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यूपी (UP) में गन्ना किसानों (Sugarcane Farmers) के लिए इस साल भी खुशखबरी नहीं आई.
यूपी (UP) में गन्ना किसानों (Sugarcane Farmers) के लिए इस साल भी खुशखबरी नहीं आई. यूपी सरकार (UP Government) ने लगातार तीसरे साल भी गन्ना का समर्थन मूल्य नहीं बढ़ाया. पेराई सत्र 2020-21 शुरू होने के लगभग दो महीने बाद सरकार ने गन्ना के समर्थन मूल्यों की घोषणा तो कि पर किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ. पिछले साल की ही तरह सामान्य प्रजाति के गन्ना मूल्य की 315 और 325 रुपये ही रहेगी. इसके पहले 2017 में बीजेपी की योगी सरकार ने 10 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई थी. मतलब कि 4 सालों में केवल 10 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ोतरी हुई है. ये तब है जब सरकार किसान आंदोलन के चलते किसानों को खुश करने के मूड में थी और करीब हर मंच से केंद्र और राज्य की सरकार किसानों की आय को डबल करने के वादे करती रहती है.
इसका मतलब ऐसा नहीं है कि केंद्र या यूपी सरकार गन्ना किसानों को लेकर उदासीन है. देखा जाए तो यूपी की पिछली सरकारों के मुकाबले गन्ना किसानों के लिए सबसे अधिक काम योगी सरकार में ही हुआ है. पर गन्ना किसानों के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा हर उठाए कदम से चीनी मिलों की स्थित सुधरती गई और किसान जहां के तहां रह गए. भाषा की एक रिपोर्ट बताती है कि, हाल ही में सरकार द्वारा दी गई निर्यात सब्सिडी और एथेनॉल की कीमतों की बढ़ोतरी से चीनी मिलों की कमाई बढ़ गई है. सरकार ने पेराई सत्र 2020-21 के लिए 3,500 करोड़ रुपये की निर्यात सब्सिडी घोषित की है. दूसरी और कोला कंपनियों, रेस्त्रां-कैफे, चॉकलेट और मिठाई कंपनियों की डिमांड में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. इसके साथ ही एथेनॉल का निर्माण और कोरोना काल मे सैनेटाइजर की जबरदस्त डिमांड ने चीनी मिलों का काम चोखा कर दिया है. पर किसानों को भुगतान की स्थित उतनी नहीं सुधरी है जितनी उम्मीद की जा रही थी.
'गन्ना किसानों के लिए योगी सरकार ने सबसे ज्यादा काम किया'
यूपी सरकार के प्रवक्ता शलभ मणि त्रिपाठी का कहना है कि गन्ना किसानों के लिए जितना काम योगी सरकार ने किया है यूपी या देश के किसी हिस्से में किसानों के लिए नही हुआ है. शलभ मणि का कहना है कि योगी सरकार ने चीनी मिलों का ढेर सारा बकाया ही नहीं चुकाया बल्कि 19 नई चीनी मिलें खोलकर गन्ना किसानों के मेहनत को सड़ने से बचा लिया वरना पिछली सरकारें तो चीनी मिलें बंद करने या बेचने में ही किसान की भलाई समझती रही हैं. त्रिपाठी के बयान से इनकार नहीं किया जा सकता है. चीनी मिलों के खुलने, निर्यात सबसिडी मिलने, प्रदेश में खांडसारी उत्पादन के लाइसेंस देने आदि का नतीजा रहा कि उत्तर प्रदेश देश में चीनी उत्पादन में नंबर वन बन गया है. यूपी सरकार ने अपने कार्यकाल के तीन वर्षों में गन्ना किसानों का 1 लाख करोड़ से ज्यादा का बकाया चुकाया है. योगी सरकार ने जो रकम बकाया भुगतान का चुकाया है उसमें बड़ा हिस्सा अखिलेश सरकार के कार्यकाल का है. सरकार ने सख्त आदेश दे रखा है कि चीनी मिल 14 दिन के अंदर किसानों को मूल्य का भुगतान करें. पर मीडिया रिपोर्ट की मानें तो प्रदेश में अभी भी बहुत सी चीनी मिलें नए पेराई सत्र का बकाया लगा रही और पुराने सत्र का बकाया भुगतान आज तक नहीं हो सका है.
14 दिन में बकाया भुगतान आदेश, पर यहां तो बीते पेराई सत्र का भी नहीं मिला
एक तरफ को सरकार गन्ना किसानों के कई साल पुराने बकाये का भुगतान किया है, साथ-साथ ये भी कहा गया है कि 14 दिन के अंदर गन्ने का भुगतान किया जाए. पर मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अभी कई कारखानों ने पिछले पेराई सत्र का भी भुगतान नहीं किया है. गाजियाबाद की मोदी शुगर मिल पर पिछले महीने तक गन्ना 28 हजार से अधिक गन्ना किसानो का 258 करोड़ बकाया था. गन्ना विभाग से मिले आंकड़े ही कहते हैं कि 2019-20 का मिल 122 करोड़ रुपया किसानों को अभी देना है. जबकि चालू पेराई सत्र में भी 136 करोड़ का बकाया बढ़ गया. इसी साल 15 जनवरी को स्थानीय मीडिया में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार इस्टर्न यूपी के बस्ती जिले बभनान चीनी मिल, मुंडेरवा बाजार चीनी मिलों पर इसी पेराई सत्र का 117 करोड़ बकाया हो गया था. जबकि सरकार बार-बार कहती है कि किसानों का भुगतान 14 दिन के भीतर हो जाना चाहिए. इसके लिए चीनी मिलों का आसान ब्याज वाले कर्ज भी उपलब्ध करवाती है. पर चीनी मिल अपनी वाली ही चलाते हैं.
सबसे कम समर्थन मूल्य बीजेपी के राज में
पिछले तीन सालों में बीजेपी के राज में गन्ना किसानों का समर्थन मूल्य केवल 10 रुपए बढ़ा है, जबकि इसके विपरीत किसानों की गन्ना उत्पादन की लागत हर साल बढ़ जाती है. बात समाजवादी पार्टी की करें तो उसके 8 सालों के शासन में गन्ना का समर्थन मूल्य कुल 95 रुपए तक बढ़ा है वहीं बहुजन समाज पार्टी की बात करें तो उसके सात सालों के कार्यकाल में 120 रुपए तक समर्थन मूल्य की बढ़ोतरी हुई थी.
क्या सरकार पर कोई दबाव है ?
मेरठ में करीब 30 सालों से गन्ना किसानों की समस्याओं को उठा रहे पत्रकार प्रेमदेव शर्मा कहते हैं कि सरकार पह दोहरा दबाव जिसके चलते गन्ना की कीमतें स्थिर हैं. पहला चीनी मिल का एक बहुत बड़ा हिस्सा कोला कंपनियों और चॉकलेट कंपनियों को जाता है, ये कंपनियां नहीं चाहती हैं कि चीनी का दाम बढ़े . दूसरे चीनी मिलों की लॉबी भी उन्हें ऐसा करने से रोकती हैं. अगर गन्ने की कीमतें बढ़ती है तो इन सबका नुकसान होगा. प्रेमदेव शर्मा पूछते हैं कि इधर कुछ वर्षों में चीनी कंपनियां एथेनॉल और सैनेटाइजर बनाकर भी कमाई कर रही हैं फिर भी इन्हें गन्ने के दाम बढ़ने में क्यों दिक्कत होती है?
एक फरवरी को बजट के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से भी यूपी के किसानों को बहुत उम्मीद थी कि उनके हित में कुछ फैसले हो सकते हैं. उम्मीद थी कि बकाए के भुगतान का कोई ऐसा रास्ता सरकार निकालेगी जिससे बार-बार चीनी मिलों पर निर्भरता खत्म हो सके. सरकारी आंकड़ों के अनुसार चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का 15,000 करोड़ रुपए से ज़्यादा का बकाया है. बजट में गन्ना किसानों के लिए तो कुछ नहीं हुआ पर चीनी मिलों के लिए ज़रूर कुछ रियायतें मिलीं. इस साल के बजट में चीनी मिलों को मदद देने के लिए 1,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया. इसके अलावा 40 लाख मीट्रिक टन चीनी स्टॉक के लिए 600 करोड़ और चीनी निर्यात के लिए शुगर 2,000 करोड़ रुपए आवंटित किया गया. बजट में शुगर मिलों का जिक्र तो है, लेकिन उन किसानों का जिक्र नहीं है जिनका पैसा शुगर मिलों के पास फसा हुआ है. लोकसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार, 11 सितंबर 2020 तक यूपी की चीनी मिलों पर किसानों का 10,174 करोड़ रुपए बकाया है.
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि चीनी मिलों ने ईरान, इंडोनेशिया, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश को चीनी का निर्यात किया है. इंडोनेशिया में चीनी के निर्यात को लेकर कुछ समस्याएं थीं , जिन्हें सरकार ने निपटा लिया है. इससे भारत के चीनी निर्यात को बढ़ावा मिला है. केंद्र ने 2019-20 के दौरान 60 लाख टन चीनी के निर्यात के लिए 6,268 करोड़ रुपये की सब्सिडी दे रही है, ताकि सरप्लस घरेलू स्टॉक को खत्म किया जा सके. यह सब यह सोचकर किया गया कि इससे किसानों को गन्ने का बकाया भुगतान करने में चीनी मिलों को मदद मिलेगी.
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