथ चीजों के दाम बढ़ रहे हैं.
उपभोक्ताओं पर लागत में वृद्धि का बोझ
भारत में नवंबर में खुदरा महंगाई 4.91% रही जो 3 महीने में सबसे ज्यादा है. वैसे तो यह रिजर्व बैंक के 2% से 6% लक्ष्य के भीतर ही है, लेकिन चिंता की बात है कि यह लगातार ऊपरी सीमा के आसपास बरकरार है. खास बात यह है कि कोर महंगाई यानी खाने-पीने के सामान और ईंधन को छोड़कर बाकी चीजों के दाम 6.1% बढ़े हैं. ईंधन 13.35% महंगा हुआ है, जिसके दाम अक्टूबर में 14.35% बढ़े थे.
थोक महंगाई नवंबर में 14.23% रही जो अब तक का रिकॉर्ड है. क्रूड पेट्रोलियम के दाम एक साल पहले की तुलना में करीब 92% बढ़े हैं. अक्टूबर में भी इनके दाम 80.5% ज्यादा थे. थोक महंगाई लगातार 8 महीने से 10% से ऊपर बनी हुई है.
थोक महंगाई में भी कोर महंगाई दर लगातार 5 महीने से 11% से ऊपर बनी हुई है. इसका मतलब है कि कंपनियां लागत में वृद्धि का बोझ उपभोक्ताओं पर डाल रही हैं. थोक कीमत में ट्रांसपोर्टेशन का खर्च, टैक्स और रिटेल मार्जिन आदि जुड़ने के बाद खुदरा कीमत बनती है. पेट्रोल-डीजल महंगा होने से सप्लाई भी महंगी हो गई है. कंपनियों की लागत बढ़ने की प्रमुख वजह कमोडिटी का महंगा होना है. मेटल से लेकर कोयला तक, इन सबके दाम हाल के महीनों में 50% तक बढ़े हैं. कंटेनर की किल्लत से शिपिंग का खर्चा भी बढ़ा है.
अमेरिका में भी महंगाई 39 साल में सबसे ज्यादा
महंगाई के कारण अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन को भी काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. वहां नवंबर में खुदरा महंगाई 6.8% दर्ज हुई जो जून 1982 के बाद सबसे ज्यादा है. खाने-पीने के सामान और ईंधन (पेट्रोल-डीजल) के दाम ही इसकी बड़ी वजह हैं. इन दोनों को निकाल दें तो महंगाई सिर्फ 0.5% बढ़ी है. पेट्रोल एक साल पहले की तुलना में 58% महंगा हुआ है, यह अप्रैल 1980 के बाद सबसे ज्यादा है. ग्रॉसरी के दाम 6.4% बढ़े हैं जो दिसंबर 2008 के बाद सबसे अधिक है. नवंबर की 9.6% थोक महंगाई दर 2010 के बाद सबसे अधिक है.
इंग्लैंड में स्टैगफ्लेशन की स्थिति बन रही है. यानी अर्थव्यवस्था में ग्रोथ तो धीमी रहेगी लेकिन महंगाई ऊंची रहेगी. वहां नवंबर में खुदरा महंगाई 5.1% रही जो एक दशक में सबसे ज्यादा है. महंगाई की दर वेतन बढ़ने की दर से ज्यादा हो गई है. नवंबर में वेतन वृद्धि दर 4.7% थी. वहां भी पेट्रोल-डीजल का असर सबसे ज्यादा है. थोक महंगाई 9.1% है और यह 13 साल में सबसे अधिक है.
अमेरिका ब्याज दरें बढ़ाएगा, इंग्लैंड में स्टैगफ्लेशन का डर
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में महीने भर में कुछ गिरावट आई है, और भारत सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर टैक्स भी घटाया है. इसके बावजूद महंगाई दर ऊंची बनी हुई है. विशेषज्ञों का मानना है कि अप्रैल तक महंगाई दर ऊंची बनी रहेगी, उसके बाद इसमें गिरावट आ सकती है. अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पावेल का मानना है कि महामारी के दौरान महंगाई दर में जो तेज वृद्धि हुई है वह पुराने अनुमान से ज्यादा समय तक बनी रहेगी.
भारत में रिजर्व बैंक ने तो अभी महंगाई को थामने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने से इनकार किया है, लेकिन अमेरिका इस दिशा में कदम उठा रहा है. फेड रिजर्व की बेंचमार्क ब्याज दर 0.3% थी, यह अगले साल 0.9% हो सकती है. अगले साल ब्याज दरों में 3 बार बढ़ोतरी का अनुमान है. फेड रिजर्व ने स्टीमुलस प्रोग्राम को जल्दी खत्म करने बात भी कही है. ब्याज दरें बढ़ाने का मकसद मांग में कमी लाना है. मांग कम होगी तो दाम भी गिरेंगे. इंग्लैंड के सामने दिक्कत यह है कि वहां ओमीक्रॉन काफी तेजी से फैल रहा है. अगर लॉकडाउन जैसी स्थिति बनती है तो अर्थव्यवस्था में डिमांड अपने आप गिर जाएगी.
आगे बहुत कुछ ओमीक्रॉन पर निर्भर
एक डर यह भी है कि ब्याज दरें बढ़ाने पर कहीं मांग ज्यादा ना गिर जाए और अर्थव्यवस्था में रिकवरी को झटका ना लगे. भारत के लिए एक और चिंता की बात है रुपये में तेज गिरावट. यह डॉलर के मुकाबले 76 से नीचे चला गया है. इससे आयात महंगा होगा. भारत जरूरत का 80% कच्चा तेल आयात करता है. इसलिए क्रूड इंपोर्ट बिल बढ़ेगा. यानी अगर सरकार ने टैक्स नहीं घटाया तो पेट्रोल-डीजल और महंगे हो सकते हैं. ग्लोबल स्तर पर आगे सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि कोरोनावायरस का नया वेरिएंट ओमीक्रॉन कितना नुकसान पहुंचाता है और आगे इसका कोई और खतरनाक वेरिएंट आता है या नहीं.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
सुनील सिंह वरिष्ठ पत्रकार
लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.
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