सम्पादकीय

सुकमावती ने हिंदू धर्म अपनाकर पेश की मूल की ओर लौटने की प्रेरक मिसाल

Gulabi
8 Nov 2021 5:20 PM GMT
सुकमावती ने हिंदू धर्म अपनाकर पेश की मूल की ओर लौटने की प्रेरक मिसाल
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सुकमावती ने हिंदू धर्म

हृदयनारायण दीक्षित। प्रत्येक मनुष्य, राष्ट्र व समाज का एक मूल होता है। मूल से कटे राष्ट्र जीवन का अप्रतिम आनंद नहीं पाते। भारत का मूल हिंदुत्व है। इंडोनेशिया का मूल प्राचीन हिंदू संस्कृति है। यहां की 26 करोड़ आबादी में 87 प्रतिशत मुस्लिम हैं और करीब 1.5 प्रतिशत हिंदू। इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो की पुत्री सुकमावती के हिंदू धर्म अपनाने का मामला इन दिनों चर्चा में है। सुकमावती द्वारा हिंदू धर्म को स्वीकार करने का यह कार्यक्रम एक उत्सव में संपन्न हुआ। सुकमावती को हिंदू होने का प्रोत्साहन उनकी दादी ईदा से मिला। खबरों के अनुसार, वह बीते बीस वर्षों से हिंदू धर्म के प्रति आकर्षित थीं। उन्होंने रामायण व महाभारत पढ़ लिया है। याद रहे कि इंडोनेशिया में दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी है। उन्होंने हिंदू धर्म स्वीकार करने के इस उत्सव में हिंदू धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन किया। पुजारियों ने मंत्र पढ़े। सुकमावती के ऊपर पवित्र जल छिड़का गया। उनकी आरती उतारी गई। सुकमावती के इस्लाम छोड़ने व हिंदू धर्म अपनाने की यह खबर एशिया के बड़े भूभाग में फैल गई है। यह मलेशिया सहित तमाम मुस्लिम बाहुल्य देशों के कट्टरपंथियों की नजर में चिंता का विषय है।

इंडोनेशिया का मूल हिंदू परंपरा में है। देश के राजचिन्ह में विष्णु हैं। वायु सेवा का नाम 'गरुड़ एयरवेज' है। भारत के एसडीएम जैसे प्रशासनिक अधिकारी पद के समकक्ष का नाम 'महीपति' है। प्रथम राष्ट्रपति का नाम हिंदू परंपरा में सुकर्णो है। सुकमावती भी हिंदू परंपरा का नाम है। चौथी शताब्दी ई.पू. तक इंडोनेशिया की सभ्यता काफी उन्नतशील थी। वे हिंदू और बौद्ध धर्म मानते थे और भारत की प्राचीन परंपरा से प्रेरित थे। यहां हिंदू राजाओं का राज था। हिंदू और बौद्ध राजाओं का उत्कर्ष बढ़ा। कालांतर में यहां आए मुस्लिम व्यापारी व्यापार के साथ इस्लाम भी फैला रहे थे। इसीलिए इंडोनेशिया में मुस्लिम बहुलता है, परंतु यहां की संस्कृति पर हिंदू धर्म का प्रभाव है। मनुष्यों और स्थानों के नाम अरबी और संस्कृत में रखे जाते हैं। कुरान भी संस्कृत भाषा में पढ़ाई जाती है। सुकमावती ने देश के मूल हिंदुत्व से अपना नाता जोड़ा है। दुनिया के सभी इस्लामिक देशों के लिए यह घटना प्रेरक हो सकती है। इस्लाम आगमन के पूर्व ईरान में पारसी पंथ था। यहां के काल देवता 'जुर्वान' अथर्ववेद के काल जैसे हैं। ईरानी 'अवेस्ता' का बड़ा भाग ऋग्वेद से मिलता-जुलता है। फिर ईरान पर इस्लाम का कब्जा हो गया। ईरानी लंबे अर्से से अपने दर्शन और मूल को लेकर असमंजस में हैं।
आज का पाकिस्तान 1947 तक भारत था। वैदिक संस्कृति का अनुयायी था, लेकिन मजहब आधारित विभाजन के बाद वैदिक सभ्यता की नदीतमा सिंधु नदी भी अब पाकिस्तानी है। पाकिस्तान की मूल वैदिक संस्कृति अरब संस्कृति से भिन्न थी, लेकिन पाकिस्तान ने इस्लामी राष्ट्र बनाया। पाकिस्तान अपने मूल से कट गया है। वह जिहादी आतंकवाद का प्रायोजक, पोषक, निर्यातक और प्रेरक है। इसलिए बिखराव को बाध्य असफल राष्ट्र है। सभी देश और समाज अपने मूल से जुड़कर ही उन्नति करते हैं। मूल छोड़कर नया चोला धारण करने के प्रयास कभी सफल नहीं होते। सत्य को किसी आवरण से बहुत दिन तक झुठलाया नहीं जा सकता। सभी इस्लामी देशों को यह सत्य स्वीकार करना चाहिए। संस्कृति से जुड़ा सत्य अपनी सत्य प्रतिबद्धता के कारण पराजित नहीं रखा जा सकता।
समाज और राष्ट्र का मूल चैतन्य निरंतर सक्रिय रहता है। अपनी विरासत पर गर्व करना मूल से जुड़ना है। विरासत को छोड़ते ही हम प्राचीन इतिहास बोध से कट जाते हैं। पंथ, रिलीजन और मजहब अलग-अलग समय पर विकसित हुए हैं। अपनी पसंदीदा पंथिक आस्था अपनाने का अधिकार सबको है, लेकिन विरासत को छोड़ते हुए हम संस्कृति खो देते हैं। मूल संस्कृति से कट जाते हैं। पूर्वजों से भी कट जाते हैं। इंडोनेशिया इस दृष्टि से सारी दुनिया का प्रेरक है। वहां मजहब इस्लाम है और संस्कृति भारतीय। वे राम और कृष्ण को पूर्वज बताते हैं और मजहब को इस्लाम। सुकमावती ने मुस्लिम बहुल आबादी वाले दुनिया के सबसे बड़े देश में एक नई नजीर पेश की है। मध्यकाल के दौरान भारत में भी औरंगजेब के भाई दारा शिकोह ने ऐसा ही प्रयास किया था। उसने उपनिषदों और दार्शनिक ग्रंथों का अनुवाद कराया था। दारा अपने भाई कट्टरपंथी औरंगजेब की साजिश का शिकार हुआ। उसकी हत्या हुई। कायदे से उसके प्रयत्नों का स्वागत होना चाहिए था। वह अपने मूल को खोज रहा था, लेकिन उसे मार दिया गया।
सभी राष्ट्र अपने मूल पर गर्व करते हैं। भारत का मूल तत्व विश्वबंधुत्व वाली संस्कृति है। यहां धार्मिक रीति-रिवाजों का विकास धीरे-धीरे हजारों वर्ष में हुआ। तर्क आधारित वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला दर्शन वैदिक काल में ही विकसित हो चुका था। भारतीय राष्ट्र का मूल दर्शन अद्वैत और विश्व आत्मीयता है। आदि शंकराचार्य ने देश के इसी मूल तत्व का संवर्धन किया। उन्होंने सांस्कृतिक एकता के लिए निरंतर पुरुषार्थ किया। उन्होंने मठ और धाम बनाए। साधनहीन कालखंड में शंकराचार्य ने राष्ट्र का पुनर्जागरण किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते दिनों केदारनाथ में शंकराचार्य की प्रतिमा का लोकार्पण किया है। शंकराचार्य का स्मरण भारतीय अस्मिता व राष्ट्र के मूल का प्रेरक है।
भारत में राष्ट्र जीवन का मूल तत्व संवर्धित करने की समृद्ध परंपरा रही है। यहां स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, महात्मा गांधी और हेडगेवार आदि महानुभावों ने राष्ट्र के मूल बोध को जगाने का कार्य किया है। इसीलिए भारत की मुस्लिम जनसंख्या सहअस्तित्व का आनंद उठाती है। भारत के कुछ मुस्लिम विद्वान भी पूर्वजों को स्वयं से जोड़ते हैं, लेकिन मुस्लिम आबादी का बड़ा भाग स्वयं को पूर्वजों से अलग रखता है। वह भारतीय राष्ट्रभाव के मूल से जुड़ने की भावना को लेकर संशय में है। संशय और असमंजस राष्ट्रीय एकता में बाधक हैं। सुकमावती का ताजा फैसला इस्लामी विचार में ईश निंदा की श्रेणी में आता है। ईश निंदा इस्लामी विचार में प्राणदंड के योग्य है, लेकिन राष्ट्र के मूल से जुड़ने के इच्छुक लोगों के लिए यह घटना भारत सहित सभी देशों के लिए प्रेरक है। इंडोनेशिया की यह घटना दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के बड़े भू-भाग के निवासियों में मूल संस्कृति से जुड़ने की अभिलाषा को गति दे सकती है।
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