सम्पादकीय

अंधविश्वास की जकड़न

Ritisha Jaiswal
18 Nov 2020 9:24 AM GMT
अंधविश्वास की जकड़न
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जिस दौर में दुनिया भर में विज्ञान नई ऊंचाइयां छू रहा है, जटिलतम बीमारियों के इलाज के नए तौर-तरीके खोजे जा रहे हैं

रिश्ता से रिश्ता वेबडेस्क | जिस दौर में दुनिया भर में विज्ञान नई ऊंचाइयां छू रहा है, जटिलतम बीमारियों के इलाज के नए तौर-तरीके खोजे जा रहे हैं और आविष्कार हो रहे हैं, उसमें अंधविश्वास की वजह से हत्या या बलि चढ़ाने जैसी खबरें बेहद अफसोसनाक हैं। कानपुर के भदरस गांव में दीपावली की रात अंधविश्वास के चलते एक बच्ची की हत्या कर उसके अंग खाने की खबर हैरान करने वाली है। उस गांव के एक दंपति का विवाह हुए बीस साल से ज्यादा हो गए थे और उन्हें कोई संतान नहीं थी।

यह किसी डॉक्टर से दिखाने और उसकी सलाह के मुताबिक कोई चिकित्सकीय उपाय करने का मामला था। लेकिन अज्ञानता और चेतना के अभाव में लोग कई बार बर्बरता की हद भी पार कर जाते हैं। दंपति ने डॉक्टर की जगह संतान प्राप्ति के लिए किसी तांत्रिक की सलाह पर अमल किया और दो युवकों को पैसा देकर बच्ची की हत्या करा कर उसके अंग खाए। आज के दौर में एकबारगी यह एक जुगुप्सा जगाने वाली अविश्वसनीय घटना लगती है, लेकिन इस आरोप में जिन युवकों को पकड़ा गया, उनसे मिला ब्योरा भयावह है। इससे यही साफ होता है कि हमारे समाज में ऊपरी आधुनिकता के तले कुछ गहरे पिछड़ेपन पल रहे हैं।

निश्चित रूप से बच्ची को बर्बरता से मार डाला जाना हत्या के अन्य मामलों की तरह एक जघन्य आपराधिक घटना है और इसके दोषी को कानूनन सजा मिलनी तय है। लेकिन इसकी पृष्ठभूमि जटिल स्थितियों का संकेत देती है, जिसमें व्यक्ति के दिमाग की जड़ता और उसके अज्ञान के अंधेरे कब उससे संवेदना और मानवीयता छीन लेते हैं, इसका उसे अंदाजा तक नहीं हो पाता। समाज में विवाह के बाद अपनी संतान का होना ऐसी अनिवार्यता मान लिया गया है कि उसके बिना कोई दंपति अपना सहज जीवन तक निरर्थक मान ले सकता है! जहां सांस्कृतिक जड़ताएं उसके भीतर ऐसा मानस बनाती हैं, वहीं इस तरह की भावनाएं भुनाने और कमाई करने वाले लोग ओझा-तांत्रिक आदि के रूप में उसके भीतर की संवेदना को खत्म करने में अपनी भूमिका निभाते हैं।

अमूमन हर गांव या शहरों के भी मुहल्लों में ऐसे तांत्रिक या चमत्कारी बाबाओं की पहुंच होती है या फिर उनका प्रचार मौजूद होता है, जो तंत्र-मंत्र या कर्मकांड के जरिए लोगों को उनकी इच्छा पूरी करने की बात कहते हैं। ऐसे ठग अज्ञानता की वजह से लोगों के बीच पलते अंधविश्वासों का फायदा उठाते हैं और धन वसूलने के बाद ऐसे कर्मकांड करने की सलाह देते हैं, जिनका कभी कोई हासिल नहीं होता।

विडंबना यह है कि अंधविश्वास फैलाने वाली गतिविधियों के खिलाफ कानूनी प्रावधान होने के बावजूद ऐसे ठग, बाबा या तांत्रिक खुलेआम अपना धंधा चलाते हैं। इससे जहां अंधविश्वासों को बढ़ावा मिलता है, लोगों के धन ठग लिए जाते हैं, वहीं कई बार बलि या हत्या तक के मामले सामने आते हैं। एक बड़ा नुकसान यह होता है कि इस सबसे समाज में विज्ञान की चेतना का दमन होता है और सभ्यता के आगे बढ़ने का रास्ता बाधित होता है।

इसके अलावा, व्यक्ति की समझ और संवेदना इस बुरी तरह प्रभावित होती है कि कई बार वह अमानवीय होने से भी नहीं हिचकता। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि वैज्ञानिक चेतना से वंचित कोई भी समाज अगर अंधविश्वासों के सहारे कुछ हासिल करना चाहता है, तो इससे वह न केवल खुद को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि दूसरों के लिए भी घातक साबित हो सकता है। जरूरत इस बात की है कि समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रचार-प्रसार किया जाए, ताकि हमारा समाज एक बेहतर भविष्य और मानवीयता की राह पर आगे बढ़ सके।

Ritisha Jaiswal

Ritisha Jaiswal

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