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मूल्य निर्धारण समिति (सीएपी) का पुनर्गठन कर किसान पृष्ठभूमि के विशेषज्ञों को उसमें शामिल करके नई शुरुआत की जा सकती है।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने आगामी चीनी वर्ष 2022-23 के लिए गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 305 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया है। यह मूल्य पिछले वर्ष के मुकाबले 15 रुपये प्रति क्विंटल अधिक है। आगामी एक अक्तूबर से चालू होने वाले पेराई सीजन से यह लागू होगा। इसके लिए चीनी की बेसिक रिकवरी 10.25 फीसदी निर्धारित की गई है। इसका सीधा अर्थ है कि एक क्विंटल में 10.25 फीसदी चीनी निकलती है, तो किसान को 305 रुपये मिलेंगे।
गौरतलब है कि कृषि लागत मूल्य आयोग ने एक क्विंटल गन्ने का मूल्य 162 रुपये आंका है और इसमें 88.3 फीसदी की बढ़ोतरी का दावा किया गया है, जबकि स्वामीनाथन आयोग की मूल्यांकन प्रक्रिया के तहत यह बढ़ोतरी पांच फीसद से अधिक नहीं है। गन्ने के मूल्य की एफआरपी में यह बढ़ोतरी पिछले वर्षों के मुकाबले अधिक है, लेकिन किसान संगठनों ने इसे नाकाफी बताकर आंदोलन की धमकी दी है, तो चीनी मिल मालिकों की संस्था एस्मा ने वृद्धि को अधिक बताकर चीनी के दामों में बढ़ोतरी की मांग की है और घरेलू बाजार में चीनी को भाव बढ़ाकर बेचने की छूट भी मांगी है।
पिछले कई वर्षों से चीनी उद्योग को लाभप्रद बनाने के कई प्रयास हुए हैं। किसानों का लगभग सभी चीनी मिलों पर बकाया बना रहता है, लिहाजा सरकार ने मिलों को बड़ी राहत देते हुए कर्ज चुकाने की आसान राह तैयार की। चीनी विकास कोष के माध्यम से बकाया राशि भुगतान करने के लिए आसान ऋण पुनर्गठन योजना के दिशा-निर्देश दिए गए हैं, जिसके तहत 24 महीनों की मोहलत मिल मालिकों को दी जाएगी। 171 चीनी मिलों पर वित्तीय संस्थानों का लगभग 31 हजार करोड़ रुपये बकाया है।
एस्मा ने स्वयं माना है कि वैश्विक स्तर पर चीनी की बढ़ती कीमतों के बीच भारतीय मिलों ने 43 लाख टन निर्यात का अनुबंध किया है। 30 सितंबर को समाप्त होने वाले वर्तमान चीनी वर्ष में भारतीय मिलों के पास निर्यात से मुनाफा कमाने के स्वर्ण अवसर है। विदेशी बाजारों में चीनी भेजने से स्थानीय भंडार पर दबाव कम होगा और घरेलू बाजार में भी चीनी के दाम सुधरेंगे। भारतीय चीनी की सर्वाधिक मांग इंडोनेशिया, दुबई, अफगानिस्तान, श्रीलंका और अफ्रीकी देशों में रहती है।
इधर सरकार द्वारा एथेनॉल की 20 फीसदी खपत पेट्रोलियम पदार्थों में किए जाने पर चीनी उद्योग बम-बम है। यह योजना आगामी वर्ष के प्रारंभ से ही शुरू होने के संकेत हैं। वर्तमान में चीनी उद्योग एथेनॉल के 10 फीसदी के उद्देश्य को प्राप्त कर चुका है। प्रधानमंत्री विश्व जैव ईंधन दिवस पर घोषणा कर चुके हैं। सरकार ने इसके लिए लगभग 2,000 करोड़ रुपये का बजट का प्रावधान भी सुरक्षित कर दिया है। देश भर में 14 हजार करोड़ रुपये की लागत से बारह टू जी एथेनॉल संयंत्र लगेंगे, जिससे 3,000 करोड़ लीटर एथेनॉल का हर वर्ष उत्पादन संभव हो सकेगा।
गन्ने की फसल नकदी कहलाती है, यानी बेचते ही पैसा हाथ में आ जाएगा। 'शुगर केन कंट्रोल ऑर्डर 1996', जिसे भार्गव फार्मूला कहा जाता है, के अनुसार गन्ना उत्पादक किसान जिस दिन गन्ना मिल के गेट पर पहुंचा देता है, उसके 14 दिन के अंदर भुगतान हो जाना चाहिए, इसके बाद लंबित भुगतान पर 15 फीसदी वार्षिक ब्याज लगाने का प्रावधान है। किसान नेता बीएम सिंह द्वारा इलाहाबाद कोर्ट में दाखिल एक याचिका पर लखनऊ हाई कोर्ट भुगतान की तारीख तय कर चुकी है, लेकिन सब बेनतीजा है। यहां आकर किसान लाचार हो जाता है।
खेती को लाभकारी बनाए बगैर कोई विकल्प नहीं है। बजट सत्र में कृषिमंत्री ने स्वयं माना है कि किसान परिवार की मासिक आमदनी 6,426 रुपये मासिक है और मासिक खर्च 6,223 रुपये दर्ज किया गया है। डीजल, बिजली, खाद, मजदूरी, कीटनाशक दवाइयों के दामों में बेतहाशा वृद्धि होने से लागत मूल्य काफी बढ़ चुका है। सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी तय है लिहाजा न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी भी होनी चाहिए। मूल्य निर्धारण समिति (सीएपी) का पुनर्गठन कर किसान पृष्ठभूमि के विशेषज्ञों को उसमें शामिल करके नई शुरुआत की जा सकती है।
सोर्स: अमर उजाला
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