सम्पादकीय

Sugar Export Ban : भारत द्वारा चीनी के निर्यात पर रोक लगाने से वैश्विक कड़वाहट बढ़ेगी

Rani Sahu
2 Jun 2022 12:22 PM GMT
Sugar Export Ban : भारत द्वारा चीनी के निर्यात पर रोक लगाने से वैश्विक कड़वाहट बढ़ेगी
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दुनिया भर में, खास तौर से कमजोर देशों में, खाद्य सुरक्षा (Food Security) आजकल खतरे में है

के वी रमेश |

दुनिया भर में, खास तौर से कमजोर देशों में, खाद्य सुरक्षा (Food Security) आजकल खतरे में है क्योंकि ज्यादातर देशों के द्वारा खाद्य पदार्थों के निर्यात को प्रतिबंधित करने की संभावना है. विभिन्न खाद्य वस्तु जिनके निर्यात को रोका जा रहा है उनमें नवीनतम एक चीनी है. चीनी (Sugar) आजकल काफी दवाब में हैं क्योंकि चीनी के दो शीर्ष उत्पादकों में से एक भारत ने 1 जून से पांच महीने के लिए निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है. एक अन्य उत्पादक कजाकिस्तान ने एक दिन पहले चीनी के निर्यात (Sugar Export Ban) पर छह महीने के लिए प्रतिबंध लगा दिया था.
बढ़ते खाद्य मुद्रास्फीति की आशंकाओं के मद्देनज़र भारत ने निर्यात पर रोक लगाने का फैसला किया है. खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी को देखते हुए भारत ने पहले ही गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है. यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया भर के खाद्य प्रधान बाजारों में कड़े रूख़ को देखते हुए यह कदम उठाया गया है. गौरतलब है कि युक्रेन युद्ध में शामिल दो देश दुनिया के प्रमुख गेहूं उत्पादक हैं जो दुनिया के बाजारों में भेजे जाने वाले गेंहू का 30 प्रतिशत निर्यात करते हैं.
भारत सिर्फ उत्पादक ही नहीं बल्कि एक अहम उपभोक्ता भी है
भारत की चीनी पूरी तरह से गन्ने से आती है और पिछले सीजन में कच्ची और रिफाइंड चीनी का उत्पादन 3.5 करोड़ टन था. दुनिया के शीर्ष चीनी उत्पादक के रूप में भारत का ब्राजील के साथ कड़ा मुकाबला है. भारत सिर्फ उत्पादक ही नहीं बल्कि एक अहम उपभोक्ता भी है. इस साल निर्यात के लिए लगभग 10 मिलियन टन को छोड़कर भारत के खुद के खपत के लिए लगभग 25 मिलियन टन की जरूरत है. यानी भारत ने विश्व बाजार में करीबन 10 मिलियन टन चीनी नहीं भेजने का फैसला लिया है.
दुनिया भर के शीर्ष चीनी निर्यातक क्रमवार ब्राजील, थाईलैंड और भारत हैं. महामारी से पहले साल 2019 में ब्राजील ने 17.89 मिलियन टन, थाईलैंड ने 10.41 मिलियन टन और भारत ने 4.02 मिलियन टन चीनी का निर्यात किया था. पिछले साल ब्राजील, भारत, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया में बंपर फसल को देखते हुए चीनी के फ्रंट पर हालात काबू में थे लेकिन यूक्रेन युद्ध ने तस्वीर को जटिल बना दिया है.
हालांकि ब्राजील में भी पिछले साल चीनी का अधिक उत्पादन हुआ था लेकिन अब ब्राजील के किसान अपनी उपज को इथेनॉल उत्पादन में बदल रहे हैं. जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में ब्राजील इथेनॉल का सबसे बड़ा उत्पादक और अग्रणी देश है. ब्राजील में किसानों को फसल को जैव ईंधन के उत्पादन में बदलना ज्यादा लाभदायक लग रहा है क्योंकि यूरोप में युद्ध के साथ विश्व स्तर पर ईंधन की कीमतें बढ़ रही हैं. कृषि के क्षेत्र में इस बदलाव की वजह से ऐसी आशंका जताई जा रही है कि चीनी इस बार कम मात्रा में ही उपलब्ध होंगे. निस्संदेह, भारत के निर्यात प्रतिबंध से दुनिया की चिंता और बढ़ेगी.
प्रतिबंधों की वजह से खाद्य संकट बढ़ रहा है
भारत का एक्सपोर्ट सरप्लस उतना नहीं है क्योंकि भारत अपने द्वारा उत्पादित अधिकांश चीनी का खपत खुद ही कर लेता है. बहरहाल, यदि हम अतिरिक्त उत्पादन को बाहर भेज देते तो बाजार को शांत किया जा सकता था. भारत में गन्ने का पैदावार जितने बड़े इलाके में होता है उसे देखते हुए सरप्लस और अधिक होना चाहिए था लेकिन गन्ने की यील्ड यानी चीनी की रिकवरी कम हुई. उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया में सबसे ज्यादा 14.04 फीसदी रिकवरी हुई है, जबकि ब्राजील 13.81 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर है. पिछले एक दशक में रिकवरी दर कम ही थी लेकिन हाल के वर्षों में भारत में रिकवरी में सुधार हुआ है. यह आंकड़ा उत्पादक-राज्यों में 10.86 प्रतिशत के करीब है.
भारत और कजाकिस्तान के अलावा अन्य देशों ने भी चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है. पाकिस्तान दुनिया का 10वां सबसे बड़ा निर्यातक है और उसने 2019 में 62 लाख टन चीनी की निर्यात किया था. इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान ने निर्यात पर और रूस ने मार्च में बाहरी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया. प्रतिबंध सीधे तौर पर कई देशों को प्रभावित करेगा जिसमें चीन भी शामिल है. चीन सालाना 4-5 मिलियन टन चीनी का सबसे बड़ा आयातक देश है. प्रभावित होने वाले देशों में इंडोनेशिया भी है जो दूसरा सबसे बड़ा आयातक है. इसके अलावे अमेरिका, अल्जीरिया, दक्षिण कोरिया, यूरोपीय संघ, सऊदी अरब, बांग्लादेश, मलेशिया और नाइजीरिया भी प्रभावित होंगे.
यूक्रेन संघर्ष के कारण गेहूं की कमी के मद्देनज़र भारत ने गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया. दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक इंडोनेशिया ने पाम तेल पर प्रतिबंध लगा दिया. इन प्रतिबंधों से ग्लोबल हंगर (वैश्विक भूख) की चिंता गहरी होती जा रही है. महामारी से पहले जब पैदावार लगातार बढ़ती रही तो खाद्य संकट की कल्पना नहीं की गई थी क्योंकि बाजारों की कनेक्टिविटी काफी बढ़िया थी. लेकिन महामारी ने ग्लोबल सप्लाइ चेन (वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला) को तोड़ दिया. बहरहाल, जैसे-जैसे चीजें बेहतर हो रही थीं तो तभी यूक्रेन संघर्ष सामने आ खड़ा हुआ. इस संकट की वजह से खाद्य संरक्षणवाद सामने आ गया.
चीन और भारत के पास बड़े खाद्य भंडार हैं
लेकिन अब आशंका व्यक्त की जा रही है कि खाद्य राष्ट्रवाद के ग्लोबल ट्रेंड के तहत व्यापार प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं. इन प्रतिबंधों की वजह से दुनिया में दूसरा सबसे अधिक खपत होने वाला खाद्य पदार्थ चावल अब प्रभावित हो सकता है. दिल्ली सरकार ने गेहूं के स्टॉक पर दबाव को महसूस किया है नतीजतन उन्होंने अपनी सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में चावल की मात्रा बढ़ाने का फैसला किया है. देश में चावल का स्टॉक रिकार्ड स्तर पर है क्योंकि पिछले साल चावल का उत्पादन 127.93 मिलियन टन तक पहुंच गया था. यह आंकड़ा पिछले पांच वर्षों में 116.44 मिलियन टन के उत्पादन की तुलना में 11.49 मिलियन टन अधिक था.
दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन और भारत के पास अपेक्षाकृत बड़े खाद्य भंडार हैं और वे निकट भविष्य के बारे में चिंतित भी नहीं हैं. भारत के रसोई में दूसरा प्रमुख खाद्य पदार्थ दाल है. भारत मुख्य रूप से कनाडा से लगभग चार मिलियन टन दाल आयात करता है. बहरहाल, भारत ने अब म्यांमार, मलावी और सूडान को भी दाल आयात करने वाले देशों में शामिल कर लिया है और उनके साथ लंबे समय के कांट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए हैं. भारत अपनी Phytosanitary (पादप स्वच्छता) संबंधी चिंताओं के कारण रूस से दालों का आयात नहीं करता था लेकिन पिछले साल भारत ने एक परीक्षण खेप की अनुमति दी थी. इतना ही नहीं, पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया के साथ Free Trade Agreement (FTA) (मुक्त व्यापार समझौते) पर दस्तखत किए गए जिससे अधिक आयात होने से बाजार में दालों की बाढ़ आने और कीमतों में कमी आने की संभावना है.
हालांकि सरकार चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने पर विचार नहीं कर रही है लेकिन मार्च-अप्रैल में गर्मी और मानसून के समय से पहले आ जाने से उत्पादन की गणना बिगड़ सकती है. इन बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार को अपने विकल्प खुले रखने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है. इस साल के अंत तक गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए चुनाव होंगे. अगले साल कुल नौ राज्य विधान सभा के लिए चुनाव होंगे जिनमें मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और तेलंगाना जैसे प्रमुख राज्य शामिल हैं. ऐसे चुनावी माहौल में सरकार कभी नहीं चाहेगी कि खाद्य मुद्रास्फीति में और बढ़ोतरी हो.

सोर्स- tv9hindi.com

Rani Sahu

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