सम्पादकीय

निष्कासन से बगावती बने सुनील जाखड़ पंजाब कांग्रेस की अंदरूनी कलह के नए शिकार

Rani Sahu
29 April 2022 12:56 PM GMT
निष्कासन से बगावती बने सुनील जाखड़ पंजाब कांग्रेस की अंदरूनी कलह के नए शिकार
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सुनील जाखड़ (Sunil Jakhar) इस वक्त बेहद नाराज हैं

एस एस धालीवाल

सुनील जाखड़ (Sunil Jakhar) इस वक्त बेहद नाराज हैं. उन्होंने कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के कारण बताओ नोटिस का जवाब तक नहीं दिया और कहा कि मेरे जवाब नहीं देने को ही मेरे जवाब के रूप में माना जाना चाहिए. जाखड़ ने कहा कि उनके जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ पार्टी का कार्रवाई करने का तरीका सही नहीं है. उन्होंने कहा, 'पार्टी में मुझसे बेहद जूनियर नेताओं को यह फैसला करने के लिए कहा गया कि क्या मैंने पार्टी के अनुशासन का उल्लंघन किया है.' उन्होंने कहा कि वह पहले ही पार्टी को 'शुभकामनाएं' दे चुके हैं.
जाखड़ ने कहा था कि उन्होंने हमेशा हर धर्म और समुदाय का सम्मान किया. उनका कहना था कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया. वहीं, कई वरिष्ठ नेताओं ने इसे जाखड़ की चन्नी पर टिप्पणी बताते हुए आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि इस टिप्पणी से दलित समुदाय (Dalit Community) को ठेस पहुंची. जाखड़ की गुस्से भरी प्रतिक्रिया से संकेत मिलता है कि उन्होंने पार्टी से अलग होने का फैसला पहले ही कर लिया.
जाखड़ ऐसे कांग्रेस परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जिसकी तीसरी पीढ़ी पार्टी से जुड़ी हुई है. उनके भतीजे संदीप जाखड़ इस साल मार्च में हुए पंजाब विधानसभा में चुने गए थे. सुनील के पिता स्वर्गीय बलराम जाखड़ ने पार्टी और कांग्रेस सरकारों में कई अहम पदों पर काम किया था. वह केंद्रीय कृषि मंत्री और लोकसभा अध्यक्ष भी बने. अबोहर के विधायक संदीप जाखड़ ने भी अपने चाचा सुनील जाखड़ के साथ हुए व्यवहार को लेकर पार्टी की निंदा की.
उन्होंने कहा कि आलाकमान को सुनील जाखड़ को कारण बताओ नोटिस जारी करने से पहले उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर भी ध्यान देना चाहिए था. उन्होंने कहा, 'इस पूरी कवायद का सार्वजनिक तमाशा बनाने की कोई जरूरत नहीं थी.' जाखड़ परिवार पार्टी के साथ तब से खड़ा है, जब 1970 के दशक के आखिर में देश में आपातकाल हटने के बाद हुए आम चुनावों में इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा था और तत्कालीन जनता सरकार ने उन्हें बेहद परेशान किया था.
सुनील जाखड़ कट्टर कांग्रेसी नेता रहे और उन्होंने कभी अपनी वफादारी नहीं बदली. उनकी प्रतिष्ठा साफ-सुथरी है और वह सभी विवादों से दूर रहे. वह पंजाब के प्रमुख हिंदू नेता भी हैं. राज्य में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले जब कैप्टन अमरिंदर सिंह को बेवजह सत्ता से हटाया गया, तब कांग्रेस आलाकमान ने मुख्यमंत्री पद के लिए उनके नाम पर मुहर लगाई थी. उस वक्त पार्टी की वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी ने अपनी महत्वाकांक्षाओं के मद्देनजर कहा था कि पार्टी को सिख नेता की जरूरत है. इसके बाद सुनील जाखड़ पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से खफा हो गए.
सिद्धू अपनी खुद की पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी पार्टी आलाकमान पर आरोप लगाया था कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए अपमानित किया जा रहा है. उन्होंने इसके लिए गांधी परिवार को जिम्मेदार ठहराया था. कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाए जाने के बाद पार्टी में हड़कंप मच गया. पार्टी के अंदर नेताओं में खींचतान मची हुई है. पार्टी कई धड़ों में बंट चुकी है. राजा वारिंग को इस महीने की शुरुआत में नवजोत सिंह सिद्धू की जगह पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब विधानसभा चुनावों में पार्टी की करारी हार के बाद अपना पद छोड़ दिया था.
दरअसल, सिद्धू अपनी खुद की पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं और पार्टी के भीतर अपना ग्रुप बनाने में लगे हैं. राजा वारिंग ने सिद्धू की 'समानांतर गतिविधियों' के बारे में शिकायत भी की है. सिद्धू ने मंगलवार को दिल्ली में प्रशांत किशोर से मुलाकात की, जहां चुनावी रणनीतिकार ने पार्टी में शामिल होने से इनकार कर दिया. इससे सिद्धू के अगले कदम के बारे में चल रही अफवाहों को हवा मिल गई. सिद्धू ने कहा था, 'पुरानी शराब और पुराना दोस्त हमेशा सोने की तरह होते हैं.'
Rani Sahu

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